US President Donald Trump का एजेंडा तैयार है। उन्होंने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। और मंत्रियों और आला अफसरों की टीम के लिए ऐसे लोगों को चुना हैं जो उनके ‘मेक अमरीका ग्रेट अगेन’ (एमएजीए) मिशन को उनके साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए अपना मिशन भी बनाएं।
आठ साल पहले जब ट्रंप वाशिंगटन पहुंचे थे, तब वे एक राजनैतिक नौसिखिए थे और उन्हें मददगारों की दरकार थी। उस समय उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में जिन लोगों को शामिल किया था, उनमें से कई परंपरागत रूढ़िवादी थे जिनसे वे अधिक परिचित नहीं थे। मगर इस बार, वे एक पूर्व राष्ट्रपति के रूप में सत्ता संभालने जा रहे हैं। उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी को पूरी तरह से बदल दिया है और मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के चयन का आधार योग्यता और अनुभव न होकर केवल और केवल उनके प्रति पूरी वफादारी और उनके एजेंडे के प्रति पूरी प्रतिबद्धता है।
डोनाल्ड ट्रंप का एजेंडा: प्रतिशोध और प्रशासन में वफादारों की नियुक्ति
और US President Donald Trump के लिए एक एजेंडा एमएजीसे से भी बड़ा और महत्वपूर्ण है = और वह है बदला, प्रतिशोध। इसके लिए वे कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं। वे ऐसा प्रशासन गढ़ रहे हैं जिसमें उनके मित्र, पुराने सहयोगी और परिवारजन हों – मूलतः ऐसे लोग जो उनके प्रति वफादार हों और जिनके मन में उनकी तरह ‘सत्ता प्रतिष्ठान’ से बदला लेने की आग धधक रही हो।
इनमें सबसे ताज़ा हैं कश्यप ‘काश’ पटेल, जो एफबीआई के निदेशक हो सकते हैं। काश को इसलिए चुना गया है क्योंकि वे भी ट्रंप की तरह एफबीआई के कटु आलोचक हैं। एफबीआई के बारे में अपने इरादों की एक झलक उन्होंने अपनी पुस्तक ‘गर्वमेंट गेंगस्टर्स’ में पेश की है जिसमें एफबीआई के वाशिंगटन स्थित मुख्यालय को बंद करने, उसके उच्चाधिकारियों को निकाल बाहर करने और देश में कानून लागू करने वाली संस्थाओं पर पूरा नियंत्रण स्थापित करने की बात कही गई है।
पटेल एफबीआई और न्याय विभाग से बदला लेने का इरादा रखते हैं। उन्होंने ब्यूरो के शीर्ष नेतृत्व को पूरी तरह बदल देने की वकालत की है क्योंकि उन्हें वे ‘जनता के लिए खतरा’ मानते हैं। वे ‘डीप स्टेट’ के मुखर आलोचक हैं और प्रेस को अमरीका का सबसे ताकतवर दुश्मन मानते हैं। उन्होंने पिछले साल कहा था, “हम मीडिया के उन लोगों को पकड़ेंगे जिन्होंने अमेरिकी नागरिकों के बारे में झूठी बातें कहीं और जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में हेराफेरी करने में जो बाइडन की मदद की। हम ऐसे लोगों को नहीं छोड़ेंगे। ये हम आपराधिक मामला बनाकर करेंगे या दीवानी, यह हम तय करेंगे”।
डोनाल्ड ट्रंप का चुनावी एजेंडा: वफादारों को प्राथमिकता, अनुभव की कमी पर ध्यान नहीं
13 नवंबर को ट्रंप ने तुलसी गाबार्ड को नेशनल इंटेलिजेंस के निदेशक के पद के लिए अपना नॉमिनी घोषित किया। इस पद को संभालने वाला व्यक्ति देश की 18 गुप्तचर एजेंसियों के बीच समन्वय करता है। इस खबर से गुप्तचर एजेंसियों और अमेरिका के मित्र राष्ट्रों में यह चिंता व्याप्त हो गई है कि गुप्तचार रिपोर्टों को ट्रंप के अनुकूल बनाने के लिए तोडा़-मरोड़ा जाएगा। पूर्व में गाबार्ड ने कई मामलों में ऐसा रवैया अपनाया है जिससे वे सबसे अलग-थलग पड़ गईं थीं। कुछ समय के लिए उनका नाम टीएसए की आतंकी निगरानी सूची में भी था। वे एक पूर्व डेमोक्रेट हैं और अमेरिका की युद्ध को बढ़ावा देने वाली विदेश नीति की कटु आलोचक रही हैं।
