लोकसभा चुनावों से पहले होने वाले विधानसभा चुनावों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी ख़म ठोंक रहे हैं। पर हाँ इस बार न तो उनके साथ दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया होंगे और न ही होगा उनका पुराना नारा ‘अबकी बार केजरीवाल ‘। साथ में होंगे पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और नारा होगा ‘एक मौक़ा केजरीवाल को’ । पाँच में से तीन राज्य राजस्थान,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में वे क्या खोते हैं और क्या पाते हैं यह बाद की बात है पर उनकी राजनीति तो खाओ और फैलाओ से कम नहीं। या फिर जिस थाली में वे खाते हैं उसी में छेद करने की जुगत में लग जाते हैं। कब किसके साथ दग़ाबाज़ी करें कहा नहीं जा सकता है। राजनीति की शुरूआत कांग्रेस से मिलकर की अब उसी कांग्रेस से दग़ाबाज़ी शुरू।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लाए गए अध्यादेश के ख़िलाफ़ वे विरोधियों को एकजुट करने में लगे हैं तो दूसरी तरफ़ जहां कांग्रेस की सरकार है या फिर जहां कांग्रेस विपक्ष में तो वहाँ कांग्रेस के ख़िलाफ़ माहौल बना राजनीतिक तौर पर फ़ायदा लेने की जुगत में लग गए हैं। भला वह राजस्थान हो ,मध्यप्रदेश हो या फिर छत्तीसगढ़ ही क्यों नहीं ,केजरीवाल रैली करने की तैयारी कर चुके बताए जाते हैं। हरियाणा में तिंरगा यात्रा के बाद वे राजस्थान की तरफ़ कूच करेंगे ,और हर कूंचे और गली में। अब केजरीवाल भला यह समझें कि अशोक गहलोत सरकार को लेकर चल रही एंटी इनकमबेंसी या फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही सिर फुट्टबल और भाजपा में वसुंधरा राजे को लेकर चल रहे विवाद का फ़ायदा उन्हें मिल सकेगा , तो ऐसा तो उनकी पार्टी के नेता भी नहीं मानते हैं। अब कहा तो जा रहा है कि केजरीवाल इन तीनों राज्यों में हर सीट पर उम्मीदवार उतारने को तैयार हैं पर देखना यही है कि वे क्या कर दिखा पाते हैं।