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नाइजरः सत्ताखोरों, जेहादियों का मारा

नाइजरः सत्ताखोरों, जेहादियों का मारा

कह सकते है नाईजर को क्या जानना और समझना? इसलिए कि नाईजर अफ्रीका के सहेल क्षेत्र का एक देश है और हाल में माली और बुर्किना फासो के बाद इस देश पर सेना सत्ता पर बैठ गई। और इन देशों की पूरी पट्टी में इस्लामिक स्टेट और अलकायदा से जुड़े जेहादियों की भी तूती है। पिछले साल ही नाईजर, बुर्किनो फासो और माली में हुए हिंसक संघर्षों में करीब 10,000 लोग मारे गए थे। सन् 2020 में माली में सेना ने नागरिक सरकार से सत्ता छीनी। बुर्किनो फासो में बंदूकधारियों के एक समूह ने जनवरी 2022 में सत्ता पर कब्जा कर किया और फिर सितंबर में सेना के ही एक दूसरे गुट द्वारा तख्तापलट। अब नाइजर में सेना ने चुने हुए राष्ट्रपति को हटा सत्ता कब्जाई है।

पश्चिमी अफ्रीका में सेनाओं की सत्ता भूख तथा जेहादियों के जूनुन से खतरे की कई घंटिया है। सेनेगल से इरीट्रिया तक फैला हुआ सहेल क्षेत्र, पश्चिम अफ्रीका का बंजर और निर्धन इलाका है। कमजोर और अवैधानिक सरकारों, आर्थिक संकट और क्लाइमेट चेंज के मिले-जुले असर से अतिवादी हिंसा लगातार गंभीर होते हुए है। पिछले एक दशक में इस इलाके में हिंसक जेहादियों, तानशाह शासकों और विद्रोहियों का बोलबाला रहा है, जो देशों की सीमाओं आर-पार आपस में लड़ते रहे हैं और जिसने इस क्षेत्र और इस क्षेत्र के बाहर के देशों के सामने गंभीर चुनौतियां खड़ी की हैं।

26 जुलाई को हुए सैन्य तख्तापलट के बाद सहेल में पश्चिम का अंतिम किला याकि नाइजर भी ढह गया।  फ्रांस से सन् 1960 में आजाद होने के बाद से यह नाइजर में हुआ पांचवा तख्तापलट है और इसने देश में लोकतंत्र का पनपता हुआ पौधा उखाड़ फेंका है। नाइजर में कुछ साल पहले ही सत्ता का शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक हस्तांतरण हुआ था और राष्ट्रपति मोहम्मद बजौम ने बतौर चुने हुए राष्ट्रपति के सत्ता संभाली थी।लेकिन ्ब जनरल अब्दुररहमाने चियानी, जो राष्ट्रपति मोहम्मद बजौम के सहायक थे, ने सेना के एक हिस्से के साथ मिलकर राष्ट्रपति को पद से हटा दिया, स्वयं सैन्य सरकार के मुखिया बन गए और स्वयं को राज्याध्यक्ष घोषित कर दिया।

ऐसी खबरें हैं कि राष्ट्रपति, जनरल चियानी को बर्खास्त करने वाले थे। वहीं जनरल चियानी का दावा है कि बजौम को इसलिए हटाया गया क्योंकि वे देश की अर्थव्यवस्था को सम्हालने और उग्रवादियों से संघर्ष – दोनों काम ठीक से नहीं कर पा रहे थे। हालांकि इसके पीछे असली कारण सत्ता की हवस है, जो इस तरह के सभी देशों में तख्तापलट की वजह होती है।

