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नेतन्याहू के खिलाफ गुस्से की लहर!

लोगों ने 11 महीने तक दहशत, पीड़ा और वेदना झेली। इसके बाद भी उन्होंने उम्मीदें कायम रखीं। वे  एकजुट और धैर्यवान बने रहे। मगर अब इजराइली सड़कों पर उतर आए हैं – वे आक्रोशित हैं और नाराज भी।

अगस्त का आखिरी सप्ताहांत इजराइल के लिए उतना ही कष्टदायी और डरावना था, जितने 7 अक्टूबर और उसके बाद के दिन थे। छह बंधक, जिन्हें अपह्त किया गया था और जो 11 महीने तक हमास के कब्जे में थे और जीवित थे, के शव इजराइली सुरक्षा बलों (आईडीएफ) ने रविवार को गाजा की एक सुरंग से बरामद किए। उन्हें कुछ ही समय पहले निर्दयतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया गया था और ऐसा अनुमान है कि ऐसा शुक्रवार या शनिवार को किया गया होगा – आईडीएफ के वहां पहुंचने के थोड़ी देर पहले – इस उद्देश्य से कि उन्हें जीवित मुक्त न कराया जा सके। इजराइली अखबार हारेतेज़ के अनुसार उनके पोस्टमार्टम से ऐसा संकेत मिलता है कि उनकी हत्या सिर पर गोली मारकर की गई और यद्यपि वे शारीरिक दृष्टि से कमजोर थे लेकिन  स्वस्थ थे।

जैसे-जैसे ये भयावह तथ्य और इन लोगों की पहचान सामने आई, देश में गुस्से की लहर फैल गई। दसियों हजार इजराइलियों ने रविवार रात्रि को सड़कों पर प्रदर्शन किया। तेल अवीव से गुजरने वाले अयोलान हाईवे पर चक्का जाम कर दिया। उन्होंने सड़कों पर कई जगह आगजनी की। हमास के 7 अक्टूबर के हमले के बाद पहली बार राष्ट्रव्यापी पूर्ण हड़ताल हुई जो सोमवार को सुबह 6 बजे से शुरू हुई। देश मानो पूरी तरह से थम गया। आर्थिक गतिविधियाँ और दैनिक जीवन का कोई नामोनिशान न था। इजराइल का अंतर्राष्ट्रीय विमानतल, बेन-गुरियन बंद कर दिया गया। साथ ही स्कूल, विश्वविद्यालय, सरकारी कार्यालय और रेलवे स्टेशन भी।

इस नाराजगी, हड़ताल और लोगों के सड़कों पर उतर आने से स्पष्ट है कि लोग, प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की युद्धविराम का प्रयास करने के बजाए हमास की तबाही को प्राथमिकता देने की नीति को लेकर विभाजित हैं। सड़कों पर नजर आ रहा जबरदस्त गुस्सा एक तरह से युद्धविराम और अगवा हुए लोगों के मामले में समझौता करने का आव्हान है। प्रदर्शन के कुछ हफ्ते पहले छह अपह्त लोगों के शव बरामद होने से लोग पहले से ही उत्तेजित थे। इनमें से पांच के बारे में पहले से ही यह माना जा रहा था कि उनकी मौत हो चुकी है। इसके बाद युद्धविराम की बातचीत बंद हो गई।

बंधकों की मौत के लिए नेतन्याहू को जिम्मेदार बताया जा रहा है। लोगों का कहना है कि हमास नहीं बल्कि नेतन्याहू निर्दयता बरतते हुए सभी के खिलाफ युद्ध छेड़ रहे हैं।

इजराइली भी बेंजामिन नेतन्याहू से बहुत नाराज हैं। वहां से आ रही खबरों से इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि इजरायली जनता नेतन्याहू पर गाजा में बंधक लोगों की ‘हत्या’ का आरोप लगा रही है। उन्हें अपनों के कत्ल का दोषी बताया जा रहा है। यह सोच बहुत प्रबल है और प्रबल होती जा रही है।

बंधकों और लापता परिवारों के संगठन ने भी एक कड़ा बयान जारी करते हुए जनता से व्यापक विरोध प्रदर्शनों की तैयारी करने का आव्हान किया: “कल से देश काँप उठेगा…हम अब चुप रहने को तैयार नहीं हैं”। राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आव्हान करने वाले इजराइल के सबसे बड़े श्रमिक संगठन हिस्टाडस्ट को मार्च 2023 के बाद पहली बार यह कठोर और बड़ा निर्णय लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। उस समय विरोध का मुद्दा यह था कि नेतन्याहू ने अपने रक्षा मंत्री योएव गेलेंट को सरकार की न्यायिक सुधारों संबंधी योजनाओं का विरोध करने के कारण पद से हटाने का प्रयास किया था। अंत में नेतन्याहू अपना निर्णय बदलने को बाध्य हुए। एक समय ऐसा लगने लगा था कि बेंजामिन को पद छोड़ना पड़ सकता है। लेकिन फिर 7 अक्टूबर हो गया। देश अंधकार में डूब गया और प्रधानमंत्री को उनकी कुर्सी से चिपके रहने का मौका मिल गया। पद पर बने रहने की खातिर उन्होंने बंधकों को मुक्त करने का बहाना बनाकर गाजा पर बमबारी करने की निर्मम रणनीति अपनाई। उन्होंने जनता की व्यथा का लाभ उठाते हुए गाजा और फिलिस्तीनियों पर कहर ढ़ाया जिससे कई पश्चिमी देशों यहूदी-विरोधी माहौल बन गया।

यदि हड़ताल और जोर पकड़ती है, जनता का आक्रोश बढ़ता है, माहौल और गंभीर हो जाता है, तो इजराइल पूरी तरह से उथल-पुथल भरे हालातों में फँस जाएगा। इसका नतीजा या तो यह हो सकता है कि नेतन्याहू को जनता की मांग, उसकी पीड़ा और उसके दर्द के सामने झुकना पड़े और युद्धविराम समझौता करना पड़े। या फिर वे और ज्यादा बेरहमी बरतते हुए गाजा पर और अधिक व भयावह हवाई हमले करें। बेंजामिन नेतन्याहू के प्रधानमंत्री पद छोड़ देने की मांग भी जोर पकड़ सकती है और नए चुनावों का आव्हान हो सकता है, जिसका नतीजा और अधिक मौतें हो सकती हैं।

लेकिन मेरा मानना है कि इजरायली जागरूक और बुद्धिमान हैं। इसलिए जैसे-जैसे 7 अक्टूबर की तारीख  नजदीक आती जाएगी, लगातार बढ़ती बर्बरता का एक साल नज़दीक आता जायेगा, युद्धविराम की संभावनाएं भी बढ़ती जाएंगी। जो समझौता दुनिया की बड़ी ताकतें एकजुट होकर भी नहीं करा सकीं, शायद जनता वह करवा सके। क्योंकि जब जनता उठ खड़ी होती है तभी इंसाफ हो पाता है और बर्बरता समाप्त हो पाती है।

कम से ऐसी उम्मीद तो की ही जा सकती है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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