trump tariff war: कहते हैं कि गरजने वाले बादल बरसते नहीं हैं और भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं हैं। मगर ट्रंप साहब बरसते भी हैं और काटते भी हैं।
अब यह साफ़ है कि ट्रंप के इस राष्ट्रपति काल में कोरी बातें ही नहीं होंगी। निर्णायक कदम भी उठाए जाएंगे। या यूं कहें कि ‘व्यापार-व्यवसाय को व्यवस्थित‘ किया जाएगा।
वे घाटा नहीं चाहते। केवल मुनाफा कमाना उनका लक्ष्य है। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने एक व्यापारी की तरह काम किया था, जो वे हैं भी।
यही वजह थी कि राजनैतिक परिपाटियों के प्रति उनका रवैया अत्यंत तिरस्कारपूर्ण था और दुनिया के सबसे सुदृढ़ लोकतंत्र को उन्होंने बहुत नुकसान पहुँचाया।
इसका अर्थ यह भी है कि ट्रंप के इस दौर में परंपरागत युद्ध नहीं होंगे। बल्कि आर्थिक युद्ध होंगे जो वैश्विक व्यवस्था को पंगु बना देंगे।(trump tariff war)
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कोई आश्चर्य नहीं कि ट्रंप ने पद संभालने के दो हफ़्तों के भीतर ही अमेरिका के तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार देशों से आने वाले माल पर अच्छा-खास आयात शुल्क लागू कर दिया है।
इससे एक बार फिर वैश्विक व्यापार युद्ध की शुरुआत की आशंका नज़र आने लगी है। एक फरवरी को उस आधिकारिक आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए गए जिससे कनाडा और मेक्सिको दोनों पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत और चीन पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त आयात शुल्क लागू हो गया।
जवाबी कार्यवाही करते हुए मेक्सिको और कनाडा दोनों ने अमेरिका से आने वाले माल पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत आयात शुल्क लागू करने की घोषणा कर दी।(trump tariff war)
इसके अलावा जस्टिन ट्रूडो ने धमकी दी कि “अमेरिकी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण वस्तुओं की उपलब्धता बाधित” हो सकती है। इस बीच चीन ने कहा है कि वह अमेरिका की मनमानी की शिकायत विश्व व्यापार संगठन से करेगा।
आयात शुल्क लागू करने का इतिहास
आयात शुल्क का इस्तेमाल आधुनिक काल में प्रायः कूटनीति के एक हथियार, सौदेबाजी के एक औजार के रूप में किया जाता है, ताकि दूसरे देश को झुकने के लिए बाध्य किया जा सके।
अमेरिका का आयात शुल्क लागू करने का बहुत पुराना इतिहास है। उसके राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आने के कुछ समय बाद, सन् 1789 में, अमेरिकी कांग्रेस ने पहला कानून पारित किया था(trump tariff war)
जिसका उद्धेश्य हाल में गठित हुए गणतंत्र के सामने खड़ी दो समस्याओं का हल निकालना था: पहला, राजस्व प्राप्त करना, जिसकी सख्त जरूरत थी, और दूसरा देश के औद्योगिकरण का लक्ष्य हासिल करना, क्योंकि उस समय देश खतरनाक हद तक इंग्लैड पर निर्भर था।
ट्रंप का आयात शुल्क लागू करने का फैसला भी इसी लक्ष्य से प्रेरित है – चीन की जबरदस्त तरक्की की राह में बाधाएं खड़ी करना, जिस पर दुनिया के बहुत से देश निर्भर हो गए हैं।
शपथ के तुरंत बाद ट्रंप(trump tariff war)
शपथ के तुरंत बाद दिए गए अपने भाषण में ट्रंप ने ऊंची आवाज में कहा था, “अपने नागरिकों पर कर लगाने, जिसके नतीजे में अन्य देश समृद्ध होंगे, के बजाए हम दूसरे देशों पर कर और शुल्क लगाएंगे ताकि हमारे नागरिक समृद्ध हों”।
