विदेश नीति से देश की जनता का दिल भी जीता जाता है, खासकर तब बात जब ‘शांति समझौता’ करवाया जा रहा हो। उस नाते किसिंजर से लेकर कुशनेर और उनसे लेकर मौजूदा बाइडन प्रशासन सभी के लिए अमेरिकी कूटनीति के द्वारा मध्यपूर्व में हुआ शांति समझौता करवाना गर्व का विषय रहा है।वैसा ‘शांति समझौता’ करवानाबाइडन के लिए ज़रूरी है। सन् 2021 में सत्ता संभालने के बाद से बाइडन अमेरिका में घट रही त्रासद घटनाओं और चीन तथा यूक्रेन के मामलों में उलझे रहे है। नतीजतन वे पश्चिमी एशिया के पश्चिमी किनारे, लेबनान, ईराक, सीरिया, यमन, लीबिया और सूडान आदि में जारी संकटों की ओर बहुत कम ध्यान दे पाए हैं। यहाँ तक कि ट्रंप द्वारा टूटने के कगार पर पहुंचा दिए गए ईरान के साथ परमाणु समझौते को बचाने का काम भी नहीं हो सका है।
बहरहाल अब लगता है बाइडन इस क्षेत्र में अमेरिकी दबदबा दुबारा कायम करने के लिए एक महत्वकांक्षी योजना पर अमल कर रहे है ताकि बीजिंग और मास्को के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके। अमरीकी जनता को भी खुश किया जा सके।
व्हाइट हाउस मध्यपूर्व में एक ‘बड़े समझौते’ की तैयारी कर रहा है।इससे इजराइल और सऊदी अरब के रिश्ते सामान्य होंगे वहींफिलिस्तीनी राष्ट्र के मसले पर शायद कुछ प्रगति हो। ईरान के साथ तालमेल का भी मकसद बनता लगता है।
सबसे पहले सऊदी अरब। सन् 2018 में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद बाइडन ने कसम खाई थी कि वे इस राजतंत्र को दुनिया से अलग-थलग कर देंगे। लेकिन जैसे-जैसे चीन ने रियाद और तेहरान के बीच मध्यस्थता के जरिए अपना प्रभाव बढ़ाया, मास्को और सऊदी अरब के बीच सहयोग बढ़ा तो बाइडन ने यू-टर्न लिया। उन्होने मोहम्मद बिन सलमान से मित्रता बढ़ायी। अब्राहम समझौतों की तर्ज पर इजराइल के साथ संबंधों को सामान्य करने की कोशिश शुरू की। ऐसी खबरें हैं कि सऊदी अरब को सुरक्षा की गारंटी देने और असैन्य परमाणु कार्यक्रम में मदद करने के लिए अमेरिकातैयार है। इस सौदेबाजी में इजराइल की भूमिका यह होगी कि वह फिलिस्तीनियों को कुछ रियायतें देने की पेशकश करेगा।
लेकिन नेतन्याहू और बाइडन के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। बाइडन को और चिढ़ाने के लिए नेतन्याहू चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। फिर भी बाइडन प्रशासन को विश्वास है कि इजराइल के साथ मिलकर वह फिलिस्तिनियों को अधिक स्वायत्ता देने, पश्चिमी किनारे पर कब्जा करने का अभियान को रोकने, संभवतः द्वि-राष्ट्र के प्रावधान वाली शांति प्रक्रिया को फिर से जिंदा करने में सफलता मिलेगी।सऊदी अरब को वह देना है जो वह चाहता है जिससे ईरान के पर कतरने का काम हो सके।
मगर यह सब दूर की कौड़ी लगती है।9/11 और अल कायदा, अफगानिस्तान और इराक पर हमलों, सशक्त होते चीन तथा जंगी रूस के मौजूदा दौर में दुनिया बहुत बदल गयी है। वे दिन लद गए जब अमेरिका मध्यपूर्व पर अपनी मर्जी लादता था। साथ ही बाइडन के पास इन असंभव नजर आने वाले लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बहुत कम समय है। इन देशों में भी चिंतचा है कि ट्रंप की दुबारा सत्ता बनी तो सारे प्रयासों पर पानी फिर जाएगा। उन्हें असुरक्षा की स्थिति का सामना करना पड़ेगा।
जाहिर है पूरी दुनिया पर राज करने वाली महाशक्ति के सामने कई संकट है। अमेरिका अब पहले की तरह दूसरे देशों की विदेश नीति तय करने की स्थिति में नहीं है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)