73 सालों के इतिहास में अब भारतीय न्यायपालिका के पूरी तरह डिजिटल होने की शुरुआत का यह पहला कदम है। फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट की पहली 3 कोर्ट ही ‘ग्रीन कोर्ट’ बनीं हैं। इन तीनों अदालतों में अब ना मोटी-मोटी केस फाइलें होंगी ना ही कोर्ट रूम में पिछले 50 सालों के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की ढेरों किताबें नजर आएंगी।
देश की सर्वोच्च अदालत ने बीते सोमवार को ‘पेपरलेस’ होने की शुरुआत की। पर्यावरण संरक्षण की मंशा से की जाने वाली इस पहल का देश भर में स्वागत किया जा रहा है। कोविड महामारी ने जिस तरह ‘वर्क फ्रॉम होम’ क्लचर को बढ़ावा दिया है उससे हर क्षेत्र में डिजिटल तरीक़े अपनाए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जाने वाली यह पहल भी इसी दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
पिछले तीस सालों से मुझे देश भर के हर स्तर के न्यायालयों में जाने का मौक़ा मिला है। जैसा कि भारत की हर श्रेणी की अदालत में देखा जाता है, कोर्ट रूम किताबों व याचिकाओं से लदे रहते हैं। न्यायाधीशों, वकीलों, कोर्ट के स्टाफ़ व वहाँ पर आने वाले वादियों को ऐसे दम घोटने वाले माहौल में मजबूरन रहना पड़ता है। परंतु जिस तरह कोविड के लॉकडाउन के दौरान कोर्ट की कार्यवाही ऑनलाइन रूप से भी चली, उसने इस बात पर मुहर लगा दी कि तकनीक की मदद से भी अदालत का काम हो सकता है और वो भी काफ़ी कम ख़र्च में।
सुप्रीम कोर्ट की ‘पेपरलेस ग्रीन कोर्ट रूम’ की शुरुआत के बाद सुप्रीम कोर्ट अब पूरी तरह से हाईटेक होने जा रहा है। अत्याधुनिक तकनीक के प्रयोग होने से माननीय न्यायाधीशों के लिए ढेरों काग़ज़ों के पहाड़ की जगह अब एक पतली सी पॉप-अप स्क्रीन ने ले ली है। जो कि इस्तेमाल में भी काफ़ी यूजर फ्रेंडली बताई जा रही है। इसके साथ ही एक डिजिटल लाइब्रेरी की भी शुरुआत हुई है जहां कानून से संबंधित पुस्तकों को तुरंत देखा जा सकता है। 73 सालों के इतिहास में अब भारतीय न्यायपालिका के पूरी तरह डिजिटल होने की शुरुआत का यह पहला कदम है। फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट की पहली 3 कोर्ट ही ‘ग्रीन कोर्ट’ बनीं हैं। इन तीनों अदालतों में अब ना मोटी-मोटी केस फाइलें होंगी ना ही कोर्ट रूम में पिछले 50 सालों के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की ढेरों किताबें नजर आएंगी।
देश के प्रधान न्यायाधीश माननीय डी वाई चंद्रचूड़ की इस पहल को वकीलों, पत्रकारों व अन्य संबंधित लोगों द्वारा काफ़ी सराहा जा रहा है। ऑनलाइन पेशी के लिए इन अदालतों के कक्षों में बड़े-बड़े एलसीडी भी लगाए गए हैं। इतना ही नहीं वकीलों के लिए भी हाईटेक सुविधाएं शुरू की गई हैं, जिसमें वकीलों को भी केस से संबंधित मोटी-मोटी पेपरबुक नहीं ले जानी होंगी। लैपटॉप और टेबलेट के जरिए कागजात जजों को दिखाए जा सकेंगे, जिन्हें पढ़ने में भी आसानी होगी।
