Israel-Hezbollah ceasefire deal : उम्मीदें दुबारा जाग गई हैं।
पश्चिम एसिया में तनिक शांति लौटी है। पिछले 14 महीनों से हिज़बुल्लाह और इजराइल की तकरार, लड़ाई कल थमी। हजारों विस्थापित लेबनानियों ने बेरूत और दक्षिणी लेबनान में युद्ध से बर्बाद और लगभग वीरान बस्तियां में लौटना शुरू किया है।
शांति कायम होने की ख़ुशी है। लेकिन साथ-साथ डर भी है। सीमा के दोनों ओर इस बात की चिंता है कि युद्धविराम कायम रहेगा या नहीं? । आशा है कि 60 दिन का यह युद्धविराम और लम्बा हो जाएगा।
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इजराइल सेना लेबनान से हटा लेगा
अमेरिका और फ्रांस की मध्यस्थता में हुए इस समझौते – जिसे इजराइल और लेबनान की सरकारों ने स्वीकार किया है- के अनुसार इजराइल अपनी सेना लेबनान से हटा लेगा।
हिज़बुल्लाह अपने लड़ाकों को दक्षिण लेबनान से बाहर भेज देगा। लेकिन इसकी समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि बहुत कुछ आगे के घटनाक्रम पर निर्भर करेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि हिज़बुल्लाह की किसी भी शत्रुतापूर्ण कार्यवाही का माकूल जवाब देने का अधिकार इजराइल सुरक्षित रखता है।
इस बीच हिज़बुल्लाह, जो पहले इस बात पर जोर देता था कि लेबनान का भविष्य गाजा से जुड़ा हुआ है , ने अपने ईरानी आकाओं के आशीर्वाद (और प्रोत्साहन) से अपना रवैया बदला और गाजा में चल रहे युद्ध से अपने को अलग करते हुए समझौता किया है।
हिज़बुल्लाह ने किसी से भी सलाह-मशविरा किए बिना इजराइल पर राकेट दागने का खतरनाक फैसला किया था।
इस भिडंत ने लेबनान को पिछले कई दशकों के सबसे भयावह युद्ध में धकेल दिया। इससे हिज़बुल्लाह लेबनान में और पूरे पश्चिमी एशिया में अलग-थलग पड़ा।
अब लेबनान के सामने बड़ी चुनौती
अब लेबनान के सामने अपने शहरों को फिर से बनाने की बड़ी चुनौती है। दुश्मन के शिविर में जासूसों के ज़रिये घुसपैठ कर इजराइल, हिजबुल्लाह के महासचिव आसीन हसन नसरूल्लाह सहित कई वरिष्ठ नेताओं की हत्या करवाने में सफल रहा है।
इजराइल ने इस संगठन के प्रति वफादार लोगों की बस्तियों पर बम हमले किए जिससे लाखों लोग अपने घर छोड़कर भागने का मजबूर हुए।
दर्जनों गांवों को बम से उड़ा दिया गया जिसके चलते बहुत से लोगों के सामने अब मुसीबत यह है कि अगर वे तुरंत वापिस आना चाहें भी तो उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है।
लेकिन हिज़बुल्लाह के लड़ाके और समर्थक अभी भी लेबनान में मौजूद हैं। वापिस लौटने वाले लोग हिज़बुल्लाह के पीले झंडे लहराकर यह संकेत दे रहे थे कि यह हिज़बुल्लाह की जीत है।
हिज़बुल्लाह युद्धविराम को अपनी जीत की तरह प्रस्तुत कर रहा है। जबकि वास्तविकता यह है कि हिज्बुल्लाह बुरी तरह तबाह है और उसके लिए अपनी पूर्व की शक्ति हासिल करना बहुत मुश्किल होगा। (Israel-Hezbollah ceasefire deal)
इसलिए हिज़बुल्लाह के लेबनान में और अन्य स्थानों पर मौजूद विरोधियों को उम्मीद है कि उसके कमजोर हो जाने से वह अब देश के राजनीतिक तंत्र पर अपनी मर्जी लादने में सक्षम नहीं रहेगा।
राजनैतिक दल की हिज़बुल्लाह को चुनौती
हालांकि यह देखना होगा कि कितने राजनैतिक दलों की इतनी हिम्मत होगी कि वे एक कमजोर हो चुके हिज़बुल्लाह को भी चुनौती दे सकें।
जहां तक इजराइल का सवाल है, बेंजामिन नेतन्याहू कईयों के विरोध के बावजूद युद्धविराम को स्वीकार करने के लिए बाध्य हुए है। देश में और दुनिया में उनकी छवि बिगड़ती जा रही थी और उन्हें आलोचनाओं की मार झेलनी पड़ रही थी।
इसके अलावा इजराइल लड़ते-लड़ते थकावट महसूस करने लगा था। सेना के लिए दो मोर्चों पर लड़ते हुए मजबूत स्थिति बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा था।
युद्धविराम के बाद सेना अपना ध्यान बड़े युद्ध पर केन्द्रित रख पाएगी। नेतन्याहू ने लेबनान में युद्धविराम के लिए राजी होने की वजह यह बताई कि अब वे “ईरानी खतरे पर ध्यान केन्द्रित” कर पाएंगे।
हालांकि उन्होंने यह साफ करने से इंकार कर दिया कि इससे उनका क्या आशय है।
बाइडन की उम्मीद अभी भी कायम
राष्ट्रपति बाइडन ने युद्धविराम का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे गाजा पट्टी में चल रहे हमास और इजराइल के युद्ध को रूकवाने की राह बनेगी। हालांकि इसके लिए पिछले कुछ महीनों में किए गए कूटनीतिक प्रयासों का कोई नतीजा नहीं निकला है।
लेकिन बाइडन की उम्मीद अभी भी कायम है। अब उनके कार्यकाल का दो माह से भी कम समय बचा है और सोशल मीडिया पर उन्होंने कहा है कि अमेरिका आने वाले दिनों में गाजा में युद्ध विराम करवाने का ‘एक और प्रयास’ करेगा।
लेकिन जब वे ये उम्मीद भरी बात लिख रहे थे, उसी दौरान इजराइल ने गाजा के कई दर्जन इलाकों पर हमला किया और उन्हें हमास के सैन्य ठिकाने बताया।
गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इन हमलों में कम से कम 33 लोग मारे गए और 134 अन्य घायल हुए। नेतन्याहू गाजा में युद्ध जारी रखने के प्रति दृढ़ संकल्पित हैं।
यह दृढ़ता अभी तो बीबी को सत्ता में बनाए रख सकती है किंतु ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद यह उन्हें भारी पड़ सकती है। ट्रंप ने नेतन्याहू से साफ शब्दों में कह दिया है कि वे चाहते हैं कि 20 जनवरी को उनके ओवल आफिस में काम संभालने के पहले लड़ाई बंद हो जाए।
क्या नेतन्याहू झुकेंगे? या जो बाइडन यूरोप की मदद लेकर, ट्रंप के उछल-कूद शुरू होने के पहले इस बवाल को रोकने में सफल हो पाएंगे?
किसी भी युद्ध में शांति कायम करना सबसे मुश्किल काम होता। लेकिन हर युद्ध का रुकना, भले ही वह कुछ अर्से के लिए हो, उम्मीद तो जगाता ही है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)