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लीबिया पर प्रकृति का 9/11

क्या होता है जंग में पहले से बर्बाद मुल्क पर कुदरत की कहर का? संपूर्ण विनाश। जैसा कि अभी लीबिया के डेरना शहर के विनाश के फोटो से झलकता हुआ है! शुक्रवार को मोरक्को जहां धरती के कांपने की वजह से बर्बाद हुआ वहीं सप्ताहंत में लीबिया में आफत आसमान के रास्ते आई। तूफ़ान डेनियल, जिसने भूमध्यसागर पार करने के पहले ग्रीस में विनाश की झलकी दिखाई वही जब वह डेरना शहर में पहुंचा तो उसने एक-चौथाई शहर को समंदर में डुबो दिया।

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 5,300 मौतों की पुष्टि हो चुकी है इस संख्या में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी होने, यहां तक कि इसके दोगुना हो जाने तक की संभावना है। डेरना के मेयर अब्दुलमेनाम अल-घाईति ने सऊदी अरब के अल अरेबिया चैनल को बताया है कि शहर में हुई मौतों की संख्या 18,000 से 20,000 तक होने का अनुमान है। यह अनुमान बाढ़ में नष्ट होने वाले इलाकों के आधार पर लगाया गया है। सभी शवगृह पूरे भरे हुए हैं, लाशें खुले में पड़ी हैं और राहतकर्मियों ने और बॉडीबैग्स की मांग की है।

इसे लीबिया का 9/11 कहा जा रहा है। लेकिन इस आपदा के लिए केवल प्रकृति को ज़िम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है। यह राजनीति और राजनीतिज्ञों की विफलता है। सन् 2011 में पश्चिम के समर्थन से हुए खूनी तख्तापलट में मुअम्मर अल-गद्दाफ़ी को हटाए जाने के बाद देश पर मुख्यतः दो प्रतिद्वंदी गुटों का राज रहा है –  एक का त्रिपोली से और दूसरे का तुबरूक से। दोनों को ही देश से बाहर की ताकतों के दो परस्पर विरोधी समूहों का समर्थन हासिल रहा।इनमें तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, मिस्त्र और रूस का वेगनर ग्रुप शामिल हैं। गद्दाफी के हटने के बाद से इन दोनों गुटों ने अपनी-अपनी स्थिति मज़बूत कर ली है। देश के पश्चिम में कार्यरत गर्वमेंट ऑफ नेशनल यूनिटी के मंत्री मिलिशिया द्वारा नियुक्त किए गए है। पूरब में लीबियन नेशनल आर्मी के निरंकुश प्रमुख जनरल खलीफा हफ्तार ने सत्ता पर पूरी तरह काबिज़ होने का जो अभियान चलाया, उसके अंतर्गत अधिकांश अधिकारियों की नियुक्ति हफ्तार और उनके सहयोगियों ने की।

सन् 2020 से इन दोनों ‘सरकारों’ के बीच जबरदस्त जंग चल रही है। इसमें न केवल निर्दोष नागरिक मारे गए हैं बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर भी या तो नष्ट हो गया है या जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है। डेरना शहर इस सबके केन्द्र में रहा है। इस्लामिक कट्टरपंथियों का केन्द्र माने जाने वाले इस शहर ने गद्दाफी की मौत के बाद से बहुत तबाही झेली। सन् 2014 में शहर के कुछ हिस्सों पर आईएसआईएस का कब्जा हो गया था। मगर सन् 2016 में हफ्तार ने उस पर दोबारा कब्जा कर लिया। हफ्तार को इस्लामिक कट्टरपंथियों से नफरत है और इसलिए उन्होंने ऐसे समूहों का जड़मूल से सफाया कर दिया। लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चरमें किसी ने निवेश नहीं किया। जिन बांधों की वजह से यह अभूतपूर्व विनाश हुआ, उनका टूटना तय था। सन् 1970 के दशक में युगोस्लाविया की एक कंपनी द्वारा बनाए इन बांधों की जर्जर स्थिति के बारे में सन् 2022 में छपे एक लेख में चेताया गया था। यह हिसाब भी लगाया जा चुका था कि ये कितने पानी का झेल पाएंगे और वहां की भौगोलिक स्थिति के चलते अगर बाँध फूटे तो पानी बहकर कहां जा सकता है। लेकिन लापरवाही की कोई इंतेहा न थी। तूफान डेनियल जब डेरना शहर के नजदीक आया तो बताया जाता है कि मेयर ने जनरल खलीफा हफ्तार, जिनका पूर्वी लीबिया पर राज है, से शहर को खाली करने में मदद मांगी। लेकिन उनके अनुरोध को ठुकरा दिया गया। जब बांधों में पानी का स्तर बढ़ रहा था तब किसी से भी शहर छोड़ने को नहीं कहा गया।

उपग्रह से ली गईं तबाही के पहले और बाद की तस्वीरों से पता चलता है कि कई भवन गायब हो गए हैं। पुल बह गए हैं।मतलब चाहे मकान हों या लोग – सबको पानी निगल गया। विनाश इतना भयानक था कि समंदर से मानव शव बाहर निकल रहे हैं। इस बीच जो विदेशी लीबिया की मदद करना चाहते हैं उनके आगे बाधाएहै। देश के एक इलाके में जारी किए गए वीजा दूसरे इलाके में वैध नहीं होंगे। कई सालों से जारी गृहयुद्ध के बाद कोई भी पक्के तौर पर यह बताने की स्थिति में नहीं है कि कितने लोगों को मदद की दरकार है। मरने वालों और लापता हुए लोगों की संख्या के सरकारी आंकड़े अनुमानों पर आधारित हैं। पूर्वी लीबिया के अन्य इलाकों में रहने वाले लोग डरे हुए हैं और सरकार ने उन्हें हिम्मत देने के लिए कुछ खास नहीं किया है। गत 12 सितंबर को हफ्तार के प्रवक्ता ने चेतावनी दी की बेनगाजी शहर के पास एक दूसरा बांध टूटने की कगार पर है। उसने शहर के निवासियों से शहर छोड़ने का अनुरोध किया। इसके कुछ ही घंटों बाद लोगों से कहा कि सब कुछ नियंत्रण में है।

ऐसी खबरें हैं कि डेरना की दुर्दशा अपनी आंखों से देखने के बाद भी हफ्तार का दिल नहीं पसीजा।लम्बे समय तक अक्षम नेतृत्व की वजह से एक दुष्ट देश और दुष्ट बन गया है। लीबिया के एक देश के रूप में  दुनिया के नक्शे पर बने रहने की उम्मीद बहुत कम है। युद्ध तो नहीं मगर कुदरत का कहर उसे ख़त्म कर देगा। जलवायु संबंधी चेतावनी देने वालों का कहना है कि हालांकि भूमध्यससागरीय क्षेत्र में तूफान कम ही आएंगे लेकिन वे जब भी आएंगे भयानक होंगे। और यदि लीबिया जैसे देशों की ऐसी विकट राजनैतिक स्थिति होगी, तो उनके लिए अपना अस्तित्व बचाए रखना संभव नहीं होगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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