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समय बस यूं ही बीते वही छुट्टी!

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मेरे लिए छुट्टी का मतलब है स्लो-मोशन में ज़िन्दगी जीना। बिलकुल भागदौड़ नहीं। कुछ समय तक कुछ न करना, घड़ी की सुईयों से मुक्ति, .. मेरे लिए छुट्टियाँ वह हैं जब मुझे यह फ़िक्र न करनी हो कि अभी नौ बजा है या बारह। 

दिल्ली में हॉलिडे सीजन बिताने की मजबूरी की मेरी दास्ताँ पढ़ने के बाद एक मित्र ने पूछा, “घूमने लायक जगहों में होटलों में जगह न सही, वहां तुम्हारे घर तो हैं।” यह बात एकदम सही है। देश के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से दो में मेरे घर हैं – जयपुर में और कश्मीर घाटी में। पर सवाल है कि क्या घर में आप Holidays मना सकते हैं?

बचपन में दादा-दादी और ढेर सारे रिश्तेदारों के साथ घर में Holidays मनाना सचमुच बहुत मजेदार था। हम बच्चों का ‘घरेलू राजनीति’ से कोई लेनादेना नहीं रहता था। इस मामले में हमसे कोई उम्मीद नहीं की जाती थी। घर के काम करने से हम मुक्त रहते थे। और थोड़ा-बहुत यदि कुछ करते भी थे तो वह भी मजा-मौज करते हुए सीखने के लिए – और जाहिर है कि तब वह ‘काम’ नहीं रह जाता था। हम बड़ों और उनकी बड़ी-बड़ी बातों को नज़रअंदाज़ कर सकते थे। हम धूल में लोट सकते थे, अपने कपडे गंदे कर सकते थे और जी भर कर हंस-खेल सकते थे। जैसे-जैसे आप बड़े होते जाते हैं और बड़े होने के ढर्रे में फंसते जाते है, आपको अहसास होता है कि बचपन में जो आपको बहुत मजेदार लगता था, वह, दरअसल, कितना बचकाना और उबाऊ है।

कश्मीर में पारिवारिक छुट्टियाँ: स्वतंत्रता और जिम्मेदारी का संतुलन

इस साल गर्मियों में मैंने ‘पारिवारिक Holidays’ मनाईं। जहाँ मित्र यूरोप या लाहौल-स्पीती में थे और वहां से इन्स्टा पर अपनी फोटो डाल कर मुझे जला रहे थे, वहीं मैं एक महीने तक अपने घर, कश्मीर में थी।  दिन में बबरीबोयोल पियो, नारियल के मेकरून खाओ,  भतीजे-भतीजियों के साथ पहाड़, नदी और चिड़िया बनाओ और ऊनो और जेंगा खेलो। किताब को एक तरफ रखकर आसमान को तको और दोपहर में नींद लो। यह थी मेरी दिनचर्या। हर वीकेंड घर पर बीतता था और हर शाम घर की बालकनी पर। क्योंकि, जैसा कि मैंने कल भी लिखा था, सभी घूमने-देखने लायक जगहों – और कश्मीर तो उनका सिरमौर है – में पूरे साल पांव रखने की जगह नहीं होती।

तो क्या मैंने कश्मीर में गर्मी की Holidays मनाईं? उसे छुट्टी नहीं कहना चाहिए। वह केवल एक घर से दूसरे घर में जाना था। मुझे अपनी मर्ज़ी से समय बिताने की आज़ादी तो थी मगर मैं यह तो नहीं भूल सकती थी कि मैं परिवार की बहू हूँ। मुझे सजग रहना होता था, मुझे सबको यथायोग्य सम्मान देना होता था, मैं एक ढर्रे से बंधी थी।

छुट्टियाँ: आराम, स्वतंत्रता और अपनी दुनिया में खो जाना

मेरे लिए छुट्टी का मतलब है स्लो-मोशन में ज़िन्दगी जीना। बिलकुल भागदौड़ नहीं। किसी भी एक स्थान पर जम जाओ और कुछ दिनों तक वहां के लोगों की तरह जीओ। इससे भी ज्यादा अहम है,  रोजाना के काम और जिम्मेदारियों के बोझ से मुक्ति। सीरिया में कुछ भी होता रहे, मेरी बाला से। किसी राजनेता को लेकर कितना भी बड़ा बवंडर उठ खड़ा हुआ हो, मुझे क्या? कुछ समय तक कुछ न करना, घड़ी की सुईयों से मुक्ति, किसी पद या रिश्ते की जिम्मेदारियों से मुक्ति। मेरे लिए छुट्टियाँ वह हैं जब मुझे यह फ़िक्र न करनी हो कि अभी नौ बजा है या बारह।

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तो हाँ, पर्यटनस्थलों पर मेरे घर हैं। मैं इसके लिए कृतज्ञ हूँ। मगर मैं छुट्टी मनाने वहां नहीं जाना चाहती। वैसे भी, कश्मीर की भीषण ठण्ड से जूझना मेरे बस की बात नहीं है।

मेरे पास पंचगनी और लद्दाख में छुट्टियाँ बिताने के प्रस्ताव ज़रूर हैं मगर इस साल की Holidays तो मैं दिल्ली में अपने घर में ही बिताऊंगी। मैं दिन भर क्या करूंगी, यह तय नहीं होगा। कुछ भी करना या न करना मेरे एजेंडा में शामिल नहीं होगा। मैं उन किताबों को पढूंगी जो मैंने साल भर इकठ्ठा की हैं, मैं क्लासिक्स पर जमी धूल झाड़ कर उनके पन्ने एक बार फिर पलटूंगी। मैं जम कर टीवी सीरियल देखूंगी और रंग बिरंगी जैसी पुरानी फिल्में भी।

नए साल की छुट्टियाँ: आराम, खुशियाँ और समय का जादू

मैं शायद गाज़र का हलवा बनाकर उन सब दोस्तों को घर बुलाऊंगी जो मेरी तरह नए साल का इस्तकबाल दिल्ली में ही करेंगे। मैं शब्द पहेलियाँ खेलूंगी, पुरानी धुनें गुनगुनाऊंगी और खुश रहने की कोशिश करूँगीं। सबसे बड़ी बात, मैं 1000 टुकड़े वाली जिगसॉ पज़ल का डिब्बा खोलूँगी और टुकड़ों को सही-सही जोड़ कर बरनीस आल्प्स का चित्र बनाऊँगी। मेरी कोशिश होगी कि मुझे समय के गुजरने का अहसास ही न हो।

तो आप सबको छुट्टियाँ मुबारक। चाहे आप घर पर हों या किसी जन्नत में, सुकून से रहिये, रोज़ाना की ज़िन्दगी से कुछ समय के लिए आज़ाद हो जाईये और समय को यूं ही बीतने दीजिये। अब मैं आपसे तब मिलूंगी जब नया साल एकदम हमारी दहलीज पर होगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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