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उफ! भयभीत पुतिन के 36 घंटे!

सब कुछ कितना भयावह है! सोचे, छह हजार एटमी हथियारों के विशाल जखीरे वाले रूस पर। यह देश, इसके राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और इनके साथ दुनिया की महाशक्तियों ने शुक्रवार-शनिवार के 36 घंटे कैसे गुजारे होंगे? निश्चित ही हम भारतीयों के बस में इसकी कल्पना संभव नहीं है। लेकिन पुतिन हो या अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उनके संकट प्रबंधक सबकी सांसे निश्चित ही 36 घंटे अटकी व बैचेन रही होगी। सब चिंता में थे कि मास्को के करीब पहुंचते बागी सैनिक किसी एटमी हथियार के ठिकाने न पहुंच जाए। यह भी तय माने कि पुतिन के 36 घंटे आंतक तथा भय में गुजरे होंगे। तभी आश्चर्य नहीं जो पुतिन ने प्राईवेट सेना वैगनर के प्रमुख येवगेनी प्रिगोज़िन को जैसे-तैसे पटाया और उसके पीठ में छुरा घोंपने की अनदेखी करके उसे शांति से बेलारूस जाने दिया। कहने को कहा जा रहा है कि बेलारूस के तानाशाह ने रूस की प्राइवेट सेना के बागी सेनापति प्रिगोज़िन को मनाया। लेकिन नामुमकिन नहीं जो पुतिन ने घबरा कर यह सब खुद कराया हो। प्रिगोज़िन को बेइंतहा पैसा दे कर पटाया हो।

पुतिन ने बगावत की खबर के बाद टीवी पर आ कर कहा था कि प्रिगोज़िन ने ‘देश की पीठ में छुरा घोंपा है”। लेकिन इस बयान के ठिक 12 घंटे बाद पुतिन ने प्रिगोज़िन से सौदा किया। वादा किया कि बागी सैनिकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। वे पड़ौसी देश बेलारूस में जा कर रहे। प्रिगोज़िन ने भी गर्व के साथ बेलारूस जाने की घोषणा की। मतलब प्रिगोज़िन घायल हो कर, भगौड़े के रूप में बेलारूस नहीं जा रहे है बल्कि वे विजेता की तरह, पुतिन व रूसी सेना पर कृपा करते हुए अपनी शर्तों पर अपने सैनिकों के साथ मास्कों के रास्ते से वापिस हुए है।

इसका अर्थ क्या है? पहली बात पुतिन ने 16 महिने पहले हल्ला किया था कि यूक्रेन खतरा है रूस के लिए। लेकिन जरा गौर करें कि मास्कों को खतरा किससे हुआ? उसके दरवाजे हथियार ले कर कौन पहुंचा? खुद पुतिन की बनवाई सेना। इतना ही नहीं वैगनर नाम की भाड़े की रूसी प्राइवेट सेना और उसके प्रमुख प्रिगोज़िन ने पुतिन और उनके रक्षा मंत्री व सेनाध्यक्ष को पहले नाकाबिल, मूर्ख और कायर करार दिया, फिर उन्हे डरा कर पूरे दबदबे से रूस छोड़ा।  इसलिए पश्चिमी देशों का यह निष्कर्ष गलत नहीं है कि वैगनर सेना ने पुतिन की धमक, उनके खौफ और उनकी पकड की जगहंसाई कराई।

तभी रूस में 23-24 जून के 36 घंटों में जो हुआ है उसका अर्थ हैकि राष्ट्रपति पुतिन का रूतबा और आंतक दरकता हुआ है। 16 महिने पुराने यूक्रेन युद्ध में रूस की हिंसक-जंगली वैगनर सेना भी हताशा-निराशा में क्या से क्या करते दिखी। अंत में उसने अपने उस राष्ट्रपति के खिलाफ बगावत की जिसकी बदौलत प्रिगोज़िनकी निजी सेना बनी। हैरानी की बात यह भी कि भला ऐसा कैसे संभव हुआ जो रूसी सेना, रक्षा मंत्री, उसके कमांडर, उसकी छावनी ने एक निजी सेना के भाड़े के सैनिकों के आगे सरेंडर किया। वैगनर की सेना ने दक्षिणी रूस के सैनिक मुख्यालय तथा यूक्रेन के खिलाफ सैनिक अभियान के कमांडिंग हेडक्वाटर और शहर रोस्तोव-ऑन-डॉन पर चुटकियों में कब्जा बना लिया। इतना ही नहीं वैगनर के सैनिक रोस्तोव-ऑन-डॉन से एम 4एक्सप्रेसवे में टैंक दौड़ाते हुए उत्तर की तरफ के शहर वोरोनिश तक पंहुच गए, जो मास्को से सिर्फ दो सौ किलोमीटर दूर है। इन बागियों को रोकने के लिए रूसी सेना की और से कही भी बाधा पैदा नहीं की गई! आखिरी बात कि ऐसे फोटो व वीडियों क्योंकर है कि वैगनर के बागी सैनिकों और प्रिगोज़िन के काफिले का रूसी लोग सड़कों पर स्वागत करते हुए दिखे। प्रिगोज़िन की कार का तालियों से स्वागत और लोग उनसे हाथ मिलाते हुए दिखे!

