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स्पेनः चुनावी नतीजा त्रिशंकु, पर लोकतंत्र कायम!

स्पेनः चुनावी नतीजा त्रिशंकु, पर लोकतंत्र कायम!

स्पेन में मध्यावधि चुनाव की घोषणा अचानक हुई। तभी यूरोप सकते में था।जानकारों को लगा कि स्पेन की राजनीति में कुछ अशुभ होने जा रहा है। ज्ञानी लोग भविष्यवाणी कर रहे थे कि चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिलेगा। कई पार्टियों का गठबंधन सत्ता में आएगा, जिसमें अति दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी पार्टी भी होगी।और यदि ऐसा हुआ तो सन् 1975 में फासिस्ट तानाशाह फ्रांसिस्को फ्रेंको की मौत के बाद पहली बार स्पेन में अति दक्षिणपंथी सत्ता होगी।

इन चिंताओं के बीच वामपंथ की ओर कुछ झुके हुए मध्यमार्गी प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज ने यह कहते हुए मध्यावधि चुनाव करवाने के अपने फैसले को सही ठहराया कि दूसरेदेशों में हुए हाल के चुनावों में कट्टर दक्षिणपंथी शक्तियों का बोलबाला रहा है। उन्होंने कहा था, ‘‘आने वाले चुनावों से यह साफ हो जाएगा कि स्पेन की जनता कैसी सरकार चाहती है – जो बाइडन जैसी या डोनाल्ड ट्रंप जैसी, लूला डि सिल्वा जैसी या ज़ायर बोलसोनारो जैसी।”

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते गए, प्रचार कटु होता गया और सियासी माहौल में ज़हर घुलता गया।राजनीति दो फाड़ होने लगी।  चुनाव दक्षिणपंथ बनाम वामपंथ, लोकतंत्र बनाम तानाशाही का हो गया। दक्षिणपंथी नेताओं का प्रचार प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज पर केन्द्रित था। इसका लब्बोलुबाब था कि यदि सांचेज की सत्ता में वापसी होती है तो देश बिखर जाएगा। स्टाइल वही थी जिससे हम सब परिचित हैं – पुराने मूल्यों और परंपराओं का गुणगान, राष्ट्रवाद के जयकारे और स्पेनिश के रूप में पहचान पर जोर आदि।

ध्यान रहे स्पेन में सन 1930 के दशक में हुए गृहयुद्ध और फिर जनरल फ्रेंको की चालीस साला तानाशाही के दौर में स्पेन के लोग दो हिस्सों में बंटे रहे हैं। आज तक इस बारे में खुली बहस नहीं हुई है कि उस गृहयुद्ध में कौन हमलावर था और कौन शिकार! घाव अब भी रिस रहे हैं। इसलिए ऐसा लग रहा था कि स्पेन में दक्षिणपंथ की वापिसी का माहौल है। यूरोप में सबको चिंता थी कि अति दक्षिणपंथी दल वाक्स मैदान में उतर गया है और उसका मध्य दक्षिणपंथी पीपुल्स पार्टी के साथ गठबंधन हो सकता है। वॉक्स समस्त यूरोप के उस रूझान का हिस्सा है जिसमें अति दक्षिणपंथी दलों का वोटिंग परसेंटेज बढ़ रहा है, और ऐसे दल अपने बलबूते पर या मध्य दक्षिणपंथियों से गठजोड़ करके हंगरी, इटली और फिनलैंड में सत्ता हासिल कर चुके हैं। पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन ने ‘ले मोंड’ अखबार में इतवार को छपे अपने लेख में वाक्स के एजेंडे को ‘डरावना’ बताते हुए चेतावनी दी थी कि स्पेन में उसके सत्ता में आने का मतलब होगा “यूरोप का दक्षिणपंथी अंधे कुँए में गिरने की तरफ एक और कदम।”

वाक्स फेमिनिस्म, एलजीबीटीक्यू के अधिकारों और स्पेन के गृहयुद्ध और फ्रांसिस्को फ्रेंको की तानाशाही के दौरान हुए मानवाधिकारों के हनन पर किसी भी चर्चा का विरोधी है। वह प्रवासियों को घुसने से रोकने के लिए स्पेन के कब्ज़े वाले पूर्वी अफ्रीकी शहरों सेउटा और मेलिला के चारों ओर दीवार बनाने का हामी है। उसने पृथकतावादी दलों पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक जनमत संग्रह करवाने की मांग की है, जो कि एक खतरनाक संकेत है।

लेकिन रविवार  को सामने आये चुनाव नतीजे दोनों में से किसी भी गुट के पक्ष में नहीं रहे। बंटे हुए स्पेन को त्रिशंकु संसद मिली। जैसा कि अनुमान था दक्षिणपंथी खेमे की मध्यमार्गी दक्षिणपंथी पीपुल्स पार्टी 350 में से 136 सीटें जीतकर सबसे आगे रही, जैसा कि अनुमान था। अति दक्षिणपंथी वाक्स पार्टी को मिली 33 सीटें जोड़कर भी यह बहुमत के लिए जरूरी 176 सीटों से पीछे रह गयी। पेड्रो सांचेज, जिनके बारे में माना जा रहा था कि वे सत्ता विरोधी लहर से जूझ रहे हैं, 122 सीटें जीतने में सफल रहे। उनकी पसंदीदा गठबधन साथी अति वामपंथी सुमर पार्टी ने 31 सीटों पर जीत हासिल की। इस तरह यह समूह भी बहुमत से बहुत दूर रह गया।

इस हालात में दुनिया के सबसे विकसित लोकतंत्र स्पेन (फ्रीडम हाउस की फ्रीडम इन द वर्ल्ड रिपोर्ट के अनुसार) की नजरें अब अपने सम्राट फेलिप छठवें पर हैं जो सबसे पहले पीपी (दक्षिणपंथी गठबंधन) के अल्बर्टो नुनेज़ फीजो को आमंत्रित कर उन्हें बहुमत जुटाने का प्रयास कर प्रधानमंत्री बनने का मौका देंगें। यदि फीजो निमंत्रण ठुकरा देते हैं या बहुमत हासिल नहीं कर पाते है तब सम्राट प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज को यही मौका देंगे। यदि दोनों प्रधानमंत्री पद के लिए होने वाले मतदान के दो माह के अंदर बहुमत प्राप्त नहीं कर पाते तो दुबारा चुनाव करवाए जाएंगे।

इस सबसे स्पेन के नागरिक खुश नहीं हैं। स्पेन के आधुनिक लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार भीषण गर्मी के मौसम में वोट डाले गए और वह भी संडे को। ऐसी खबरें हैं कि वोटिंग के दिन दोनों गुटों के समर्थक अपने-अपने लोगों को मेसेज और फोन के जरिये बाहर निकलने और गर्मी को भूलकर वोट देने को कह रहे थे। चुनाव से कोई निर्णायक नतीजा नहीं निकला और न किसी को बहुमत मिला है। वोटर गर्मी से जूझे और एक दिन की छुट्टी बर्बाद की। पर हाय री किस्मत! गर्मियों के बाद शायद सब कुछ फिर से दुहराया जाएगा। पर एक बात तो है। स्पेन में लोकतंत्र कायम है और अपना काम कर रहा है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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Published by श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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