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पाक में इमरान के दिवानों का हंगामा!

Image Source: social media

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को सुर्खियों में रहना पसंद है। भले ही उन्हें जेल में डाल दिया गया हो। मगर इमरान लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में अब भी कामयाब हैं। दो महीने पहले सभी को यह जानकर हैरानी हुई थी कि वे आक्सफोर्ड का अगला चांसलर बनने की दौड़ में शामिल हैं। इन दिनों वे चर्चा में इसलिए हैं क्योंकि पाकिस्तान की सड़कों पर उन्हें लेकर हंगामा मचा हुआ है।

इसकी शुरूआत पिछले हफ्ते हुई जब खैबर मख्तूनवा प्रान्त के मुख्यमंत्री अली अमीन गंडापुर ने मंच से गरजते हुए कहा “पाकिस्तानियों कान खोल कर सुन लो। यदि एक या दो हफ्ते में इमरान खान को कानूनी तरीके से रिहा नहीं किया गया तो हम खुद उन्हें आजाद करा लेंगे”।

और हंगामा शुरू हो गया – और बढ़ता ही गया।

इमरान खान के समर्थक पिछले हफ्ते के आखिर से देश के विभिन्न हिस्सों से इस्लामाबाद के लिए कूच कर रहे हैं। पीटीआई (इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ) समर्थकों के ऐसे ही एक जत्थे की अगुवाई इमरान खान की पत्नि बुशरा बीबी कर रही हैं। इस्लामाबाद की ओर बढ़ता यह जत्था झंडों और बैनरों से लैस है और पूर्व प्रधानमंत्री का एक पोस्टर गुब्बारों के सहारे उनके सिरों के कुछ ऊपर हवा में तैरता रहता है। कुछ लोग इमरान खान का मुखौटा लगाए हुए हैं और उनके जिंदाबाद के नारे बुलंद कर रहे हैं। इस्लामाबाद की सभी सीमाओं की पानी की बौछार वाले कंटेनर लगाकर नाकेबंदी कर दी गई है, इंटरनेट पर रोक है और लाकडाउन लगा दिया गया है। आंदोलनकारियों ने जानबूझकर आंदोलन ऐसे समय में शुरू किया है जब इस्लामाबाद में बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको की तीन दिवसीय यात्रा की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं। अब सरकार किसी भी तरह पीटीआई के आक्रोशित और जोशीले समर्थकों को इस्लामाबाद से बाहर रखने में जुटी हुई है।

इमरान खान पाकिस्तान की विपक्षी राजनीति का प्रमुख चेहरा बने हुए हैं। उनका नाम अखबारों और अदालतों में गूंजता रहता है। इस साल के शुरू में हुए चुनाव में जीतने वाले इमरान समर्थक निर्दलीय उम्मीदवारो की संख्या, किसी भी पार्टी के निर्वाचित उम्मीदवारों से अधिक थी, जिसके चलते इमरान के विरोधियों को उनका रास्ता रोकने के लिए हाथ मिलाना पड़ा। यह इसके बावजूद हुआ कि इमरान के कई प्रमुख उम्मीदवार या तो जेल में थे, या भूमिगत थे। और उन्हें उनका जाना-पहचाना चुनाव चिन्ह क्रिकेट का बल्ला हासिल नहीं हो सका था। मात्र 58 प्रतिशत साक्षरता वाले देश में चुनाव चिन्ह का क्या महत्व होता है, यह बताने की ज़रुरत नहीं है। पीटीआई को कई सीटों के चुनावी नतीजों में हेराफेरी का आरोप लगाते हुए न्यायालय की शरण लेनी पड़ी, लेकिन वह खैबर मख्तूनवा में सरकार बनाने में सफल रही और पंजाब में सबसे बड़ा विपक्षी दल बनने में भी।

इस सारे घटनाक्रम से इमरान खान के प्रति जनसमर्थन बढ़ा और वे राजनीतिक दृष्टि से सशक्त हुए। अपने वकीलों और परिवारजनों के जरिए उन्होंने अपने आक्रोश भरे संदेश बाहर पहुंचाने शुरू किए, जिन्हें उनके समर्थक सोशल मीडिया के जरिए लगातार दूर-दूर तक पहुंचा रहे हैं।

