क्या भारत को ओलंपिक खेलों का आयोजन करना चाहिए? और उससे ज्यादा अहम यह कि क्या भारत में ओलंपिक खेलों का आयोजन करने की क्षमता है?
गत 27 जुलाई को नीता अंबानी, जो अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) की सदस्य भी हैं, ने पेरिस में इंडिया हाउस के उद्घाटन के मौके पर कहा, “भारत में ओलंपिक का आयोजन 140 करोड़ भारतीयों का सपना है”।
क्या वाकई? मुझे तो ऐसा नहीं लगता। मैं निराशावादी नहीं दिखना चाहती, लेकिन मुझे लगता है कि ज्यादातर भारतीयों का सपना यह है कि उनकी मूलभूत जरूरतें – नौकरी, रोटी, कपड़ा, मकान और गाड़ी – पूरी हो सकें। या शायद एक और क्रिकेट विश्व कप या आईपीएल का भारत में आयोजन हो जाए। लेकिन ओलंपिक शायद भारतीयों का सपना नहीं है।
ज्यादातर भारतीयों को तो हाल में ख़त्म हुए ओलंपिक के बारे में मालूम ही नहीं था और आज भी मालूम नहीं है। न उन्हें उन खेलों के बारे में जानकारी है जो ओलंपिक में होते हैं और ना ही उनमें भाग लेने वाले खिलाड़ियों को वो जानते हैं। ज्यादातर लोग पेरिस गए भारत के 117-सदस्यीय दल के पांच सदस्यों को भी नहीं जानते। यह कहकर कि भारत में ओलंपिक 140 करोड़ भारतीयों का सपना है नीता अंबानी ने यह जाहिर कर दिया है कि ज़मीनी हकीकत से उनका कोई ख़ास वास्ता नहीं है।
हां, मगर यह पक्का है कि कम से कम एक भारतीय का यह सपना है। और वे हैं श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी। नरेन्द्र मोदी रिलाएंस समूह के वित्तीय सहयोग से और नीता अंबानी में आत्मविश्वास के अतिरेक का फायदा उठाते हुए ओलंपिक खेलों का आयोजन भारत में करवाना चाहेंगे। यही वजह है कि इस ओलंपिक के दौरान नीता अंबानी काफी सक्रिय रहीं। उन्होंने भारतीय खिलाड़ियों का यशगान किया और आईओसी के पदाधिकारियों से व्यक्तिगत निकटता स्थापित करने के भरपूर प्रयास किये। बताया जाता है कि आईओसी के कई सदस्य उनके बेटे के विवाह में भी शामिल हुए थे। यह भी बताया जाता है कि पेरिस में भारत ने पर्दे के पीछे से 2036 का ओलंपिक अपने यहां करवाने के पक्ष में अभियान चलाया।
यदि भारत को यह अवसर मिलता है – और यह ‘अगर’ बहुत बड़ा है – तो यह मोदी के लिए वोटों की सूनामी ला देगा और वे शायद तक तक सत्ता में बने रहेंगे जब तक ईश्वर उन्हें इस धरती पर रहने देगा। अंबानी दंपत्ति के लिए इसका मतलब होगा ढेर सारी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति, प्रभाव में बढोत्तरी और अगली कम से कम पांच पीढ़ियों की अटूट समृद्धि। धनी और धनी बन जाएंगे। इससे आपके और मेरे हिस्से में सिर्फ परेशानियां ही आएंगीं। हमें अधिक कर चुकाना होगा, हमारा जीवनस्तर गिरेगा, हम मध्यमवर्ग में ही बने रहेंगे और गरीब ज्यादा गरीब और दबा कुचला हो जाएगा। और हमारे लिए बच रहेंगे आंखों को चुभने वाले स्टेडियम और खेल गांव जो राजस्थान की हवेलियों की तरह अतंतः वीरान और खंडरनुमा बनेंगे।
लेकिन यदि ऐसा करने के लिए शक्तिशाली-अमीर लोग आमादा हैं तो यह होकर रहेगा। धन और अंधभक्ति का मिश्रण और देश के लिए कुछ करने के नाम पर भारत क्षमता न होने के बावजूद ओलंपिक की मेजबानी करता हुआ होगा!
