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सभी कोरियाई दो साल छोटे हो गए!

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क्या ही बढ़िया हो यदि हमारी उम्र कुछ बढ जाए – एक-दो साल भी। खुदा गवाह है कि हमारे तीन साल कोविड महामारी ने हज़म कर लिए हैं और हमें सचमुच कुछ और दिनों की जरूरत है। पर हर कोई तो दक्षिण कोरिया के लोगों की तरह किस्मत वाला हो नहीं सकता। उन्हें तो उनकी ही सरकार ने जवानी का अमृत चटा दिया है।

हां, दक्षिण कोरिया की सरकार ने एक नया कानून बनाया है।उसने उम्र का हिसाब लगाने के अपने पारंपरिक तरीके को छोड़कर अंतर्राष्ट्रीय तरीका अपना लिया है। दक्षिण कोरिया के पारंपरिक – और सच पूछा जाए तो कुछ अजीब से – तरीके में बच्चा पैदा होते ही एक साल का माना जाता था। उसकी उम्र तब से गिनी जाती थी जब वह अपनी मां के गर्भ में आया होगा। यही नहीं, हर साल 1 जनवरी को सभी की उम्र में एक साल जोड़ दिया जाता था, चाहे उनका जन्मदिन कुछ भी हो।

मतलब ये कि 31 दिसंबर को पैदा होने वाला बच्चा तीसरे ही दिन दो साल का हो जाता था! निश्चित रूप से यह बहुत पेंचीदा, उलझन पैदा करने वाला और गलत तरीका था। यही कारण है कि अपने चुनाव अभियान के दौरान राष्ट्रपति यून सुक योल ने घोषणा कर दी थी कि चुने जाने के बाद उनकी सरकार की पहली प्राथमिकता होगी उम्र की गणना करने के पारंपरिक तरीके को रद्दी की टोकरी में डालना। और यही हुआ। दक्षिण कोरिया ने अब अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली को अपना लिया है। मतलब यह है कि कल आप 50 के थे और आज 48 के। वाह, क्या बात है!

इस पुरातन पद्धति की जगह आधुनिक तरीके को अपनाने वाला कानून पिछले साल दिसंबर में पास कर दिया गया था।सो उम्र की गणना के मामले में अब कोरियाई हमारे जैसे हो गए हैं। परंतु यह जरूर है कि जहां हम बूढ़े हो रहे हैं वहीं वो जवान हो गए हैं। एक स्थानीय फर्म हेंकुक रिसर्च द्वारा जनवरी 2022 में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक हर चार में से तीन दक्षिण कोरियाई नई पद्धति को अपनाने के पक्ष में थे।

उम्र को नापने का यह पारंपरिक तरीका पूर्वी एशिया के कई दूसरे देशों में भी प्रचलित था। परंतु एक-एक करके सब ने इसे छोड़ दिया – जापान ने 1950 में और उत्तर कोरिया ने 1980 के दशक में। दक्षिण कोरिया के नेताओं को यह समझने में बहुत वक्त लग गया कि दुनिया के दूसरे लोगों के बरक्स वे जल्दी बूढ़े हो रहे हैं। पर चलिए, देर आयद, दुरूस्त आयद। बुढ़ापे से देरी भली।

परंतु नई प्रणाली में भी कुछ छेद हैं। जैसे उनकी नई (कम) उम्र के कारण कोरियाई शराब या सिगरेट खरीदने से वंचित नहीं रहेंगे और ना ही वह साल बदलेगा जिसमें वे शिक्षा हासिल करना शुरू कर सकते हैं या जिसमें वे 21 महीने की अनिवार्य नेशनल सर्विस के लिए पात्र हो जाएंगे।

कोरियाईयों को उम्मीद है कि नई प्रणाली से उनके समाज का पारंपरिक ढांचा बदलेगा और वे सदियों पुरानी प्रथाओं से मुक्ति पा सकेंगे। और कुछ तो सिर्फ इसलिए खुश हैं क्योंकि वे जवान हो गए हैं। काश, हम भी रिवाइंड कर पाते और महामारी के दुश्वार दिनों के बदले हमें उतने ही नए दिन मिल जाते। लॉकडाउन में जो बर्थडे हम मना न सके,वे हम मना पाते। काश, ऐसा होता क्योंकि आख़िरकार कोई चाहे कुछ भी कहे, उम्र महज एक नंबर नहीं है. (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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