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ऋषि सुनक का एक साल

ऋषि सुनक को यूके की सत्ता सम्हाले एक साल पूरे हो गए।वे पिछली दीवाली पर ब्रिटेन के पहले अश्वेत और पहले हिन्दू प्रधानमंत्री बने थे। वह बोरिस जॉनसन और लिज़ ट्रस के उथलपुथल भरे कार्यकाल के बाद का दौर था। सुनक के इस उच्चतम पद पर पहुंचने ने सभी हिन्दुओं और गैर-श्वेत पुरूषों और महिलाओं को जोश से भर दिया था, वे खुश और गौरवान्वित महसूस कर रहे थे, आखिर उनकी एक बड़ी उम्मीद पूरी हुई थी।

सुनक एक उतार-चढ़ाव भरे दौर में प्रधानमंत्री बने। इसलिए उन्हें अपनी योग्यता साबित करने की चुनौती का सामना करना पड़ा। ब्रेक्सिट और उसके बाद कोरोना महामारी के दौरान वे वित्तमंत्री थे और उन्होंने दोनों अवसरों पर अपना लोहा मनवाया था। इसलिए प्रधानमंत्री के रूप में भी उनसे बहुत अपेक्षाएं थीं और वे चर्चाओं के फोकस में थे। लेकिन सौम्य, आत्मविश्वास से लबरेज, उत्साही एवं आकर्षक सुनक एक साल बाद अपने डूबते हुए जहाज को इस तूफानी और अंधकारमय दौर में भी तैरते रखने में कामयाब रहे हैं जबकि दुनिया दो युद्धों और आर्थिक समस्याओं से जूझ रही है।

चुनौतियों का मजबूती से सामना करने के लिए संकल्पित सुनक अपनी हर पत्रकारवार्ता में पांच इरादे दुहराते हैं – वे कहते हैं कि महंगाई कम करना, अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज करना, देश का कर्ज घटाना, एनएचएस में प्रतीक्षा अवधि कम करना और गैर-कानूनी प्रवासन को नियंत्रित करना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल रहेगा।पर इन सभी मामलों में प्रगति कम हो रही है और शोर ज्यादा है। इसके अलावा दो युद्ध जारी हैं जिनसे दुनिया में उथलपुथल है। इसके नतीजे में अर्थव्यवस्था चिंता का प्रमुख विषय है। वे संभवतः साल के अंत तक मुद्रास्फीति को घटाकर 5.3 प्रतिशत तक लाने के लक्ष्य की ओर संतोषजनक गति से बढ़ रहे हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर धीमी है और ब्रिटेन का कुल राष्ट्रीय कर्ज2,600 अरब पौंड तक पहुंच गया है जो जीडीपी का लगभग 97.8 प्रतिशत है।

सर्दी का मौसम आने वाला है। तभी उनके सामनेमरीजों कीप्रतीक्षा अवधि बढ़ने के कारण एनएचएस का मसला चुनौतीपूर्ण होगा।उधर गैर-कानूनी प्रवासन में गुजरे साल 26,500 से अधिक लोगों ने छोटी-छोटी नावों में ब्रिटिश चैनल को पार किया और सरकार की गैरकानूनी प्रवासियों को एक तीसरे देश (रवांडा) निर्वासित करने की नीति की पड़ताल सर्वोच्च न्यायालय कर रहा है।प्रधानमंत्री सुनक पर करों में कटौती करने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि वित्तमंत्री जेरेमी हंट वसंत में आने वाले बजट में इस संबंध में कोई घोषणा करेंगे।

