Germany state elections: करीब एक हफ्ते पहले, जर्मनी के पश्चिमी शहर जूलिंगन में एक स्थानीय उत्सव के दौरान कई लोगों को चाकूबाजी का शिकार बनाए जाने से देश में हंगामा मचा था। इस घटना में तीन लोग मारे गए। कथित अपराधी एक सीरियाई था जो जर्मनी में शरण लेना चाह रहा था। उसे कई महीने पहले जर्मनी से निर्वासित कर दिया जाना चाहिए था। अभियोजक इस घटना को इस्लामिक उग्रवाद से जोड़ रहे हैं। घटना के बाद से शरणार्थियों को देश से निकाल बाहर करने एवं शरण देने संबंधी कानूनों को कड़ा बनाने की मांग बड़े पैमाने पर उठने लगी। माहौल में आक्रोश था और परिवर्तन की चाहत भी।
उस उत्तेजनापूर्ण माहौल का लाभ उठाते हुए अति दक्षिणपंथी आल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) पार्टी ने एक नया नैरेटिव चलवाया। एएफडी के एक नेता बियोर्न होके ने हमले का एक वीडियो एक्स पर पोस्ट किया और सवाल पूछा, “जर्मनों, थिरुंजीयानों (जर्मनी के एक प्रांत थिरुन्जिया के निवासी) क्या आप ऐसे हालातों में जीने के आदी बनना चाहते हैं? या आप लादे गए बहुसंस्कृतिवाद के गलत रास्ते को छोड़ना चाहते हैं?” पार्टी के अन्य नेताओं ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए, और आम लोग इस नैरेटिव से जुड़ते चले गए। (Germany state elections)
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दोनों राज्यों में 30 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल
इसका नतीजा यह हुआ की रविवार को एएफडी ने थिरुन्जिया और सेक्सिनी के महत्वपूर्ण राज्य-स्तरीय चुनावों में ऐतिहासिक सफलता हासिल की, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हुए चुनावों में सबसे बड़ी थी। थिरुन्जिया, जहां पार्टी का नेतृत्व होके के हाथों में है, में पहली बार राज्य स्तरीय चुनावों में एएफडी सबसे शक्तिशाली पार्टी के रूप में उभरी है। दोनों राज्यों में उसे 30 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल हुए।
पूर्वी जर्मनी में अति दक्षिणपंथ के प्रबल होने से प्रेक्षक चिंतित हैं क्योंकि इससे जर्मनी और यूरोप में प्रवासी विरोधी, राष्ट्रवादी और लोकलुभावन राजनीति एक बार फिर जोर पकड़ सकती है।
आल्टरनेटिव फॉर जर्मनी, जो जर्मन भाषा में एएफडी नाम से जानी जाती है, एक राष्ट्रवादी पार्टी है जो 11 सालों से राजनीति में है। पार्टी का विदेशियों के प्रति द्वेष भाव सर्वज्ञात है। उसे छह साल पहले तब प्रसिद्धि हासिल हुई जब तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल ने मध्यपूर्व के युद्धग्रस्त देशों के दस लाख से अधिक निवासियों को जर्मनी में आने दिया और वहां बसने की अनुमति दी। अपनी नीतियों के चलते एएफडी को सरकारी निगरानी में रखा गया है क्योंकि यह जर्मनी के संविधान के लिए खतरा है। इसके बावजूद पार्टी ने इन चुनावों में सर्वाधिक सीटें हासिल कीं।
जूलिंगन में हुई चाकूबाजी की घटना के बाद जनता में होके के अति-दक्षिणपंथी आप्रवासी-विरोधी विचारों की स्वीकार्यता बढ़ गई है – इस हद तक कि प्रमुख राजनैतिक दल भी एफएडी के नैरेटिव को खारिज करने के बजाए उसका समर्थन कर रहे हैं। चांसलर स्कोल्ज ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इस बात पर जोर दिया है कि अवैध प्रवासियों पर लगाम कसी जानी चाहिए।
शरण लेने के इच्छुक ऐसे लोगों, जिनके अनुरोध अस्वीकार कर दिए गए हैं, के तत्काल निर्वासन पर जोर दिया जा रहा है। डेश पीगर (जिसका अर्थ होता है आईना) को दिए गए एक साक्षात्कार में स्कोल्ज ने कहा “हमें यह तय करने का अधिकार है कि हम किसे आने दें और किसे नहीं”। एक अन्य साक्षात्कार के दौरान जब स्कोल्ज से अरब पृष्ठभूमि के लोगों के “इजराइल के प्रति नफरत” और यहूदी-विरोधी रवैये के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था “हमें बहुत बड़े पैमाने पर निर्वासन की कार्यवाही करनी चाहिए।”
एएफडी के अलावा सस्ती लोकप्रियता हासिल करने में जुटी एक और पार्टी भी मैदान में है जिसने अपने गठन के केवल आठ महीने बाद चुनावों में अच्छी-खासी कामयाबी हासिल की। सारा वागनकनेख एलाइंस (बीएसडब्लू) एक ‘वाम-रूढ़िवादी’ पार्टी है जिसे जनवरी में वागनकनेख नाम की पूर्वी जर्मनी की एक पूर्व कम्युनिस्ट द्वारा स्थापित किया गया था, जिसने अन्य वाम दलों से नात तोड़ लिया था। यह एक अति-वामपंथी दल है और इसने चुनावों में दोनों राज्यों में तीसरा स्थान हासिल किया। एएफडी की तरह बीएसडब्लू भी जर्मनी में कड़ी आप्रवासन नीति की पक्षधर है और यूक्रेन का साथ देने का विरोध करती है और यूक्रेन-रूस विवाद का हल युद्ध के जरिए नहीं बल्कि कूटनीति के माध्यम से हो, यह चाहती है। बीएसडब्लू का मजबूत प्रदर्शन जर्मनी के सोशल डेमोक्रेट्स के लिए बुरी खबर है। चांसलर ओलाफ स्कोल्ज भी इसी पार्टी में हैं और इस बात का खतरा है कि पार्टी के और बहुत से वामपंथी मतदाता उससे दूर हो जाएं।
सस्ती लोकप्रियता हासिल करने में जुटी इन पार्टियों का मजबूत प्रदर्शन केन्द्रीय सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। राष्ट्रीय सरकार में शामिल तीनों दलों – सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, ग्रीन पार्टी और लिब्रेटेरियन फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी – को इन राज्यस्तरीय चुनावों में काफी नुकसान झेलना पड़ा है। इससे यह साफ हो गया है कि ये पार्टियां और उनके नेता न केवल पूर्व पूर्वी जर्मनी में अलोकप्रिय हो गए हैं बल्कि कमोबेश पूरे देश में यही स्थिति है।
यह स्पष्ट है कि अगले राष्ट्रीय चुनाव में देश दक्षिणपंथ की ओर करवट लेगा। इसका अर्थ होगा अपेक्षाकृत सख्त आप्रवासन नियम और जर्मनी की मंद पड़ी अर्थव्यवस्था को बेहतर करने पर ज्यादा ध्यान दिया जाना। यही रूझान यूरोप के अन्य देशों में भी नजर आ रहा है – जैसे फ्रांस में जहां एक दक्षिणपंथी दल के मजबूत प्रदर्शन के चलते अभी तक नई सरकार का गठन नहीं हो सका है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)