दस साल पहले मिस्र में बड़ा बदलाव हुआ। था। लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए मिस्र के पहले राष्ट्रपति और मुस्लिम ब्रदरहुड के नेतामोहम्मद मोरसी को सेना ने हटा दिया। उनके समर्थक काहिरा के रबा स्क्वायर पर विरोध के लिए इकठ्ठा हुए तो मिस्र के सुरक्षा बलों ने 14 अगस्त 2013 को ब्रदरहुड के कम से कम 900 सदस्यों को मार डाला।उस घटना को हुए दस साल हो गए है लेकिन तब से मुस्लिम ब्रदरहुडसंगठन दर-बदर नरसंहार में जिंदा बचे कई लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया। कई देश छोड़कर चले गए। सन् 2020 में ब्रदरहुड के तत्कालीन नेता महमूद एज्ज़त को गिरफ्तार किया गया। उसके बाद इस संगठन में लीडरशीप का विवाद चला। इस साल मार्च में ब्रदरहुड ने 78 साल के सलाह अब्दुल हक को कार्यवाहक प्रमुख बनाया है लेकिन संगठन अपने अस्तित्व और पहचान में मरा पड़ा है।
एक वक्त इस्लामी दुनिया मेंमुस्लिम ब्रदरहुड तेजी से फैलता आंदोलन था। कट्टर इस्लामवादी और तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन भी मुस्लिम ब्रदरहुड के हिमायती थे।ध्यान रहे सन् 2011 में विरोध प्रदर्शनों से हटे हुस्नी मुबारक के बाद ब्रदरहुड ने ही मिस्र में इस्लामी परचम के झंडे गाढ़े थे। इस आंदोलन को अर्दोआन का समर्थन इतना जबरदस्त था कि उन्होंने सुरक्षा बलों की सैनिक क्रांति से बने राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल सीसी की जम कर आलोचना की। उन्हें तानाशाह तक कहा। उन्होंने मिस्र के अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद मोरसी के समर्थन में रैलियां कीं, मुस्लिम ब्रदरहुड के नेताओं का हर तरह के संसाधन और सुविधाएं मुहैया करवाईं और अपने देश में शरण दी।
सचमुच पूरे अरब क्षेत्र में, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र ने इस इस्लामिक समूह को अपने लिए खतरा, चुनौती माना था वहीं अर्दोआन ने मिस्र में 2011 और 2012 में हुए चुनावों में मुस्लिम ब्रदरहुड की जीत के सहारे सऊदी अरब की जगह स्वयं को सुन्नी इस्लामिक देशों का नेता बनने का सपना संजोया। लेकिन यह रणनीति मिस्र में सीसी के सत्ता पर काबिज होने और इसके दो साल बाद सीरिया में असद के समर्थन में रूस द्वारा किए गए हस्तक्षेप के बाद धरी रह गई।
अब हालात यह है कि मौजूदा वक्त को‘नए दौर’ की संज्ञा देते हुए अर्दोआन अब सऊदी अरब, मिस्र और यूएई से हाथ मिलाए हुए है। मुस्लिम ब्रदरहुड की गतिविधियों से दूरी बनाते लगते है। तुर्की ने ब्रदरहुड के सदस्यों या उससे जुड़े व्यक्तियों को वहां रहने की अनुमति के नवीनीकरण से भी इंकार किया है। ब्रदरहुड के सदस्योंको वहां से चले जाने के लिए कहा। ऐसी खबरें भी है कि उसके कुछ नेताओं को गिरफ्तार किया है। और मिस्र के राष्ट्रपति द्वारा जिन अन्य लोगों को मिस्र को सौंपे जाने की मांग की जा रही है, उन्हें किसी तीसरे देश में भेजने पर विचार है।
मुस्लिम ब्रदरहुड का पुराना इतिहास है। संगठन 1928 में ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुकाबला करने और शरिया के ज़रिये समाज के इस्लामीकरण के मकसद से बना था। यह अरब क्षेत्र का सबसे प्रभावी इस्लामिक संगठन बना। उसे दबाने के कई प्रयासों के बाद भी वह अरब क्षेत्र में प्रभावी बना रहा। उसने कई शांतिपूर्ण राजनैतिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। साथ ही उसके कुछ नेता, पश्चिमी संस्कृति और जीवन जीने के आधुनिक तरीके के हिंसक विरोधी के रूप में भी उभरे। ब्रदरहुड ने मिस्र में अपना राष्ट्रपति बनवाने में सफलता पाई तो उसी समय ट्यूनीशिया में वह एक एलायंस से सत्ता में आया। पर उसके अच्छे दिन लम्बे नहीं चले। मोरसी को एक विद्रोह के बाद पद छोड़ना पड़ा। और राष्ट्रपति सीसी ने बहुत क्रूरता से ब्रदरहुड के 900 समर्थकों को मरवा दिया।ह्यूमन राइट्स वाच के अनुसार यह हत्याकांड तियानमेन चौक हत्याकांड की तरह का था। ब्रदरहुड के हजारों सदस्यों को जेल में डाला गया। कई लोग तुर्की, क़तर और इंग्लॅण्ड भाग गए।और हैरानी की बात कि इतने बड़े पैमाने पर दमन की रियलिटी के बावजूद दुनिया में किसी ने, अमेरिका व पश्तिमी देशों ने मिस्र में मानवाधिकारों के रक्षा के लिए कुछ नहीं कहा या किया है।
और अब अर्दोआन ने मिस्र के सीसी से हाथ मिला लिया है। मुस्लिम ब्रदरहुड पर सरकार का दमन जारी है।उसमें अंदरूनी झगड़े भी हैं। सोमवार को नरसंहार की बरसी पर कुछ ख़ास नहीं हुआ क्योंकि ब्रदरहुड के समर्थकों को डर था कि किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन को जबरदस्ती तितर-बितर कर दिया जायेगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)