इमरान खान एक हर-दिल-अज़ीज़ शख्शियत के मालिक हैं – या कम से कम थे।उन्होने बतौर क्रिकेटर पूरी दुनिया का मनोरंजन किया और दर्शको का दिल जीता।वे महिलाओं में विशेष लोकप्रिय थे और उनकी छवि एक लेडीकिलर और प्लेबॉय की थी।पाकिस्तान के लिए वे ऐसा हीरा थे जिसने उस देश को पहली और आखिरी बार क्रिकेट वर्ल्ड कप में जीत दिलवाई। यही कारण था कि जब वे राजनीति के अखाड़े में उतरे तब उनके पास पहले से ही समर्थकों की विराट फौज तैयार थी। अपने नए अवतार में वे एक प्रभावी वक्ता के रूप में उभरे जो लोगों को मोह भी सकता था और उनमें गुस्सा और जुनून भी भर सकता था। सियासतदां के रूप में इमरान खान अपनी अति धार्मिकता और अतिवादी विचारों के लिए जाने जाते थे। यहां तक कि उन्हें तालिबान खान कहा जाने लगा था। पत्रकार उनका मजाक बनाते थे और राजनीति के मैदान के पुराने खिलाड़ी उन्हें गंभीरता से लेने को तैयार नहीं थे।उन्होंने अपनी खुद कीपार्टी बनाई जिसके हाथ ‘नए पाकिस्तान’का नारा लग गया और अंततः वे देश के प्रधानमंत्री बन गए।
परंतु जितनी तेजी से उनका उत्थान हुआ था उतनी ही तेजी से उनका पतन भी हुआ।
पिछले अप्रैल में एक अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के बाद उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा। उनकी खिलाफत में सभी विपक्षी पार्टियां एक हो गईं थीं। फिर नवंबर में एक रैली में उनके काफिले पर एक बंदूकधारी ने गोलियां दागीं। उनके समर्थकों का कहना था कि यह दरअसल उन्हें जान से मारने की साजिश थी। बहरहाल, गोलियां उनके पैर में ही लगीं। उनपर भ्रष्टाचार के कई आरोप थे और अदालतों में सुनवाईयां चल रहीं थीं। परंतु इस सबके बाद भी वे अविचलित थे। उन्होंने सेना के खिलाफ जो नैरेटिव बनाया वह लोगों को ठीक लगा। वे पाकिस्तान में मकबूल बने रहे।
परंतु इस शनिवार उनकी उम्मीदें धूल में मिल गईं। भ्रष्टाचार के एक मामले में उन्हें तीन साल कैद की सजा सुनाई गई और पांच साल के लिए राजनीति में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया। पुलिस ने बिना देरी किए लाहौर में उनके घर से इमरान को हिरासत में ले लिया। इस गिरफ्तारी के साथ ही वे देश में अगले नवंबर में होने वाले आमचुनाव में उम्मीदवार बनने के लिए अपात्र हो गए हैं।वैसे तो पहले भी इसमें कोई शक नहीं था परंतु अब एक बार फिर यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान पर सेना का पूरा नियंत्रण है और वहां की सरकार की ताकत का स्त्रोत सेना ही है। और चाहे लोग सेना की कितनी ही खिलाफत करें यह स्थिति बदलने वाली नहीं है।
अपनी गिरफ्तारी के बाद भी इमरान खान शांत नहीं बैठे। उन्होंने एक वीडियो वक्तव्य में कहा कि उनकी राजनीति दरअसल पाकिस्तान की आत्मा को आजाद कराने की राजनीति है। उन्होंने कहा, ‘‘आपके लिए बस मेरी एक अपील है।चुपचाप बैठे मत रहिए। अपने घर में छुपे मत रहिए। मैं यह संघर्ष अपने लिए नहीं कर रहा हूं। मैं यह संघर्ष आपके लिए और आपके बच्चों के भविष्य के लिए कर रहा हूं।”