सवाल सच्चे है तो जमीनी हकीकत भी दो टूक। विशाल परमाणु शक्ति वाला रूस अब ऐसे अराजक मोड पर है कि पहले तो उसनेयूक्रेन से लड़ने के लिए प्राईवेट सेना उतारी।  इस प्राईवेट सेना ने साल भर से रूसियों के दिल-दिमाग में रक्षा मंत्री तथा सेनाध्यक्ष और सेना कमांडरों को निकम्मा, भ्रष्ट व अफसरी ढर्रे में काम करने वाला बतलाया। मतलब वैगनर सेना ने यूक्रेन की लड़ाई में रूस की तमाम तरह की नाकामी के लिए रूसी सेना के टॉप से बॉटम तक को बदनाम किया। बावजूद इसके पुतिन और उनका सेना तंत्र उसे बरदास्त करता रहा। और फिर खुन्नस व हताशा या अंहकार में प्रिगोज़िन ने बगावत की तो उसे रोकने के लिए न तो रूसी सेना में हिम्मत हुई और न प्राईवेट सेना को मास्कों की और बढ़ने में संकोच हुआ।

खबरों के अनुसार बेलारूस के दो टके के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर लुकाशेंको ने येवगेनी प्रिगोज़िन से बात करके उन्हे मास्कों की तरफ बढ़ने से रोका। समझौता कराया। प्रिगोज़िन ने कहा है कि हम रूसियों का ही खून और बहता इसकी चिंता में उन्होने अभियान खत्म किया है। वे बेलारूस जा रहे है। मतलब अहसान करते हुए।

समझ नहीं आ रहा है कि प्रिगोज़िन अपने तीस हजार सैनिकों के साथ बेलारूस जा कर वहा कैसे अपनी छावनी बना सकते है। लेकिन बिना ऐसा किए प्रिगोज़िन बेलारूस में सुरक्षित रह पाएं, यह भी संभव नहीं। राष्ट्रपति पुतिन और उनके सेनाधिकारी पीठ पीछे छुरा घोंपने वाले प्रिगोज़िन की बगावत व अंहकार को भूल नहीं सकते। जिस पुतिन ने विदेश तक में अपने राजनैतिक विरोधियों को जहर दे कर मरवाया हो वह अपने विश्वासघाती सैनिक विद्रोहियों को कैसे जिंदा रहने दे सकता है? उसके भाड़े के सैनिकों को यदि रूसी सेना में शामिल किया गया तो सेनाधिकारी क्या उन्हे मोर्चे पर झौंक कर मौत के मुंह में नहीं डालेंगे? ध्यान रहे रूसी सेना का नंबर एक संकट है कि उसके पास पुराने, अनुभवी, जल्लाद सैनिकों की कमी है। यूक्रेन की सीमा पर उसके सैनिकों में नए-नए भर्ती हुए रंगरूटों की अधिक संख्या है। इसीलिए पुतिन ने वैगनर सेना को सिर पर बैठाया था। उनसे यूक्रेन पर कहर बरपाया।

अब ये सैनिक भरोसे लायक नहीं रहे। सेना इन्हे (मतलब 25-30 हजार सैनिक) देशद्रोही मान खत्म करेगी।

सवाल है प्रिगोज़िन और उनके खास सैनिकों को क्या यह खतरा नहीं दिखलाई दे रहा होगा? प्रिगोज़िनक्या नहीं जानते कि बेलारूस में वे अपना कितना ही सुरक्षित अड्डा बना ले, पुतिन उन्हे खत्म करके चैन लेंगे।

इसलिए 36 घंटों की कहानी खत्म हुई नहीं मानी जाए। रूसी प्राईवेट सेना बनाम रूसी सेना और राष्ट्रपति पुतिन तीनों में आगे, एक-दूसरे की पीठ पर छुरा घोंपने की नई-नई वारदाते होगी। रक्षा मंत्री और रूसी सेनाध्यक्ष निकम्मे साबित हुए है वे देश के भीतर सैनिक छावनी, मुख्यालय भी सुरक्षित नही रख सकें तो मास्कों या क्रेमलिन और खुद अपनी सुरक्षा को ले कर पुतिन आगे कैसे आश्वस्त रह सकते है? रूसी सेना में फेरबदल संभव है। अफसर एक-दूसरे पर ठिकरा फोड़ेंगे तो मास्को के सत्ता प्रभु वर्ग में पुतिन को लेकर मन ही मन विद्रोह बनेगा। निश्चित ही पुतिन पतन की ओर बढते हुए है। यूक्रेन पर हमले की गलती, प्राईवेट सेना बनाना और उसे सिर पर बैठाना तथा आर्थिकी, भूराजनीति, सामरिक, सैनिक तमाम तरह के नुकसानों के बाद अब बागियों को कुचलने की बजाय उन्हे बेलारूस में छावनी बनाने देना पुतिन और रूस को उस मोड पर ले जाने वाला है जिसमें आगे कुछ भी मुमकिन है। नोट करे रूस का आगे ढहना, सोवियत संघ के ढहने से भी अधिक घातक होगा।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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