भारत में वाकई यह क्षमता नहीं है। जैसा कि मैंने पहले लिखा था, ओलंपिक की मेजबानी करने वाला देश बनने के लिए हमें पहले खेलों को महत्व देने वाला और खेल खेलने वाला राष्ट्र बनना होगा। चीन पहले एक खेलने वाला देश बना और उसके बाद उसने 2008 में दुनिया को ओलंपिक का आयोजन करने की अपनी क्षमता दिखाई। हमें आज भी याद है कि वह आयोजन कितना भव्य और मंत्रमुग्ध करने वाला था! चीन ने कई दशकों तक ओलंपिक खेलों का बहिष्कार किया और जब 1980 के दशक में उसने उनमें दोबारा हिस्सा लेना शुरू किया तब उसने उतने पदक नहीं जीते जितने उसे अपने आकार और आबादी के अनुपात में जीतने चाहिए थे। लेकिन समय के साथ सरकार ने खिलाड़ियों के प्रशिक्षण में अधिकाधिक धन और अन्य संसाधन झोंके। नतीजा यह कि 1988 के ओलंपिक में केवल दो प्रतिशत स्वर्ण पदक हासिल करने वाला चीन 2024 में 11 प्रतिशत स्वर्ण पदक जीतने वाला देश हो गया। वह अब तक 303 ओलंपिक स्वर्ण पदक जीत चुका है और पदक तालिका में पहला या दूसरा स्थान हासिल करता आ रहा है। चीन ने पहली बार 1993 में 2000 के ओलंपिक खेल आयोजित करने की दावेदारी की। मगर वह सफल न हो सका। अंततः उसे 2008 के खेलों की मेजबानी हासिल की और वह भी पेरिस और टोरंटों को पराजित कर।
क्या भारत चीन के आसपास भी है? देशभक्तों को बुरा लग सकता है मगर कटु सत्य यह है कि भारत का चीन से कोई मुकाबला नहीं है।
बताया जाता है कि चीन खेलों पर हर साल 3 लाख करोड़ रूपये खर्च करता है। भारत में यह रकम 3,442 करोड़ है, जो इस वर्ष के अंतरिम बजट में आवंटित की गई थी। खेल मंत्रालय की सबसे बड़ी योजना ‘खेलो इंडिया’ के लिए 900 करोड़ रूपये निर्धारित किए गए थे, जो पिछले वर्ष के बजट में आवंटित की गई राशि से केवल 20 करोड रूपये़ ज्यादा हैं। इसी दौरान राष्ट्रीय खेल विज्ञान एवं अनुसंधान केन्द्र का बजट 10 करोड़ से घटाकर 8 करोड़ कर दिया गया, वहीं राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय का बजट बढ़ाकर 91।90 करोड़ कर दिया गया। खिलाडियों के लिए प्रोत्साहन राशि का बजट पहले के 84 करोड़ रूपये से बहुत कम करते हुए 39 करोड़ कर दिया गया है।
कुल मिलाकर भारत एक साल में खेलों पर जितना व्यय करता है, वह चीन के व्यय का केवल 1।13 प्रतिशत है।
क्या हम मुकाबले में हैं? किसी को लग सकता है कि हमारे पास प्रचुर मानव संसाधन (दुनिया की सबसे बड़ी आबादी) और धन (पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था) है। लेकिन यह सब कहने-सुनने में ही अच्छा लगता है।
कड़वा सच यह है कि भारत अब तक खेलने वाला देश बनने में असफल रहा है। हम बहुत ही आलसी और आरामतलब हैं। हम हिसाब-किताब में माहिर हैं, रटने में हमें विशेषज्ञता हासिल है, विज्ञान का अध्ययन करने में हम सक्षम हैं, हम घंटो प्रयोगशालाओं में काम कर सकते हैं, टेबिल-कुर्सी पर बैठकर टाईपिंग कर सकते हैं लेकिन कपड़े और शरीर मैले करना, पसीना बहाना हमारे बस की बात नहीं है। हम गिल्लीडंडा से मिलता-जुलता क्रिकेट खेलते हैं। बस हमारी खेलने की क्षमता इतनी ही है। हम पूजा-पाठ करने वाले लोग भी हैं। डटकर मुकाबला करना, सफलता की भूख और उसके लिए जीजान लगा देना हमारे खून में नहीं है। जब हमारी क्रिकेट टीम पाकिस्तान से फाईनल मैच हारती है तो हम बसें और खिलाड़ियों के पुतले जलाते हैं।