बावजूद इस सबके कहा जा सकता है कि अपने पूर्ववर्ती के 49 दिनों के अराजकतापूर्ण कार्यकाल के बाद सुनक ने ब्रिटेन के हालात सुधारे। लेकिन राजनैतिक दृष्टि से सुनक विफल रहे हैं। उनकी पार्टी जनमत सर्वेक्षणों में और मिड-बेडफोर्डशायर और टेमवर्थ में हुए दो उपचुनावों में लेबर पार्टी से बहुत पीछे, दूसरे स्थान पर रही। मिड-बेडफोर्डशायर में किसी भी अन्य ब्रिटिश उपचुनाव की तुलना में सबसे अधिक बहुमत के पलटने का रिकार्ड कायम हुआ तो टेमवर्थ के उपचुनाव में सन् 1945 के बाद सबसे अधिक संख्या में मत टोरी से लेबर की ओर जाने की स्थिति बनी।

सो लगता है कि ब्रिटिश राजनीति की दिशा बदल रही है। टोरी पार्टी का बोलबाला कम हो रहा है। विशेषज्ञों ने कहा है कि उनकी पार्टी ‘‘गंभीर चुनावी चुनौतियों” का सामना कर रही है। जहां तक सुनक का सवाल है, संडे टाईम्स के अनुसार 25 कंजरवेटिव सांसद उनके नेतृत्व में अविश्वास व्यक्त करने वाले पत्र लिखने की तैयारी कर  रहे हैं। इस सबका फायदा लेबर पार्टी को हो रहा है जो जनमत सर्वेक्षणों में तेजी से आगे बढ़ रही है और विरोधी नेता केयर स्ट्रेमर, सरकार विरोधी माहौल के कारण मजबूत स्थिति में हैं। जनता का भी सुनक के प्रति नजरिया बदला है। एक साल पहले उनके प्रति  सद्भावना थी, लोगों को उन पर भरोसा था – वह भी इस बात के बावजूद कि उन्हें जनता ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर नहीं चुना था। लेकिन आज एक साल बाद यू गव के जनमत संग्रह के अनुसार आधे ब्रिटिश नागरिकों का कहना है ऋषि सुनक एक ‘घटिया’ या ‘बेकार’ प्रधानमंत्री रहे हैं। केवल 11 प्रतिशत ने उन्हें ‘अच्छा’ या ‘सबसे अच्छा’ बताया। संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद से सुनक की लोकप्रियता में गिरावट आई है।

लेकिन सुनक के लिए सब कुछ अंधकारमय नहीं है। सुनक आशावादी हैं और वे न केवल ब्रिटेन के निवासियों बल्कि वहां की राजनीति में बदलाव लाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं, और साथ ही वैश्विक मंच पर चुनौतीपूर्ण महत्वूपर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

और यदि वे अपने वादे पूरे करते हैं तो संभव है कि टोरी मुकाबले में बने रहें। सुनक को अर्थव्यवस्था के बढ़िया प्रबंधक होने की अपनी छवि पर खरा उतरना है। इसे साबित करने पर ही वे चुनाव जीतने की उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि ऐसा हो पाएगा। सवाल यह भी है कि उनकी पार्टी द्वारा कई सालों तक अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के कारण ऐसा करना संभव भी है या नहीं? सुनक चाहते हैं कि उन्हें सिद्धांतों से चिपके रहने वाले नेता के बजाए एक व्यवाहारिक नेता के रूप में याद किया जाए। यह देखा जाना बाकी है कि टोरी पार्टी उनके नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार है या नहीं। यदि पार्टी फिर से आपसी झगड़ों में उलझ गई तो वह अपने आप को विपक्ष में पाएगी। सुनक के लिए उपलब्ध समय बीतता जा रहा है। उन्हें अपने वायदों को पूरा करने के लिए जोरशोर से जुटना होगा तभी वे जनता का भरोसा दुबारा हासिल कर पाएंगे। आखिरकार कोई भी विचारधारा जनमत से बढ़कर नहीं हो सकती। इसके अलावा सुनक को ब्रिटेन की दिशा बदलने वाले गैर-श्वेत व्यक्ति की विरासत छोड़ने के लिए ब्रिटिश जनता के समर्थन की जरूरत होगी। उनकी सफलता पर बहुत कुछ निर्भर है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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