ट्रंप के पहले कार्यकाल में आयात शुल्क लागू करने के मामले में चीन उनके निशाने पर था। अंततः चीन से होने वाले करीब 370 अरब डालर के आयात पर लगाया गया। अब जो आयात शुल्क लागू किया गया है वह कनाडा और मेक्सिको से होने वाले लगभग 900 अरब डालर के आयात पर लागू होगा।
चीन पर लगाया गया अतिरिक्त आयात शुल्क कम्प्यूटरों, खिलौनों और स्मार्टफोनों आदि पर भी लागू होगा, जिन्हें ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में अतिरिक्त आयात शुल्क से मुक्त रखा था ताकि अमरीकी उपभोक्ताओें पर बोझ न पड़े।(trump tariff war)
हालांकि ज्यादातर अर्थशास्त्रियों को ट्रंप की आयात शुल्क को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की रणनीति की सफलता पर शंका है – चाहे उसका लक्ष्य राजस्व बढ़ाना हो या घरेलू उद्योग को संरक्षण देना हो, जो वैश्विक प्रतियोगिता के चलते नुकसान झेल रही है। उनका कहना है कि इसके घातक नतीजे हो सकते हैं।
ट्रंप के एक ऐसे राष्ट्रपति हैं जो अपनी ख्याली दुनिया में रहना पसंद करते हैं। उनके फैसले उनकी सनक पर आधारित होते हैं। उनकी मानसिक अस्थिरता उन्हें गुमराह करती है।
ग्रीनलैंड पर अमेरिका का नियंत्रण
इस कार्यकाल में ट्रंप एक ऐसी दुनिया का सपना देख रहे हैं, जिसमें ग्रीनलैंड पर अमेरिका का नियंत्रण होगा, पनामा नहर दुबारा अमेरिका के कब्जे में होगी और बाकी दुनिया को विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तक अपनी पहुंच बनाए रखने के लिए अतिरिक्त धन खर्च करना होगा।
ट्रंप का सपना ‘गिलडिड ऐज’ में वापिस लौटने का है। यह दौर 1870 से लगभग 1910 तक चला, जिसे औद्योगिक प्रगति के रूप में अमेरिका का स्वर्णकाल माना जाता है।(trump tariff war)
उन्होंने उस दौर का जिक्र करते हुए कहा था, “तब हमारा देश सबसे अधिक समृद्ध था”। जब ट्रंप उस दौर की बात करते हैं, तब वे उस समय देश के बहुत बड़े स्टील उत्पादक होने की चर्चा करते हैं, और वायदा करते हैं कि आयात शुल्क लागू करने से वही दौर वापिस आ जाएगा।
हालांकि अब समय बदल चुका है। मगर आज के निरंकुश शासकों को यह नजर नहीं आता। क्योंकि अतीत की बातों ने उन्हें इस हद तक अंधा बना दिया है कि उन्हें न तो कमजोर वर्तमान नजर आता है और न ही अंधकारमय भविष्य।
ऐसा माना जा रहा है कि आयात शुल्क लागू करने में ट्रंप की दिलचस्पी से वैश्विक व्यवस्था खतरे में पड़ गई है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से किसी भी राष्ट्रपति वैश्वीकरण को पंगु करने और आर्थिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए इतना नहीं किया है।
मेक्सिको और कनाडा की कार्यवाही (trump tariff war)
मेक्सिको और कनाडा ने जवाबी कार्यवाही की है। ट्रंप पहले से ही अपने अगले कदमों की योजना बना रहे हैं। उनका अगला निशाना यूरोप होगा।(trump tariff war)
वे अंततः अमेरिका में आयातित होने वाली हर वस्तु पर अतिरिक्त आयात शुल्क लगाना चाहते हैं। मेक्सिको, कनाडा और चीन पर लगाए गए अतिरिक्त आयात शुल्क से हमें अंतराष्ट्रीय व्यापारिक प्रणाली की भविष्य में संभव उस तबाही की एक झलक देखने को मिलती है जिसे आने वाले महीनों में लाने का इरादा ट्रंप रखते हैं।
सावधान हो जाईए। हम जल्दी ही एक और युद्ध की मुसीबतों में उलझने वाले हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)