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बाइडन, ट्रंप दोनों के कारण युद्धविराम

Israel Hamas CeasefireImage Source: ANI

Israel Hamas Ceasefire: आखिरकार गाजा में युद्धविराम हो ही गया। आठ महीने चली थकाऊ बातचीत के बाद अमरीका के पुराने और नए प्रशासन तथा मिस्र व कतर की साझा कोशिशों से इजराइल और गाजा के इस्लामिक संगठन हमास के बीच युद्धविराम समझौते पर दस्तखत हो गए हैं।

जो बाइडन ने उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और विदेश मंत्री एंटोनी बिल्कन की मौजूदगी में युद्धविराम का स्वागत करते हुए बताया कि उन्होंने और उनके प्रशासन ने इस मुकाम को हासिल करने के लिए क्या-क्या किया।

लेकिन जब बाइडन जाने लगे तब एक संवाददाता ने उनसे जानना चाहा कि इसका श्रेय किसे दिया जाना चाहिए।

जवाब में बाइडन ने चिढ़ कर पूछा,  “क्या आप मजाक कर रहे हैं?”

दरअसल समझौता जिस समय हुआ उसके कारण इस तरह के सवाल हैं। समझौता इतवार से लागू होगा – बाइडन के व्हाइट हाउस छोड़ने और डोनाल्ड ट्रंप के वहां आने के एक दिन पहले।

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बाइडन और ट्रंप दोनों चाहते थे कि यह मसला 20 जनवरी के पहले सुलझ जाए। यदि यह युद्धविराम टिकाऊ साबित होता है तो यह बाइडन की सफलता का सबूत होगा।

वे उम्मीद करेंगे कि इससे इजराइल-फिलिस्तीन टकराव का सबसे भयावह अध्याय ख़त्म होगा और अमरीकी व इजरायली बंधक रिहा हो सकेंगे।(Israel Hamas Ceasefire)

दूसरी ओर, ट्रंप के लिए इस समय समझौता होना इसलिए शुभ है क्योंकि एक बड़ी समस्या उनका दूसरा कार्यकाल शुरू होने के पहले ही सुलझ जाएगी। वे दूसरे अहम मसलों पर ध्यान दे सकेंगे।

ऐसा लग रहा है कि इस युद्धविराम के असली हीरो ट्रंप हैं। चुनाव जीतने के ठीक बाद उन्होंने इजराइल से साफ शब्दों में कहा था कि वे नहीं चाहते कि व्हाइट हाऊस में प्रवेश करते ही उन्हें मध्यपूर्व में चल रहे युद्ध में हस्तक्षेप करना पड़े।

लेबनान और अब गाजा में युद्धविराम

ऐसा लगता है कि उनके इस कड़े तेवर के चलते ही पहले लेबनान और अब गाजा में युद्धविराम हो सका।

इजरायली मीडिया के एक हिस्से के मुताबिक मध्यपूर्व के लिए डोनाल्ड ट्रंप के विशेष दूत स्टीवन विटकॉफ के तेवरों ने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के सहयोगियों को चौंका दिया था।

उन्होंने इजराइल को बिना किसी लागलपेट के साफ संदेश दिया कि ट्रंप चाहते हैं कि युद्ध खत्म हो।

लेकिन क्या युद्धविराम का मतलब युद्ध की समाप्ति है?(Israel Hamas Ceasefire)

ऐसा नहीं है। कई उलझनें जंग के खात्मे की राह में बाधक हैं।

कितने बंधक अभी भी जिंदा

पहलीव बात, यह साफ नहीं है कि कितने बंधक अभी भी जिंदा बचे हैं। इजरायली गुप्तचर संस्थाओं का मानना है करीब आधे ही जीवित बचे होंगे।(Israel Hamas Ceasefire)

यह भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि हमास सभी जीवित बंधकों को वापिस सौंपने की स्थिति में है या नहीं क्योंकि कईयों को अन्य फिलिस्तीनी संगठनों ने बंधक बनाया था।

दूसरी बात यह है कि गाजा की लगभग एक-तिहाई ज़मीन पर अभी इजराइल का कब्जा है। वह भविष्य में सुरक्षा की गारंटी मांग रहा है, जिसे स्वीकारने को हमास तैयार नहीं होगा।

इजरायली सरकार अभी भी ‘पूर्ण विजय’ की बात कर रही है और आधिकारिक रूप से यह नहीं मान रही है कि युद्ध जल्दी ही समाप्त हो सकता है।

बेंजामिन नेतन्याहू भले ही समझौते के लिए राजी हो गए हों, लेकिन उन्हें इस पर अपनी मंत्रिपरिषद की मंजूरी की मुहर लगवानी होगी। उनके कई उग्रपंथी मंत्री लड़ाई की समाप्ति के खिलाफ हैं।

नतीजे में उनकी सरकार ही गिर जाए

पुराना अनुभव हमें बताता है कि इस तरह की टसल का अंतिम नतीजा क्या होता है। संभव है इस बार बीबी सफल हो जाएं, परंतु इस बात की भी संभावना है कि इसके नतीजे में उनकी सरकार ही गिर जाए।

नेतन्याहू जानते हैं कि गाजा में बड़े पैमाने का युद्ध दुबारा छेड़ने पर उन्हें डोनाल्ड ट्रंप की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा और वे ट्रंप का गुस्सा मोल लेने खौफ खाते हैं।

फिलहाल तो युद्धविराम स्वागतयोग्य और उम्मीदें जगाने वाला  है। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद क्या हो सकता है, इस डर और आशंका के चलते सभी पक्षों ने युद्धविराम के लिए ठीक वही शर्तें मान ली हैं जो बाइडन प्रशासन ने मई में प्रस्तावित की थीं।

चाहे यह बाइडन के कारण हुआ हो या ट्रंप के कारण या किसी में समझदारी और करुणा का भाव जागने के नतीजे में – मगर युद्धविराम आशा जगाने वाला है।(Israel Hamas Ceasefire)

यह आशा भले ही डर का नतीजा हो मगर युद्धविराम अंततः उस बर्बर पाशविकता पर विराम लगाएगा जिसकी पीड़ा मानवता को झेलनी पड़ रही थी। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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