लंबे अरसे बाद व्लादिमीर पुतिन चैन की साँस लेते दिख रहे हैं। पश्चिमी एवं अन्य देशों का ध्यान इजराइल-हमास युद्ध पर है और दुनिया भर के नेता इजराइल जा रहे हैं – हम आपके साथ खड़े हैं का संदेश देने; नेतन्याहू को थोड़ा संयम बरतने के लिए राज़ी करने; गाजा तक राहत सामग्री पहुंचाने की कोशिश करने और ईरान और उसके समर्थकों को युद्ध को दखल न देने के लिए आगाह करने।
इस बीच पुतिन स्वयं द्वारा छेड़े गए युद्ध से कुछ समय निकालकर चीन की यात्रा पर निकल गए। वे शी जिन पिंग की मेजबानी में आयोजित बेल्ट एंड रोड शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने बीजिंग पहुंचे। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से पुतिन बहुत कम मौकों पर रूस से बाहर निकले हैं। इस सम्मेलन में शामिल हुए 130 देशों के नेताओं और अधिकारियों के बीच उनका स्वागत एक ख़ास मेहमान की तरह हुआ। चीन ने उनके लिए लाल कालीन बिछाया।
हमारी धरती दो खोमों में बंट गई है। इजराइल, यूक्रेन और पश्चिम एक ओर और चीन, रूस और दुनिया के अन्य तटस्थ देश दूसरी ओर। इजराइल के प्रति पुतिन की उदासीनता से बहुत कुछ जाहिर होता है।नेतन्याहू उर्फ बीबी और पुतिन अच्छे दोस्त रहे हैं, उनके बीच घनिष्ठता रही है वे एक-दूसरे के प्रशंसक हैं। पिछले दो दशकों से इजराइल की राजनीति के केन्द्र में रहे बीबी को मोदी और पुतिन जैसे चौड़े सीने वाले नेता भाते हैं। दूसरी ओर पुतिन, इजराइल को अपना रुआब दिखाने में न झिझकने वाली एक क्षेत्रीय ताकत के रूप में पसंद करते हैं। और रूस में दम तोड़ते लोकतंत्र के प्रति नेतन्याहू की उदासीनता भी उन्हें माफिक आती है।
बीबी पिछले वर्षों में रूस की एक दर्जन यात्राएं कर चुके हैं और यूक्रेन-रूस युद्ध के सन्दर्भ में उन्होंने न तो रूस के खिलाफ एक शब्द कहा और ना ही यूक्रेन की हथियार देकर मदद की। इसलिए जब पुतिन ने हमास के हमले के बाद नेतन्याहु से फोन पर बात करने में पूरे नौ दिन लगा दिए तो सभी को बहुत अचरज हुआ।
यह कोई छुपी बात नहीं है कि रूस फिलिस्तीनी राष्ट्र का समर्थक रहा है, उसने फिलिस्तीनी लड़ाकों को प्रशिक्षण दिया और उन अरब देशों को हथियार दिए जिनने 1973 में इजराइल पर हमला किया था। रूस सीरिया के तानाशाह बशर अल असद का भी साथी है और उसके ईरान से हमेशा से अच्छे रिश्ते रहे हैं। वह साईप्रस के भी नज़दीक आ गया है, तुर्की की ओर भी दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है और मिस्त्र से भी रिश्ते बेहतर कर रहा है।
हमास के इजराइल पर अचानक हमले में रूस की कोई भूमिका नहीं रही होगी और ना ही उसे इसके बारे में पहले से कोई जानकारी होगी। लेकिन बीबी से फोन पर हुई बातचीत में हमास की बर्बरता की निंदा न कर पुतिन ने जता दिया कि मध्यपूर्व के घटनाक्रम से उनकी बांछें खिल गयी हैं। उन्हें शायद यह उम्मीद भी होगी कि इजराइल-हमास युद्ध अरब दुनिया के अन्य हिस्सों तक फैल जाएगा और इस सारी उथलपुथल के नतीजे में रूस-यूक्रेन युद्ध पर से लोगों का ध्यान हट जाएगा। बाईडन प्रशासन को पहले ही कांग्रेस से यूक्रेन की मदद के लिए प्रस्तावित बजट पारित करवाने में दिक्कत आ रही है। अब उसे इजराइल के मामले में भी ऐसा ही करना होगा। इसके पारित होने की प्रबल संभावना है, लेकिन मध्यपूर्व में टकराव बढ़ने पर यूक्रेन को मिलने वाली युद्ध सहायता में कमी आएगी, जिसका फायदा पुतिन को होगा। मध्यपूर्व के हालात का फायदा उठाते हुए मास्को ने यूक्रेन के डोमबास इलाके में अवडीव्का के आसपास के क्षेत्र पर दुबारा कब्जा करने का महंगा और महत्वाकांक्षी 10-दिवसीय अभियान प्रारंभ कर दिया है। यदि गाजा और इजराइल का घटनाक्रम न हुआ होता तो यह अभियान दुनिया भर के अखबारों की सुर्ख़ियों में होता।
यह युद्ध रूस के लिए आर्थिक दृष्टि से भी फायदेमंद होगा। तेल और गैस की कीमतें बढ़ने से रूस (और ईरान) की आमदनी बढ़ेगी जिसका उपयोग यूक्रेन युद्ध में किया जा सकेगा। लेकिन रूस को इससे अधिक खुशी इस बात से होगी कि मध्यपूर्व के संबंध में अमरीकी योजनाएं धरी की धरी रह गईं। पुतिन ने जोर देकर मध्यपूर्व में तनाव बढ़ने का दोष इस इलाके में जंगी जहाज़ भेजने के अमरीका के फैसले पर मढ़ा था। उन्होंने यह भी कहा था कि इस तरह के क्षेत्रीय टकराव ‘‘साझा खतरा हैं जिनसे रूस-चीन संबंधों को मजबूत करने में सहायता मिलती है”।यह सच है कि पुतिन की ही तरह शी जिनपिंग भी इस बढ़ती उथलपुथल से आल्हादित हैं।
चीन ने भी हमास की निंदा नहीं की है जिससे इजराइल को कुछ ढांढ़स बंधता। वाल स्ट्रीट जर्नल की एक खबर के मुताबिक गाजा में घुसने की तैयारी कर रही हथियारों से लैस इजरायली सेना और टकराव के क्षेत्र की ओर बढ़ते अमरीकी युद्धपोतों की तस्वीरें एकसाथ प्रकाशित कर चीनी समाचार माध्यम यह धारणा उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हैं कि यह सब वाशिंगटन के नेतृत्व में हो रहा है। और बेल्ट एंड रोड सम्मेलन में शी जिन पिंग ने अमरीकी नेतृत्व के विकल्प के रूप में अपने देश को प्रस्तुत किया और व्लादिमीर पुतिन को भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने का मौका दिया।
इजराइल और हमास के बीच टकराव की ओर दुनिया का ध्यान केन्द्रित होने से जहाँ क्रेमलिन खुश है वहीं बीजिंग अमरीका की प्रतिष्ठा गिरने और उसके बोलबाले को चुनौती दिए जाने से प्रसन्न है। लेकिन इजराइल और ईरान समर्थक किसी अन्य संगठन के बीच यदि एक बड़ी जंग छिड़ती है तो मास्को और बीजिंग दोनों के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी। और दुनिया शायद दो हिस्सों में बंट जाए। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)