पिछले हफ्ते दलाई लामा 88 साल के हो गए। इस मौके पर काफी लोग इकट्ठा हुए, जिनमें कई जाने-माने व्यक्ति शामिल थे। हिज होलीनेस ने अपने भक्तों, अनुयायियों, हितचिंतकों और चीन को भी यह भरोसा दिलाया कि उनका इरादा कम से कम 113 साल जीने का है और वे पुनः अवतार लेंगें या नहीं, इस मसले पर वे दो साल बाद, जब वे 90 साल के हो जाएंगे, विचार करेंगे। उन्होंने कहा, “मैं आने वाले कुछ और दशकों तक सभी की सेवा करने के लिए संकल्पित हूँ।” वे कमज़ोर हो गए हैं और उन्हें चलने के लिए तीन भिक्षुकों का सहारा लेना पड़ता है परन्तु वे अब भी मज़ाक करते हैं। उन्होंने कहा कि उनके सभी दांत बाकी हैं!
परन्तु उनकी हर वर्षगांठ के साथ उनके उत्तराधिकार का मसला और जटिल, और रहस्यपूर्ण होता जा रहा है। तिब्बती निर्वासित समुदाय और चीन का नेतृत्व उनकी मृत्यु की तैयारियों को अंतिम रूप दे रहा है। एआई, चंद्रयान और मंगल ग्रह पर लैंड करने के मानवता के इरादों के इस दौर में पुनर्जन्म की बात करना अजीब सा लगता है परन्तु चीन और स्वयं को नास्तिक बताने वाली चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, बौद्धों की आत्माओं के पुनर्जन्म का प्रबंधन करने के लिए आतुर और संकल्पित है। वे तिब्बत को चीन का हिस्सा बनाकर तिब्बती बौद्ध धर्म पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए तैयार हैं। और इस खींचतान व रहस्यात्मकता के कारण पूरी दुनिया इस मसले को दिलचस्पी से देख रही है।
चीन इस समय जितना ताकतवर है, उतना इतिहास में कभी नहीं था। वह तिब्बत और उसकी संस्कृति को धीमी मौत मार रहा है। अब भी जो 60-70 लाख तिब्बती तिब्बत में रह रहे हैं, उन पर चीन का शासन कठोर होता जा रहा है। तिब्बत में चीन ने अरबों डॉलर का निवेश तो किया है परन्तु इसके साथ ही तिब्बती संस्कृति और धर्म को योजनाबद्ध ढंग से खत्म भी कर रहा है। तिब्बत में आनेजाने की आज़ादी और संचार के माध्यमों पर कड़ी रोकें लगाई जा रही हैं। करीब 10 लाख तिब्बती बच्चे अपने घर से दूर, चीनी बोर्डिंग स्कूलों में पढ़ने पर मजबूर हैं। यह डर है कि उनकी अपनी भाषा जल्द ही गायब हो जाएगी।
करीब 1.5 लाख तिब्बती दूसरे देशों में रह रहे हैं। उनकी नई पीढी के साथ यह डर बढ़ता जा रहा है कि वे अपनी पहचान और एकता खो बैठेगें। कारण यह कि दूसरे देशों में जन्में और पले-बढे बच्चों को अपनी मातृभूमि की कोई याद नहीं है। इस सब के बीच, दलाई लामा तिब्बतियों के लिए आशा और सुरक्षा के स्त्रोत हैं। वे पहले दलाई लामा के 14वें अवतार हैं। वे कितने समय से तिब्बतियों का नेतृत्व कर रहे हैं यह इससे साफ़ है कि इस दौरान अमरीका में 15 राष्ट्रपतियों का कार्यकाल पूरा हो चुका है।74 साल पहले, जब पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना का जन्म हुआ था, तब भी वे तिब्बतियों के पूजनीय थे। अपने पूर्व अवतारों के जरिये वे तिब्बतियों को उनके प्राचीन इतिहास से जोड़े हुए हैं।
तिब्बती समुदाय उनके उत्तराधिकार के मुद्दे पर तनाव में है। चीन का कहना है कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, इसका निर्णय वह करेगा जैसा कि चीन के अंतिम राजवंश चिंग के सम्राट किया करते थे। चीन ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी की तलाश के लिए एक समानांतर प्रक्रिया शुरू कर दी है। तिब्बतियों का मानना है कि चीन वही करने जा रहा है जो उसने सन 1995 में तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता के रूप में पंचेम लामा