केस से संबंधित क़ानूनी दस्तावेज़ों तक आसानी से पहुंचने के लिए न्यायाधीशों के पास दस्तावेज़ आलोकन तकनीक भी होगी। जिसके उपयोग से दस्तावेज़ को मशीन पर रखा जा सकता है, जिसे वकील अपनी स्क्रीन और कोर्ट में लगी बड़ी स्क्रीन पर भी देख सकेंगे। वकीलों के पास फ़ाइलें और दस्तावेज़ पढ़ने के लिए स्मार्ट स्क्रीन भी होंगी।
कोर्ट में मौजूद न्यायाधीश महोदय भी अब कानून की मोटी-मोटी किताबों की जगह डिजिटल ढंग से विभिन्न पुराने फैसले व क़ानून की धाराओं को देख सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट 1 से 5 के कॉरिडोर के अलावा, मीडिया रूम, वेटिंग रूम आदि में वादियों, वकीलों और मीडियाकर्मियों के लिए मुफ़्त वाई-फाई की शुरुआत भी की गई है। इस तरह का बदलाव अभी कुछ कोर्ट में ही किया गया है, जो आने वाले समय में अन्य अदालतों में भी दिखाई देगा।
गौरतलब है कि अदालत कक्षों में बदलाव का सुझाव भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने ही दिया था, जो चाहते हैं कि अदालतें अधिक तकनीक-अनुकूल बनें। वह यह भी चाहते थे कि अदालती कार्यवाही कागज रहित हो। सुप्रीम कोर्ट ने कागज बचाने के लिए कई योजनाएँ भी बनाई हैं, जैसे याचिकाओं को ‘बैक-टू-बैक’ प्रिंट करना (काग़ज़ के दोनों तरफ़ छापना), ई-फाइलिंग करना आदि।
इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट की अधिकतर अदालतों की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करना। कोर्ट की कार्यवाही का सीधा प्रसारण देखने से सबसे अधिक लाभ यह हुआ है कि हमें ये पता चल जाता है कि कोर्ट में किस वकील ने क्या दलील पेश की और इस पर न्यायाधीश महोदय ने क्या प्रतिक्रिया दी। यह जानकारी पहले आसानी से नहीं मिल पाती थी। परंतु अब जो भी इस सीधे प्रसारण को देखने के लिए अधिकृत होता है वो बिना किसी काट-छाँट के पूरी कार्यवाही को आराम से देख सकता है। कोर्ट की कार्यवाही देखने के लिए यह एक सराहनीय कदम है।
इसी तरह कोर्ट के ‘डिस्प्ले बोर्ड’ को भी आप अपने मोबाइल फ़ोन या कंप्यूटर पर बड़ी आसानी से देख सकते हैं। इससे बोर्ड पर यह पता चल जाता है कि किस कोर्ट में कौनसा केस चल रहा है। यदि किसी वकील को एक से अधिक कोर्ट में पेश होना होता है तो इस तकनीक की मदद से उसे पूरी जानकारी अपने फ़ोन पर ही मिल जाती है। पहले ऐसा नहीं होता था, वकील के क्लर्क कोर्ट के आँगन में लगे बोर्ड पर नज़र बनाए रखते थे और वकील को अन्य कोर्टों की प्रगति कि सूचना देने के लिए दौड़ते रहते थे।
ज़ाहिर सी बात है कि आज के तकनीकी युग में हमें समय के साथ चलना आवश्यक हो चुका है। ऐसी कई सेवाएँ हैं जिनका लाभ हम आज घर बैठे ही ले सकते हैं। इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाया गया यह कदम जहां न सिर्फ़ पर्यावरण का संरक्षण करेगा, समय भी बचाएगा, साथ ही कोर्ट में भीड़ भी कम होगी। मोटी-मोटी किताबों की जगह सिर्फ़ लैपटॉप ही नज़र आएँगे और कोर्ट के ऑर्डर की प्रति भी जल्द प्राप्त हो सकेगी। सुप्रीम कोर्ट की यह पहल स्वागत योग्य है।