इस बीच इमरान के खिलाफ नए-नए प्रकरण दायर किए जाते रहे। सेना को उम्मीद थी कि वे ताजिंदगी जेल में सड़ते रहेंगे। लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ के एक समूह ने उन्हें कैद रखे जाने को मनमाना कृत्य बताया और पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने पीटीआई पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ आगाह किया। इन बाहरी ताकतों ने 71 वर्षीय खान का मनोबल बढ़ाया। वे अभी भी अविचलित हैं। वे अपनी जबरदस्त लोकप्रियता का फायदा उठाते हुए जंगी प्रदर्शन आयोजित करवा रहे हैं जिससे पहले से अलोकप्रिय सरकार के सामने और चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। शहबाज शरीफ की सरकार को जबरदस्त जनाक्रोश का सामना करना पड़ रहा है। उसकी साख को आम जनता में व्याप्त इस धारणा से बहुत धक्का लगा है कि फरवरी 2024 के चुनावों में हेराफेरी की गई है।

वैसे भी, देश की अर्थव्यवस्था डावांडोल है, और पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से 25वां राहत पैकेज ले रहा है। तालिबान की शाखा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) द्वारा बार-बार किए जा रहे आतंकी हमलों से पाकिस्तान और अधिक असुरक्षित देश बन गया है (टीटीपी ने पाकिस्तानी संविधान और सरकार को मिट्टी में मिलाना अपना लक्ष्य बना रखा है)। इन सबसे सरकार राजनैतिक दृष्टि से और कमजोर हो गई है।

इस्लामाबाद की ओर बढ़ते जन सैलाब ने शाहबाज शरीफ सरकार की समस्याओं को बहुत बढ़ा दिया है। शहर की किलेबंदी से यह साफ है कि सरकार कितनी घबराई हुई है। पीटीआई के विरूद्ध सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। पार्टी के अध्यक्ष और सांसद गौहर अली खान को कुछ दिनों तक कैद में रख गया। और उसके अन्य बहुत से नेता पुलिस की हिरासत में हैं।

आखिर इमरान खान के समर्थक सड़कों पर इतना हंगामा क्यों बरपा रहे हैं? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह ध्यान दूसरी ओर खींचने के लिए किया जा रहा है। विरोध प्रदर्शनों से अमूमन सरकार के कमजोर होने के हालात बनते हैं। यद्यपि स्थानीय मीडिया का मानना है कि पीटीआई इनका उपयोग खान को रिहा करवाने के लिए करेगी। इस धारणा का आधार यह है कि विरोध प्रदर्शनों के पिछले दौर के नतीजे में इमरान खान की पत्नी बुशरा बीबी की रिहाई हुई थी।

लेकिन कुल मिलाकर, भविष्य में हालात और खराब होने का अंदेशा है। यह भी हो सकता है कि सेना और सख्त रूख अख्तियार करे। हालांकि पाकितान की राजनीति में लंबे समय से सेना का दखल रहा है लेकिन नागरिक सरकार के फैसले लेने की आजादी का दायरा घटता-बढ़ता रहा है। इस समय यह दायरा बहुत तंग है और सेना का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। सरकार विरोध को सख्ती से दबाकर खान की पार्टी का खात्मा करना चाहती है। इमरान खान भले ही आम जनता में लोकप्रिय हों और उनकी पार्टी के सदस्य भले अपने नेता का नाम सुर्खियों में बनाए रखने में सफल रहे हों, लेकिन वे उन्हें सींखचों के पीछे से निकालने में सक्षम नहीं हैं। क्योंकि वहां सेना की मर्जी चलती है। इमरान खान अभी भी इस बात के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं कि उन पर मुकदमा सैनिक अदालत में न चले। इमरान को राजनीति से दूर रखना और कश्मीर में टकराव जारी रखना – ये दोनों सेना के परम लक्ष्य हैं। इमरान खान जितना जोर लगाएंगे,  सेना उनकी राह में उतनी ही बाधाएं खड़ी करेगी। और पाकिस्तान जितना ज्यादा आंतरिक टकरावों में उलझता जाएगा, बाहरी ताकतों का उसके मामलों में हस्तक्षेप करना उतना ही आसान होता जाएगा।

यह भारत के लिए बेहतर भी हो सकता है। और बदतर भी। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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