सन् 2017 में उन्होंने असद से मुलाकात करने के लिए सीरिया की एक गुप्त यात्रा की। उन्होंने असद से कहा था कि सीरिया, अमेरिका का दुश्मन नहीं है। वे तब ट्रंप की कृपापात्र बनीं जब उन्होंने ट्रंप और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के बीच सितंबर में फिलेडेल्फिया में हुई प्रेसिडेंशियल डिबेट की तैयारी में ट्रंप की मदद की। इसी का नतीजा है कि गुप्तचर संस्थाओें में काम करने का कोई अनुभव न होते हुए भी और यहां तक कि कभी भी संसद की गुप्तचर क्रियाकलापों संबंधी कमेटी की सदस्य न रहने के बाद भी, तुलसी को गुप्तचर संस्थाओं जैसे सीआईए, एफबीआई और नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी आदि के क्रियाकलापों की निगरानी का काम सौंपकर उपकृत किया गया है।
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लगभग ऐसी ही वजहों से फॉक्स न्यूज के पूर्व एंकर पीट हेगसेथ को रक्षा मंत्री के पद के लिए चुना गया है जबकि उनके पास किसी भी सरकारी पद को संभालने का अनुभव नहीं है। वे सेना को ‘वोक नीतियों’ से मुक्त करना चाहते हैं। उन्होंने एक पुलिस रिपोर्ट में लगाए गए उस आरोप का खंडन किया है कि उन्होंने 2017 में एक सम्मेलन के दौरान एक महिला के साथ यौन हिंसा की थी। इसके अलावा, राबर्ट कैनेडी जूनियर भी हैं, जो वेक्सीन के खिलाफ हैं और विज्ञान के स्थापित सिद्धांतों पर शक करते हैं।
US President Donald Trump ने अलग-अलग विचारधाराओं और दृष्टिकोणों वाले व्यक्तियों को चुना है। लेकिन आज की राजनीति में विचारधारा को कौन महत्व देता है। चुनाव का एकमात्र आधार है एक व्यक्ति के प्रति पूरी वफ़ादारी।
डोनाल्ड ट्रंप का नया एजेंडा: बदला, सत्ता और लोकतंत्र की चुनौतियाँ
जहां डेमोक्रेट पार्टी के प्रमुख नेता, ट्रंप के अन्य आलोचक और बुद्धिवीजी वर्ग, ट्रंप द्वारा मंत्री पद पर किए गए नामांकनों को गलत ठहरा रहे हैं और उन्हें ट्रंप के तिरस्कारपूर्ण रवैये, गुस्से और प्रतिशोध का प्रतीक बता रहे हैं, वहीं ट्रंप के समर्थक इन नामांकनों को इस बात का सुबूत बता रहे हैं कि ट्रंप अंततः वाशिंगटन के सत्ता तंत्र से आजाद हो गए हैं। उन्हें इस बात की प्रसन्नता है कि ट्रंप ‘वाशिंगटन वालों’ से घिरे नहीं रहेंगे बल्कि उनके इर्दगिर्द असली दुनिया के ‘बाहरी’ लोग होंगे। ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के पैरोकार मानते हैं कि वाशिंगटन डीसी का प्रशासन, दरअसल, एक कठपुतली शो है, जिसके नियंत्रक अंधेरे में छुपे हुए हैं। कुछ-कुछ ऐसी ही बातें दस साल पहले दिल्ली के बारे में कही गईं थीं।
न्यूयार्क टाईम्स में प्रकाशित एक विश्लेषण में डेविड सांगर, जो पत्रकार के रूप में पांच अमेरिकी राष्ट्रपतियों का कार्यकाल देख चुके हैं, ने कहा है कि US President Donald Trump की नयी टीम में तीन समूह होंगें – एक बदला लेने वाला समूह, दूसरा बाज़ार में अफरातफरी न मच जाए, यह सुनिश्चित करने वाला समूह और तीसरा सरकार को स्लिम बनाने वाला समूह। उन्होंने आगे लिखा “ये तीनों मिशन मिल कर काम करेंगे या इनमें टकराव होगा, यह नयी सरकार के मामले में सबसे बड़ा सवाल है।”
मगर हम सब जानते हैं कि जब बदला लेने की इच्छा हर फैसले का आधार बन जाती है तब क्या होता है। असहमति को विश्वासघात मान लिया जाता है। सत्ता निरंकुश हो जाती है, देश में टकराव और उथलपुथल के हालात बन जाते हैं। और लोकतंत्र तहस-नहस हो जाता है। अमेरिका के मामले में यह टकराव और उथलपुथल पूरी दुनिया के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)