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रिश्ते के कगार पर सऊदी और इजराइल

रिश्ते के कगार पर सऊदी और इजराइल

हमारी दुनिया बदल रही है। देशों में आपसी रिश्तों का स्वरुप बदल रहा है। पुराने कूटनीतिक और रणनीतिक गठबंधन बिखर रहे हैं और नए बन रहे हैं। जिन गठबंधनों के बारे में एक समय सोचा भी नहीं जा सकता था, वे सच होने जा रहे हैं। अमेरिका, सऊदी अरब और इजराइल का एक साथ आना एक नए अध्याय की शुरूआत है। सऊदी अरब के युवराज एमबीएस, जो वहां के वास्तविक शासक हैं, ने 20 सितंबर को दिए एक टीवी साक्षात्कार (जो वे बहुत कम देते हैं) में मुस्कराते हुए यह स्वीकार किया कि वे एक समझौते के बहुत करीब हैं।‘‘हर दिन हम और नजदीक जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि पहली बार असल में, सच में यह होने का रहा है और हम इसे लेकर गंभीर हैं”।उन्होंने कहा कि यदि समझौता होता है तो वह “शीतयुद्ध के बाद की सबसे ऐतिहासिक संधि होगी”। 22 सितंबर को इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस बात की पुष्टि की कि तीनों देश “समझौते के बहुत करीब हैं।” और ‘‘यह एक बहुत बड़ा कदम होगा”।

एमबीएस सन् 2017 में शासन संभालने के बाद से ही इजराइल से रिश्ते सुधारने में रूचि ले रहे हैं। वे अमरीका के साथ सुरक्षा संधि करने और साथ ही असैन्य परमाणु क्षमताएं हासिल करने के लिए उत्सुक हैं। इसके अलावा वे सन् 2018 में जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के बाद से अमरीका की नजरों में बिगड़ी अपनी छवि भी सुधारना चाहते हैं। अमेरिका, और विशेषकर जो बाइडन प्रशासन, इस समझौते तक पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। वह इसे अपनी विदेश नीति की एक बड़ी सफलता के रूप में पेश करेगा। साथ ही वह दुनिया के उस इलाके में नए समझौतों के द्वार खोलकर अरब प्रायद्वीप में चीन के बढ़ते प्रभाव को काबू करना चाहता है।

जहां तक नेतन्याहू का सवाल है, सऊदी अरब के साथ समझौता उनके देश के लिए एक नया मोड़ होगा जिससे  इजराइल के लिए अफ्रीका से लेकर एशिया तक आर्थिक एवं कूटनीतिक समझौतों की राह खुलेगी जो अब तक इजराइल की पहुंच से दूर थे। इससे उनकी छवि एक उत्कृष्ट राजनेता की बन सकती है, विशेषकर ऐसे समय में जब सबका ध्यान उनकी सरकार की न्यायपालिका संबंधी विवादास्पद नीतियों पर है।

यद्यपि यह सब कागज पर बहुत शानदार नजर आता है और दुनिया की दृष्टि से है भी लेकिन इनमें से हर देश में इसके हर पहलू को लेकर स्वीकार्यता नहीं है और इसे चुनौती दी जा रही है। एमबीएस भले ही बीबी से हाथ मिलाने और उनके गले मिलने के लिए उत्सुक होंगे लेकिन फिलिस्तीन के मसले के कारण सऊदी अरब के ज्यादातर लोग इजराइल के साथ किसी भी तरह के संबंध रखने के पक्ष में नहीं हैं। यही वजह है कि सऊदी युवराज ने अपने साक्षात्कार में बार-बार फिलिस्तीनी इलाके पर इजरायली सेना के कब्जे का जिक्र किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘‘हमारे लिए फिलिस्तीन का मामला बहुत महत्वपूर्ण है। उसका हल होना भी जरूरी है।” इसी कारण सऊदियों और फिलिस्तीनियों के बीच सामानांतर चर्चा तेज हो गई है।

अक्टूबर में एक आधिकारिक फिलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल रियाद पहुंचने वाला है। और यदि एमबीएस फिलिस्तीनियों की मांगों का आंशिक समर्थन भी करते हैं तो नेतन्याहू के सत्ताधारी गठबंधन के कुछ सदस्य उनका साथ छोड़ सकते हैं जिससे सत्ता पर उनकी पकड़ कमजोर हो सकती है। बाइडन के लिए भी समझौते का समर्थन करने के मिले-जुले परिणाम होंगे। उनकी पार्टी के सदस्यों को चिंता है कि इससे सऊदी एटॉमिक प्रोग्राम का रास्ता खुलेगा। जहां तक रिपब्लिकनों का सवाल है, वे हर उस चीज में अड़ंगा डालेंगे जिसका प्रस्ताव बाइडन प्रशासन करेगा।

समय निकलता जा रहा है, खासकर बाइडन और इस नए गठबंधन के लिए जो सार्वजनिक किए जाने की कगार पर है। नेतन्याहू ठीक कह रहे हैं कि ‘‘अगर अगले कुछ महीनों में कुछ हासिल न हो सका तो यह मुद्दा अगले कुछ सालों के लिए टल जाएगा”। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

Published by श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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