भोपाल। सीधी जिले में कोल आदिवासी दशमत को बीजेपी नेता शुक्ल द्वारा जिस प्रकार अपमान किया गया क्या उसकी भरपाई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा उनके चरण पखार कर की जा सकती है ? अथवा शुवपुरी में जिस प्रकार दलित समाज के युवक को मल में डुबो कर मार –मार कर बेइज़्ज़त किया वह भुक्तभोगी के मन से मिट सकता है ! शायद नहीं। दशमत को तो सरकार की ओर से 6.50 लाख रुपये की मदद मिली है यह उसके बेइज्जती का मुआवजा है क्या? तो फिर शिवपुरी के डाली को भी तो मिलना चाहिए ?
हक़ीक़त यह है कि जब सरकार का नेत्रत्व सिर्फ चुनाव जीतने को और सरकार बनाने को अपना अंतिम लक्ष्य बना लेता है – तब वह शासन करना भूल जाता है। फिर जनता को भरमाने के लिए तरह – तरह की लोक लुभावन घोषणाएं और नारे दिये जाते हंै। सरकारी खर्चे से बुलाई गयी भीड़ को राजनीतिक घुट्टी पिलाने की कोशिश होती है हर घोषणा पर भीड़ से हामी भरवाई जाती है। मसलन, बोलो भइयो होगा की नहीं, कुछ लोग आवाज़ देते है होगा। हाथ हिला – हिला कर हामी भरवाने की यह कला वास्तव नाजी नेता एडोल्फ हिटलर की थी। जब वह अपनी सोसलिस्ट पार्टी के समर्थन के लिए फैक्टरी और मिल के गेट पर – पाली खतम कर के जाते थके – हारे मजदूरों को उनके हक़ के लिए लड़ने का वादा करता था। उसी समय अपनी पालि {शिफ्ट} में जाने वालों का अभिवादन करता था। चूंकि शिफ्ट में पहुंचने की जल्दी में मज़दूर रहते थे तो वे भी अपने थके हारे मजदूर भाइयों के साथ उसके वादों के समर्थन में हाथ उठा देते थे बिना यह समझे कि क्या वास्तव में यह अपने वादे निभा पाएगा ? बिलकुल उसी तरह जिस प्रकार हमारे प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से – वादा किया था कि स्विस बैंको में भ्रष्ट कांग्रेसी नेताओं के बैंक खातों से धन लेकर आएंगे और इतना धन होगा कि हर भारतवासी के हिस्से में 15- 15 लाख रुपये आएंगे। क्या भीड़ से किया गया वह वादा पूरा हुआ !
फिर तो नौजवानों के लिए हर साल एक करोड़ नौकरियां, किसानों के लिए फसल के दुगने दाम का वादा क्या हुआ किसानों को अपने खेत और फसल बचाने के लिए महीनों दिल्ली का घेरा डालना पड़ा, पर आज तक तो कोई वादा नहीं पूरा हुआ। उल्टे नोटबंदी और कामबंदी के दौरान देश की माध्यम और निम्न आय वर्ग को जितनी मुश्किलों और तकलीफ़ों को सहना पड़ा उतना तो देश विभाजन में शायद सहना पड़ा हो।
कहने का तात्पर्य यह हैं कि डबल एंजन की सरकार राज्य में न तो कानून का राज्य स्थापित कर पायी है और अब बात कर रही है समान कानून संहिता की। हैं ना आश्चर्य की बात। मूल रूप से भारतीय जनता पार्टी उत्तर भारत की पार्टी है। जिसका दक्षिण में कोई जनाधार नहीं है। कर्नाटक में धन बल और एंफोर्समेंट डिरेक्टोरेट की बदौलत तथा दल बदल से सरकार बनाई पर चुनाव में जनता ने बता दिया कि वह समाज में फूट डालने के खिलाफ है
मध्यप्रदेश की जनता ने भी आम चुनावों में बीजेपी को बहुमत नहीं दिया था परंतु थैलिशाहों की मदद से बीजेपी ने सरकार बनाई। वही ट्रिक महाराष्ट्र में हुआ और अब एनसीपी के भ्रष्ट नेताओं जिनको फडनवीस साहब ने चक्की पिसींग अँड पिसींग के लिए निशाना बनाया था, आज उन्हीं के साथ उप मुख्यमंत्री बने हुए हैं ! अब सत्ताधारी पार्टी में भाषण देते समय हाथ उठा- उठा कर और उंगली दिखा-दिखा कर विरोधियों को बेईमान और झूठा तथा देश विरोधी तक बता देने का कल्चर सा हो गया है।
जब मोदी जी ने भोपाल में कामन सिविल कोड की सुर्री छोड़ी तब लगा कि सरकार कुछ असहज है, देश के राजनीतिक हालातों से । क्यूंकि तीन विधान सभा चुनावों मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान में सिर्फ एमपी में ही डबल एंजन की सरकार है। बाकी दोनों राज्यों में काँग्रेस सरकारें हं। अब मध्यप्रदेश में सरकारों को अपना भविषय अनिश्चित लग रहा है। फलस्वरूप खजाने से रोज ब रोज मुख्य मंत्री नयी नयी घोषणाएं करते हैं। बेरोजगारों को नौकरिया और सरकारी नौकरियों में जो विसंगतियां थी उन्हें भी वेतन भत्ते बड़ाकर दूर करने की कवायद हो रही है। पर बीजेपी के लोग सिविल कोड पर कुछ बोलने से कतराते हैं उनका बस एक ही नारा है – एक देश में एक विधान, जैसा की जम्मू काश्मीर के विभाजन के समय किया था। हिन्दू –हिन्दू खतरे में है का भय लोगों में भरा जा रहा है। पार्टी नेताओं को यह भी नहीं पता है कि हिन्दू विवाह अधिनियम में विवाह की तीन स्थितिया हैं –
- निसिद्ध श्रेणी, इसके अन्तर्गत खून के संबंधों में विवाह वर्जित है, जैसे मौसी – बुआ ताई मामा आदि की संतानों में विवाह स्वीकार नहीं है। परंतु इस अधिनियम में यह भी व्यवस्था है कि यदि इन श्रेणियों में विवाह हुआ है तो संबन्धित पक्षों द्वारा ही आपति्त की जा सकती।
- निशिधात्मक संबंध इनमें यदि दोनों पक्षों के रीति – रिवाज में ऐसे विवाह होते रहे हैं तब उन पर आपति नहीं होगी। जैसे समाज के कुछ वर्गो में आट्टा साट्टा इसमें दो भाई –बहन एक दूसरे से बदल विवाह करते है।
अब इन प्रावधानों के बावजूद दक्षिण भारत में रक्त संबंधों में विवाह का प्रचालन आम है। उत्तर भारत में मामा और भांजी का विवाह न केवल वर्जित है वरन पाप है, परंतु दक्षिण में यह सर्वोतम विवाह है। केरल में मातर सत्तात्मक परिवार है, वहां वर को वधू के यहां रहना होता है –जिसे हम घर जमाई कहते है। संपत्ति की अधिकारी पुत्री होती है, कुछ जातियों में बड़ी और अन्य जातियो में सबसे छोटी पुत्री को विरासत मिलती है। अब बिना समझे एक कानून की बात करना तो समझदारी नहीं हो सकती।