
कांग्रेस के चिंतन शिविर में धराशायी हुई पार्टी पर कांग्रेसियों ने चिंता कितनी जताई होगी यह खबर तो बाहर तक निकली नहीं पर कांग्रेसियों अपने नेताओं के भविष्य को लेकर जो चिंता जताई वो ज़रूर जगज़ाहिर हो गई। अब इन कांग्रेसियों से कोई पूछे कि जब पार्टी ही रसातल से ऊपर नहीं उठ पा रही है तो नेता करेंगे भी क्या। यूँ तो पार्टी ने दिल्ली के किसी नेता को शिविर में न्यौता देने लायक़ समझा ही नहीं अलबत्ता जो एक बेचारे नेताजी जुगाड़ कर पहुँच गए उनके अनुभव भी मीठे कम और खट्टे ज़्यादा सुने गए। ये अलग बात रही कि अपने ये नेताजी राहुल गांधी समर्थक बताए जाते हैं और शायद ये जुगाड़ू नेता गए भी राहुल की खबर सुनने ही थे। सो आशा से ज़्यादा निराशा हुए।
भला कोई यह कहे कि दूसरे दिन ही शिविर में पार्टी के एक गुट के नेताओं सोनिया गांधी के सामने शिविर से ही राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष घोषित करने का प्रस्ताव रखा ,दबाब की राजनीति भी हुई पर सोनिया गांधी ने ग़लत संदेश जाने और अध्यक्ष की घोषणा निर्धारित चुनाव से ही होने की बात कहकर नेताओं की इच्छा को ख़ारिज कर दिया। अब भला हो चाटुकार नेताओं का कि राहुल के बाद कर्नाटक के कुछ नेताओं ने अपने राज्य से प्रियंका गांधी को राज्यसभा भेजने की इच्छा यह कहकर जताई कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव लड़ीं थीं सोनियां गांधी भी लड़ीं तब अगर प्रियंका भी इसी राज्य से राज्यसभा जाती हैं तो पार्टी में अच्छा संदेश तो जाएगा ही साथ ही भावनात्मक लगाव भी रहेगा।
पर इस पर भी सोनियां राज़ी हुईं नहीं और कह दिया कि इससे शिविर का मक़सद ही ख़त्म हो जाएगा। अब प्रियंका के चाहने वालों को उनके भावनात्मक लगाव की चिंता थी या फिर अगले साल कर्नाटक में होने वाले चुनाव में अपना फ़ायदा होने की मंशा। ये तो नेता जानते हैं। लेकिन काश: चहेतों की मंशा पर एक झटके में सोनियां ने पानी फेर दिया। पर सोचना तो उन नेताओं पर भी चाहिए जो अपनी इच्छा को लेकर प्रियंका से निजी तौर पर मिले और निराश होना पड़ा ।