इस गिरफ्तारी के साथ ही सेना और इमरान के बीच चूहा-बिल्ली का खेल खत्म हो गया है। अब सवाल यह है कि क्या 70 साल के इमरान चुप बैठ जाएंगे। क्या हम यह मान लें कि राजनीति के क्रिकेट मैच में उन्हें क्लीन बोल्ड कर दिया गया है।
अपनी गिरफ्तारी से कुछ समय पहले अल जजीरा के साथ एक इंटरव्यू में इमरान गरज रहे थे,“किसी भी ऐसे विचार जिसका समय आ गया है को आप रोक नहीं सकते। आप चुनाव सर्वे देखें। पीटीआई (इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ) को 70 प्रतिशत मतदाता पसंद कर रहे हैं। इस तरह की लोकप्रियता किसी दूसरी पार्टी को हासिल नहीं है। जो कुछ हो रहा है यह पागलपन है”।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इमरान के समर्थकों की संख्या बहुत बड़ी है। लोगों को उनसे सहानुभूति है। लोग उन्हें चाहते हैं। भले ही उनकी खुद की पार्टी के नेता उन्हें छोड़कर चले गए हों परंतु आम पाकिस्तानी अभी भी उन पर श्रद्धा रखते हैं और जनता में उनका इतना प्रभाव तो है ही कि वे पाकिस्तान के ‘सामान्य हालातों’को असामान्य बना सकते हैं। परंतु यह भी सच है कि पाकिस्तान का इतिहास राजनैतिक पतन का इतिहास रहा है। सभी निर्वाचित प्रधानमंत्री अंततः जेल पहुंचे और सेना ने यह सुनिश्चित किया कि उसके बाद वे फिर कभी राजनीति में वापिस नआ पाएं। इसके विपरीत चारों सैनिक तानाशाहों – अयूब खान, याह्या खान, जिया-उल-हक और परवेज मुशर्रफ – में से एक को भी चुनी हुई सरकार का तख्ता पलटने और संविधान का उल्लंघन करने के लिए किसी अदालत का सामना नहीं करना पड़ा।
निःसंदेह इमरान के पास अपनी सजा के खिलाफ अपील करने का हक है और यह भी हो सकता है कि उन्हें कुछ राहत मिल जाए। परंतु सेना को उनका जो नुकसान करना था वह कर चुकी है। इमरान के लिए राजनीति में वापसी के दरवाजे धीरे-धीरे बंद किए जा रहे हैं। आने वाले समय में पाकिस्तान की डरी-सहमी नागरिक संस्थाएं, जो सेना के इशारों पर नाचती हैं, राजनीति में वापस आने के उनके सारे रास्ते बंद कर देंगीं। मजे की बात यह है कि शहबाज शरीफ की सरकार भी पीटीआई को विघटित करने का समर्थन कर रही है और इमरान की गिरफ्तारी को इंसाफ की जीत बता रही है। यह सेना के इशारे पर हो रहा है या इसके पीछे शहबाज शरीफ की मौकापरस्ती मात्र है, यह कहना मुश्किल है। सरकार ने यह भी कहा है कि देश में जल्द से जल्द राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता कायम की जानी चाहिए।
परंतु राजनैतिक और आर्थिक स्थिरता पाकिस्तान के लिए एक सपना ही बना रहेगा। पाकिस्तान में जल्द ही गृहयुद्ध शुरू हो सकता है। पहले ही से अराजक माहौल को इमरान खान के समर्थक और अराजक बनाएंगे। नवंबर में होने वाले चुनाव एक दिखावा भर होंगे और जनरल ही यह तय करेंगे कि अस्थिर पाकिस्तान पर किसकी अस्थिर सरकार का अस्थिर शासन रहेगा। जनरल राजनीति में लगातार दखल देते रहे हैं और इमरान खान द्वारा इस मसले को बार-बार उठाए जाने के कारण वे पाकिस्तान के लोगों के गुस्से के निशाने पर हैं। वे देश के दुश्मन नंबर 1 बन गए हैं। जहां तक खान का सवाल है उन्हें क्रिकेट वर्ल्ड कप पाकिस्तान लाने के अलावा उम्मीद की लहरों पर सवार गृहयुद्ध पाकिस्तान को भेंट करने के लिए भी याद किया जाएगा।(कॉपी: अमरीश हरदेनिया)