हरियाणा में भाजपा सत्ता में वापिसी करती है या नहीं यह बाद की बात है पर दावे तो सरकार बनाने के साथ ही लोकसभा की सभी सीटें जीतने के अभी से ही कर दिए गए हैं। या यूँ कहिए कि सिरसा में फैले कींचड में इस बार कमल खिलने से भाजपा इतनी उत्साहित हो गई कि उसने हरियाणा की सत्ता में वापसी का बिगुल ही फूंक दिया। साथ ही अमित शाह यह भी साफ़ कर आए कि राजनीति नई पर चेहरा पुराना ही रहेगा। यानी जिन मनोहर लाल को हरियाणा में लोग ‘खट्टर’। कहने लगे थे अब उन्हीं के चेहरे पर चुनाव लड़ भाजपा सरकार की वापसी मान चुकी है। और इसी को अमलीजामा पहनाने केन्द्रीय ग्रहमंत्री अमित शाह 18 जून को सिरसा में रैली कर भाजपा में दम भरेंगे । सिरसा की सांसद सुनीता दुग्गल ने यहाँ पहलीबार जब कमल खिलाया तो भाजपाई इतने बम-बम हो लिए कि हरियाणा में लोकसभा की 10 सीटें जीतने का तो एलान अपने शाह कर ही आए और यह भ्रम भी दूर कर आए कि सिरसा से लोकसभा की टिकट सुनीता दुग्गल के अलावा किसी और को भी दी जा सकती है।अब शाह तो सांसद सुनीता की जीत में ख़ुशी मनाकर दिल्ली आ गए पर भाजपा के नेताओं का लोगों को दम फूलता अभी से दिख रहा है।
अब कोई अगर यह पूछे कि एक सांसद के जीतने पर 10 सांसद जिताने की हिम्मत अपने शाह ने कैसे की होगी तो उन्हें अपनी राजनीति पर भरोसा होना ही मानिए। शाह की सीधी राजनीति जाट v/ s ग़ैर-जाट की होनी है। यानी जाट बंटेंगे तो गैर-जाट वोटर होगा अपना। शायद पिछली बार मनोहर लाल खट्टर को सीएम बनाने के पीछे भी शाह की यही सोच रही होगी। अब सवाल यह भी रहेगा कि जब शाह लोकसभा की सभी 10 सीटों भाजपा की बता रहे हैं तो क्या जजपा के साथ भाजपा का गठबंधन बना रहेगा, क्या उसे लोकसभा की एक भी टिकट नहीं मिलेगी या फिर गठबंधन टूटेगा ? और तब जजपा ,कांग्रेस,आप या फिर दूसरी राजनैतिक पार्टियाँ चुनाव में सिर्फ़ ढोल ही बजाएंगीं ? ऐसी अटकलों पर क़यास अभी से ही लगाए जा रहे हैं। अब चलो शाह के दस सीटें जीतने की बात की दाद दी जाती है। पर लोकसभा चुनावों को लेकर विभिन्न पार्टियों में अभी से जो शब्द वाण चल रहे हैं उनका नतीजा क्या होगा या फिर शाह की रैली से पहले ही हरियाणा के वाशिंदे और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जो चुनावी ज़मीन तैयार करने जा रहे हैं या कांग्रेस जो हरियाणा में सरकार बनाने को बेताब है उसका क्या नतीजा होगा सवाल यह भी रहेगा चुनावी नतीजों तक।