Middle East conflict Syria: अफगानिस्तान के बाद अब सीरिया की बारी है। तीन दिन से भी कम समय में इस्लामिक विद्रोहियों ने सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो, जो एक प्राचीन किले के आसपास बसा हुआ है, पर कब्जा कर लिया है। यह राष्ट्रपति बशर-अल-असद की जबरदस्त हार है।
सीरिया में गृहयुद्ध 13 साल पहले तब शुरू हुआ था जब सरकार विरोधी शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को बर्बरतापूर्वक दबाया गया, जिससे अल-असद के प्रति वफादार सैन्य बलों और विद्रोहियों के बीच खूनी टकराव का रूप ले लिया।
समय के साथ विद्रोहियों के प्रति समर्थन बढ़ता गया और क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों के लड़ाके उनके साथ जुड़ते गए।
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सन् 2012 में चार साल तक चली उतार-चढ़ाव भरी लड़ाई के बाद, बशर-अल-असद, विद्रोहियों से अलेप्पो छीनने में कामयाब रहे और उनका इस शहर पर दुबारा कब्जा हो गया। 2020 से सीरिया की ओर से दुनिया का ध्यान हट गया। मुख्यतः कुर्दिश लड़ाकों वाली अमेरिका समर्थित सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सिस का देश के उत्तर-पूर्वी भाग पर नियंत्रण कायम है और तुर्की की सरकार समर्थित समूहों का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के एक हिस्से पर कब्जा है। बाकी देश रूस और ईरान के समर्थन से असद के नियंत्रण में रहा। रूस और तुर्की के बीच हुए एक कमजोर से समझौते के चलते यह स्थिति बनी रही। धीरे-धीरे असद और सीरिया के लिए सब कुछ सामान्य हुआ। उन्हें क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाता रहा और 27 नवंबर तक सीरियाई लड़ाईयों, रहन-सहन के भयावह हालातों आदि के चलते अपनी जानें गंवाते रहे।
अलेप्पो पर हमले का नेतृत्व हयात तहरीर अल-शाम नामक एक आंतकवादी संगठन कर रहा है जो पहले अलकायदा से संबद्ध था और सन् 2017 में उसने इस जिहादी संगठन से नाता तोड़ लिया था। सीरियन नेशनल आर्मी – जो अपने नाम के विपरीत – तुर्की का पिट्ठू है, भी इस लड़ाई में शामिल हो गया है। अलेप्पो पर कब्जा करने के साथ-साथ इन विद्रोहियों ने सरकाईब पर भी नियंत्रण कर लिया है जो रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर है और दमिश्क से आने वाली मुख्य उत्तर-दक्षिण सड़क यहां से गुजरती है।
यह हमला हालांकि चौंकाने वाला है, लेकिन विद्रोही लड़ाके इसके लिए पिछले कई महीनों से प्रशिक्षण ले रहे थे और अचानक हमला करने की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने हमले करने के लिए बहुत अनुकूल समय चुना। असद इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी सत्ता कायम रखने में इसलिए सफल हुए क्योंकि उन्हें ईरान और रूस दोनों की सहायता मिल रही है। रूस ने आकाश में उसका साथ दिया और ईरान ने हिज्बुल्लाह के हजारों लड़ाके भेजकर। अब चूंकि दोनों देश अपनी-अपनी लड़ाईयों में उलझे हैं, इसलिए उनके द्वारा दी जा रही सहायता और समर्थन धीरे-धीरे कम होता गया।
इजराइल ने इस क्षेत्र का शक्ति संतुलन बदलकर रख दिया है और उसने विद्रोही समूहों से आर-पार की लड़ाई छेड़ दी है। हिज्बुल्लाह एक साल से इजराइल से चल रही लड़ाई में तहस-नहस है। उसके अधिकांश शीर्ष नेताओं की मौत हो चुकी है और अनुमानों के मुताबिक उसके करीब 4,000 लड़ाके मारे जा चुके हैं। सीरिया में तैनात ईरान के अधिकांश उच्च सैन्य अधिकारी भी इजरायली हवाई हमलों का शिकार हो चुके हैं। सन् 2022 में यूक्रेन पर किए गए आक्रमण के बाद से रूस अपने हजारों सैनिकों को सीरिया से वापिस बुला चुका है। जहां तक असद का सवाल है, भले ही उनके साथियों ने पूरी तरह उनका साथ न छोड़ा हो, लेकिन वे निश्चित ही इस क्षेत्र में अकेले पड़ गए हैं। तुर्की, जिसने पहले सीरियाई सरकार के खिलाफ आक्रामक कार्यवाही का विरोध किया था, अब कई विद्रोही संगठनों से जुड़ गया है और उसके रूख में बदलाव से असद की स्थिति और कमजोर हो गई है।
तो क्या इसका आशय यह है कि असद और सीरिया का अंत समय आ चुका है? क्या सीरिया पर उसी तरह हयात तहरीर अल-शाम का नियंत्रण हो जाएगा जैसा अफगानिस्तान पर तालिबान का हुआ था?
सीरिया की सेना कई सालों से चल रही लड़ाई, भ्रष्टचार और आर्थिक बदहाली के चलते खोखली हो चुकी है। उसमें जबरदस्ती भर्ती किए गए बहुत से सैनिकों में वर्तमान सत्ता की रक्षा करने के प्रति कोई उत्साह नहीं है – यही कारण है कि अलेप्पो का पतन इतनी सरलता से हो गया। उसके मित्र देश भी खुद युद्धों में उलझे होने के कारण अब उतनी सहायता नहीं कर पाएंगे जितनी दस साल पहले कर पाते थे। इन हमलों और इजराइली हस्तक्षेप से हालात में आमूल बदलाव आया है। पिछले कुछ दिनों के सीरिया के घटनाक्रम से यह साबित होता है कि पश्चिम एशिया में युद्ध के हालातों में कमी आना तो दूर, वह फैल रहा है।
अलेप्पो का पतन एक गंभीर घटना है। हजारों सालों से व्यापारिक मार्गों और साम्राज्यों का केंद्र रहा अल्लपो पश्चिम एशिया के मुख्य सांस्कृतिक और वाणिज्यिक केन्द्रों में से एक है। सीरिया से आ रही खबरों के मुताबिक विद्रोही लड़ाकों ने हेलिकाप्टरों समेत बड़े पैमाने पर सैन्य सामग्री पर कब्जा कर लिया है और अब वे दमिश्क के रास्ते में पड़ने वाले अगले महत्वपूर्ण शहर हमा की ओर बढ़ रहे हैं। यदि असद विरोधी समूह – जिनकी संख्या अच्छी खासी है – प्रबल होते हैं तो असद की सत्ता खतरे में पड़ जाएगी और सीरिया के एक और अफगानिस्तान बनने के हालात बन सकते हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)