को नियुक्त कर किया था। निर्वासित तिब्बतियों का कहना है कि अधिकांश तिब्बती पंचेम लामा को मान्यता नहीं देते। श्रद्धालु तिब्बतियों का मानना है कि कुछ विशिष्ट सिद्धियाँ प्राप्त लामाओं का पुनर्जन्म तुल्कू के रूप में होता है। वे ही लामा के अवतार होते हैं। और इसलिए केवल दलाई लामा को उनका उत्तराधिकारी चुनने का हक़ है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि उत्तराधिकार की प्रक्रिया बिना किसी लफड़े-झगड़े के निपट जाए ताकि करीब 70 लाख तिब्बतियों पर उसका राजनैतिक नियंत्रण बना रहे और चीन के उस क्षेत्र, जिसकी सीमाएं कई देशों से मिलतीं हैं, में स्थिरता बनी रहे।
अगर उत्तराधिकार की प्रक्रिया में विवाद होते हैं या 15वां दलाई लामा, बीजिंग की हाँ में हाँ मिलाने वाला नहीं होता, तो चीन को तिब्बत के इतिहास के अपने संस्करण को मान्यता दिलवाने में परेशानी होगी। जहाँ तक तिब्बतियों का सवाल है, दो दलाई लामा होने से उनकी परेशानियाँ और बढ़ जाएंगीं।
दलाई लामा ने साफ़ कर दिया है कि उनके पुनः अवतार लेने में चीन की कोई भूमिका नहीं होगी। सन 2011 में एक बयान में उन्होंने कहा था कि जब वे करीब 90 साल के हो जाएंगे (और यही बात उन्होंने अपनी 88वीं वर्षगांठ पर दोहराई) तब वे शीर्ष लामाओं, तिब्बत के लोगों और तिब्बती बौद्ध धर्म के अन्य अनुयायियों के साथ चर्चा कर तय करेंगे कि दलाई लामा की संस्था का अस्तित्व बना रहना चाहिए या नहीं। करीब 28 साल पहले दलाई लामा ने तिब्बत में एक पुनःअवतरित लामा की पहचान की थी। वो दिन है और आज का दिन है, उस समय छह साल के पंचेम लामा का कुछ पता नहीं है। चीन ने उस लड़के की जगह अपनी पसंद के 33 साल के एक आदमी को लामा घोषित कर दिया। इस लामा की शानोशौकत में कोई कमी नहीं है परन्तु उसके समर्पित अनुयायिओं की संख्या बहुत कम है। अब वही लामा चीन की पसंद के दलाई लामा को गद्दी पर बैठाने में मुख्य भूमिका अदा करेगा।
पंचेम लामा के साथ जो हुआ, उसे देखते हुए दलाई लामा ने यह घोषित कर दिया है कि वे तिब्बत में पुनर्जन्म नहीं लेंगे। पूरी दुनिया से उनके भक्तगण धर्मशाला आकर उनसे अपने-अपने देशों में पुनर्जन्म लेने की प्रार्थना कर रहे हैं। दलाई लामा का उन्हें जवाब होता है, “भाई, मैं एक आत्मा हूँ। मैं कितनी जगह जन्म ले सकता हूँ”।इस बीच दलाई लामा का बहुत समय लद्दाख में बीत रहा है। इससे ऐसी अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि शायद अगला दलाई लामा वहीं खोज लिया जायेगा। अगर ऐसा हुआ तो चीन आगबबूला हो जायेगा। इससे ऐसा भी लगेगा कि भारत, जो तिब्बत के मुद्दे पर सोच-समझकर चुप्पी साधे हुए हैं, टकराव की मुद्रा में आ गया है। इस सिलसिले में सबसे भड़काऊ यह हो सकता है कि नया दलाई लामा लद्दाख के काफी ऊंचाई पर स्थित शहर तवांग में मिल जाए जहाँ भारत का सबसे बड़ा बौद्ध मठ है और जहाँ 1683 में छटवें दलाई लामा जन्में थे।
इसमें कोई संदेह नहीं कि दलाई लामा की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी का चयन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़े टकराव का सबब बन सकता है, जो भारत और केवल भारत के लिए बहुत जोखिम भरा होगा। दोनों देशों के बीच पहले से ही सीमा विवाद है और अगर चीन और भारत में दो प्रतिद्वंदी दलाई लामा होंगे तो इससे दोनों के बीच तनाव और बढेगा। दलाई लामा के उत्तराधिकार की लड़ाई में धार्मिक पवित्रता कम होगी और विवाद ज्यादा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)