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ट्रंप क्या-क्या कब्जाएंगे?

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सन् 1848 में दो साल लम्बी जंग के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको में एक संधि हुई थी। उसे ग्वालालुपे की संधि कहते है। इस संधि से जंग तो ख़त्म हुई मगर मेक्सिको ने अपना 55 प्रतिशत भूभाग गंवा दिया। इसी भूभाग पर आज के अमेरिकी राज्यों कैलिफ़ोर्निया, नवादा, यूटा, न्यू मेक्सिको, एरीज़ोना और कॉलोराडो का अधिकांश और ओकलाहोमा, केनसस और वायोमिंग का कुछ हिस्सा है। इस संधि से उत्तरी मेक्सिको का एक बड़ा हिस्सा दक्षिणी टेक्सास बना। फिर, सन् 1867 में अमेरिका के तत्कालीन विदेशमंत्री विलियम सूवर्ड ने रूस से 72 लाख डालर में अलास्का खरीदा। इस विशाल भूभाग का उस समय अमेरिका का हिस्सा बनना उसके लिए बहुत फायदेमंद रहा।

अब ट्रंप की धमकी है कि अमेरिका में रह रहे अप्रवासियों को मेक्सिको भेजेंगे और यदि मेक्सिको ने इन लोगों को नहीं लिया तो वहां से अमेरिका में आने वाले माल पर टैक्स बढ़ा देंगे। इसके बाद ट्रंप की जिस बात से दुनिया के कान खड़े हुए हैं वह है कनाडा, ग्रीनलैंड और पनामा नहर को अमेरिका में शामिल करने का उनका ख्याल। सात जनवरी को ट्रंप ने यह भरोसा देने से इंकार कर दिया कि वे ग्रीनलैंड तथा पनामा नहर पर कब्जे के लिए सेना और आर्थिक दबाव नहीं बनाएंगे। उनके अनुसार “हमें अपनी सुरक्षा के लिए ग्रीनलैंड की ज़रुरत है”। उन्होंने यह भी कहा कि डेनमार्क को “आज़ाद दुनिया को बचाने के लिए” ग्रीनलैंड पर कब्जा छोड़ देना चाहिए। उन्होने डेनमार्क पर भी कस्टम ड्यूटी की धमकी दी है

ट्रंप इस मामले में इतने गंभीर हैं कि उन्होंने आर्कटिक के इस द्वीप पर कब्जा करने की अपनी योजना के बारे में स्थानीय लोगों के विचार जानने के लिए अपने बेटे डोनाल्ड ट्रंप जूनियर को वहां भेजा है। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने बेटे की तस्वीरें “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” के शीर्षक के साथ पोस्ट की है।

डेनमार्क ने अमेरिका को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप बिकाऊ नहीं है। उधर ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री म्यूट बी. इगेडे ने ट्रंप के ग्रीनलैंड संबंधी इरादे को खारिज करते हुए कहा है, “ग्रीनलैंड वहां रहने वालों का है और हमारा भविष्य और आजादी की हमारी लड़ाई हमारा  पारस्परिक मसला है।”

लेकिन ट्रंप को जानने वालों का मानना है कि वे किसी हाल में पीछे नहीं हटने वाले हैं। सवाल है आखिर ट्रंप के लिए ग्रीनलैंड इतना महत्वपूर्ण क्यों है? ऐसा इसलिए क्योंकि रणनीतिक व आर्थिक दृष्टि से ग्रीनलैंड संभावनाओं से भरा हुआ है। यह द्वीप अमेरिका और रूस के बीच दुनिया के ऐसे हिस्से में स्थित है जहां जहाजों की आवाजाही आर्कटिक की बर्फ के पिघलने से अपेक्षाकृत आसान होती जा रही है। इस वजह से नए और अपेक्षाकृत छोटे और समुद्री मार्ग उभर रहे हैं। उदाहरण के लिए, आर्कटिक समुद्र के रास्ते पश्चिमी यूरोप से पूर्वी एशिया की दूरी स्वेज नहर से होकर जाने वाले मार्ग की तुलना में लगभग 40 प्रतिशत कम है। आर्कटिक काउंसिल की हालिया रपट के मुताबिक पिछले एक दशक में आर्कटिक में जहाजों की आवाजाही में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

वहां अमेरिका द्वारा अति महत्वपूर्ण माने गए 50 खनिजों में से 43 का भंडार है। संभवतः चीन के बाहर दुर्लभ तत्वों का सबसे बड़ा भण्डार वही है। ग्रीनलैंड के दूरदराज में स्थित होने और वहां के कठिन हालातों के चलते अब तक वहां के संसाधनों का कम दोहन हुआ है। द्वीप का 80 प्रतिशत हिस्सा बर्फ से ढका हुआ है। वहां मानव बस्तियों को जोड़ने वाली सड़कें तक नहीं हैं। सरकार ने 2021 से तेल की खोज पर पाबंदी लगा रखी है। लेकिन जैसे-जैसे जलवायु गर्म हो रही है, वहां के खनिज भंडारों तक पहुंच आसान होती जाएगी और वे अधिक मूल्यवान होते जाएंगे।

ट्रंप की लफ्फाजियों के चलते ग्रीनलैंड की ओर सभी का ध्यान आकर्षित हुआ है। वहां से आ रही खबरों के मुताबिक ग्रीनलैंडवासी इस बात से खुश है कि इससे उनकी आजादी का मसला दुबारा चर्चा में है। सन् 1979 में ग्रीनलैंड को काफी स्वायत्ता दी गई थी हालांकि विदेशी मामलों और रक्षा पर डेनमार्क का नियंत्रण कायम है (इन मामलों पर यदाकदा ही ग्रीनलैंड वासियों से सलाह-मशविरा किया जाता है)। बहुत से ग्रीनलैंडवासियों का मानना है कि डेनमार्क ने द्वीप की सुरक्षा पर पर्याप्त खर्च नहीं किया है। वहां की 31 सदस्यीय संसद के लिए अप्रैल में चुनाव होना है। आजादी का मुद्दा चुनावों में वैसे भी सबसे महत्वपूर्ण था, लेकिन अब यह और अधिक महत्वपूर्ण होगा।

जहां तक ट्रंप का सवाल है, उनकी ग्रीनलैंड पर कब्जा करने की योजना अभी तो बड़बोली सी है। इस बात की संभावना कम है कि वे इसके लिए सेना का इस्तेमाल करेंगे। लेकिन दुनिया आज जिसकी लाठी उसकी भैंस के जिस दौर में हैं उसमें कुछ भी संभव है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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