यह तख्तापलट न सिर्फ इस इलाके के लिए बल्कि सारी दुनिया के लिए बुरी खबर है।

नाईजर में हुए तख्तापलट के बाद बीबीसी ने खबर दी कि वहां की सड़कों पर अचानक रूसी झंडे नजर आने लगे हैं। राजधानी निमये में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान भी रूसी झंडे लहराए गए और फ्रांस के दूतावास पर हमला किया गया। फ्रांस, जो यहां का औपनिवेशिक शासक रहा है, ने वहां से अपने नागरिकों को निकालना शुरू कर दिया है। नाईजर में जेहादियों से लड़ने के लिए उसके 1,500 सैनिक मौजूद हैं और उसने नाईजर को दी जा रही सहायता स्थगित कर दी है। प्रदर्शनकारियों द्वारा निमये में फ्रांस के दूतावास को जलाने के प्रयास के बाद फ्रांस ने धमकी भरे स्वर में कहा कि ‘‘फ्रांस से हितों पर किसी भी प्रकार का हमला कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।” नाईजर में अमेरिका के 1,100 सैनिक और दो ड्रोन अड्डे हैं। नाईजर दुनिया में यूरेनियम, जो एटॉमिक एनर्जी के उत्पादन के लिए ज़रूरी कच्चा माल है, का सातवाँ सबसे बड़ा उत्पादक है और इसका एक चौथाई हिस्सा यूरोप को निर्यात होता है, विशेषकर नाइजर के पूर्व शासक फ्रांस को।

जिहादवाद पूरे पश्चिमी अफ्रीका में फैल गया है। पिछले साल जेहादियों से जुड़ी हिंसा में 22,000 अफ्रीकियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, जो ईराक में सन् 2014, जब इस्लामिक स्टेट अपने चरम पर था, में मारे गए लोगों से दोगुना है। नाईजर की सैन्य सरकार का दावा है कि वह जेहादियों का मुकाबला बेहतर ढंग से करेगी  लेकिन बुर्किनो फासो और माली में निर्वाचित सरकारों के पतन के बाद जेहादी हिंसा में बढ़ोत्तरी ही होती हुई है।

इसके अलावा इस इलाके में रूस का हस्तक्षेप भी बढ़ रहा है। पिछले साल की तुलना में रूस सहेल क्षेत्र को कहीं ज्यादा महत्व दे रहा है। वेगनर समूह के भाड़े के सैनिकों के जरिए रूस माली और बुर्किनो फासो जैसे देशों में अपनी दखल बढ़ा रहा है। वह पश्चिमी देशों की गलत नीतियों, बढ़ती यूरोप-विरोधी भावनाओं और अंतर्राष्ट्रीय व स्थानीय ताकतों के इन देशों में अस्थिरता के मूल कारणों की ओर ध्यान न देने का फायदा उठा रहा है। येवगेनी प्रिगोझिन की रूचि क्षेत्र में शांति लाने से ज्यादा वहां की खनिज सपंदा की बंदरबांट करने में है।

नाईजर में लोकतांत्रिक सरकार के पतन के बाद इस क्षेत्र की समस्याओं को सुलझाना और कठिन होगा। पश्चिम को इकोवास (इकोनोमिक कम्युनिटी ऑफ़ वेस्ट अफ्रीकन कन्ट्रीज) के रूप में आशा की एक हल्की सी किरण नजर आ रही है जो पिछले दो दशकों में अन्य स्थानों के अलावा गाम्बिया, गिनी और साओ टोमो में हुए तख्तापलट को उलटने में सफल हुआ था।

हालांकि इकोवास ने नाईजर के सैन्य शासकों से कहा है कि वे एक हफ्ते के अंदर राष्ट्रपति को रिहा कर उन्हें सत्ता सौंपे और ऐसा न करने पर उनके खिलाफ बल प्रयोग की धमकी दी है। लेकिन इस धमकी को पड़ोसी देशों माली, बुर्किनो फासो और गिनी ने यह कहते हुए तुरंत अस्वीकार कर दिया है कि नाईजर में किसी भी प्रकार का सैन्य हस्तक्षेप ‘‘हमारे खिलाफ युद्ध की घोषणा” माना जाएगा।

तभी यह गंभीर अंतरराष्ट्रीय संकट है और यदि शक्तिशाली देशों – चाहे वह रूस हो, या चीन, या कोई पश्चिमी देश या कोई अन्य – ने अफ्रीका महाद्वीप में सबसे ताकतवर बनने की लिप्सा के चलते अपना औपनिवेशिक रवैया नहीं छोड़ा तो महाद्वीप में स्थिरता आना असंभव होगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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Published by श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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