और यदि हमारे बीच से कोई लीक से हटकर विनेश फोगाट या अविनाश साबले निकलता है, तो हमारा समाज और उसका घिसा-पिटा नजरिया उनकी राह में रोड़े डालने में जुट जाता है। यदि वे इस बाधा को पार कर भी लेते हैं तो हमारी सरकार, हमारा तंत्र उसके लिए बाधाएं खड़ी कर देते हैं। नौकरशाही, भ्रष्टाचार, नकारात्मकता, असुरक्षा, ईर्ष्या – ये सब हमारे देश में भरपूर मात्रा में मौजूद हैं। हमें एक खेलने वाला देश बनने के लिए इन हालातों को बदलना होगा और अपने बच्चों और दूसरों के बच्चों को टेनिस खेलने, पहलवानी करने, एथलीट या तैराक बनने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। पहले हमें खेलों का प्रशंसक बनना होगा, खेलों में रूचि रखने वाला बनना होगा, उसके बाद ही हम ओलंपिक खेलों की मेजबानी की कोशिशें करें यही उचित होगा।
नीता अंबानी जी, मैं समझ रही हूं कि आप की आकांक्षाएं आकाश क्यों छू रही हैं। आप ‘अपने’ भारत को ओलंपिक की मेजबानी करते देखना चाहती हैं। आपको लगता है कि भारत बहुत शक्तिशाली बन गया है क्योंकि आपने कई प्रसिद्ध लोगों को अपने बेटे की शादी में नचवाया। या जैसा कि एसोसिएटिड प्रेस ने अपनी खबर में कहा, “अब दुनिया भर में अंबानी परिवार की प्रतिष्ठा भव्य और खर्चीले आयोजनों की मेजबानी करने वालों की बन गई है। उनके पुत्र अनंत की शादी से जुड़े जश्न कई महीनों तक चले और मुंबई में हुई शादी में दुनिया भर के बड़े नेता, ए-लिस्ट कलाकार और आईओसी के कई सदस्य शामिल हुए, जिनके वोट से ही यह तय होता है कि ओलंपिक खेलों की मेजबानी कौन करेगा।”
लेकिन असली भारत तो घिसट रहा है। और आपने उसका संघर्ष और मुश्किल बना दिया है। रिलाइंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने अपने 11 प्रतिशत कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। यानि असली भारत के 42,000 लोग बेरोजगार हो गए हैं। अब वे भारत को ओलंपिक आयोजित करते देखना चाहेंगे या उनका नौकरी हासिल करना? और कितने भारतीय उन बड़ी हस्तियां के कार्यक्रमों में जाने का सपना देख सकते हैं जिन्हें आपने करोड़ों-अरबों रूपये की फीस चुकाकर बुलवाया था? भारत का विकास केवल आप जैसे कुछ लोगों के लिए हुआ है। मोदी का भारत आपके और आप जैसे लोगों के लिए ही सोने की चिड़िया है।
दुःखद सच्चाई यह है कि मेरा भारत अभी भी बहुत पिछड़ा हुआ है।
इसलिए हमें ओलंपिक की मेजबानी करने की कोशिशों से तौबा कर लेना चाहिए। पहले हम एक वास्तविक रूप से समृद्ध और सबको समान दर्जा देने वाले राष्ट्र बनें। पहले हम अपने खिलाड़ियों का सम्मान करना शुरू करें। उनसे और उनके खेलों से नाता जोड़ें। उसके बाद एक खेलने वाला देश बनें। लास एंजिल्स में ज्यादा पदक जीतने का लक्ष्य बनाएं। टीवी चैनलों और आपके जीओ टीवी पर सिर्फ क्रिकेट ही नहीं बल्कि अन्य खेलों का अधिक प्रसारण हो। तब हो सकता है कि जब ईशा और अनंत 60 साल के हो जाएं, जितने की आप आज हैं, तब हम ओलंपिक की मेजबानी के लिए सही मानसिकता वाला और उपयुक्त राष्ट्र बन सकें।
आज का भारत ओलंपिक की मेजबानी करने के लिए तैयार नहीं है, कतई नहीं। इसलिए, श्रीमती अंबानी, मुझे पूरी उम्मीद है कि आप यह विचार छोड़ देंगीं और श्री मोदी को भी इसके लिए राजी कर लेंगी – देश की खातिर। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)