संसद के बाहर और अंदर भाजपा को कोसने वाले आप पार्टी के एक सांसद अब भाजपा की आँखों की किरकिरी बनते दिख रहे हैं। यह बात अलग है कि पिछले दिनों भी किरकिरी बने इन नेताजी से निपटने की पूरी तैयारी कर ली गई थी पर चौकन्ने रहे रहे अपने नेताजी ने शोर-शराबा किया और क़ानूनी दांव खेल एजेंसियों के दांव से बच निकले थे। और प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी गलती मानते हुए खिसिया कर गलती मान ली थी । लेकिन चर्चा तो फिर इन नेताजी पर एक्शन होने की है। अब भला कोई यह कहे कि आप पार्टी के इन सांसद महोदय को लपेटने के बाद जाँच एजेंसियों की ज़िम्मेदारी पूरी हो लेगी तो यह भ्रम दूर करना होगा।
2024 के लोकसभा चुनावों से पहले इन तमाम जांच एजेंसियों की ज़िम्मेवारी भी कोई कम नहीं हैं। भले वे सपा के एक वरिष्ठ नेता हों या कांग्रेस के या आप पार्टी के ही कई दूसरे नेता इन एजेंसियों की आँख में किरकिरी बने हए हैं। या यों कहिए कि साल के आख़िर तक इन एजेंसियों को बहुत करना अभी है। कहा यहाँ तक जाने लगा है कि सत्ता में बैठी भाजपा और कांग्रेस को ही नहीं बल्कि कई दूसरे राजनैतिक दलों को भी ‘ आप’ का आगे बढ़ना माफ़िक़ नहीं आ रहा है। डर है तो यही कि कहीं केजरीवाल की पार्टी विपक्ष की पार्टी न बन जाए भाजपा के अलावा दूसरी पार्टी भी आप को निपटते देखना चाहती हैं। आप पार्टी को को जिस तरह समर्थन मिला है उससे दूसरी पार्टियों की आँखों में खटकना स्वाभिक है।
संजय सिंह के अलावा पार्टी में दो-तीन और भी ऐसे नेता बताए जा रहे हैं जा रहे हैं जिनका राजनैतिक बैकग्राउंड काफ़ी है सो दूसरी पार्टी के नेताओं को सूट नहीं कर रहा है। अब आप पार्टी के नेता यह मान रहे हों कि वे अपने कपड़ों की तरह साफ़ सुथरा हैं सो तो कोई मानेगा भी नहीं। सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया इस सफ़ेदपोशों के उदाहरण बन चुके हैं। तब फिर बाक़ी कथित सफ़ेदपोश कोई साफ़ मान भी कैसे सकेगा। कहा जा रहा है कि मनीष सिसोदिया को लेकर जिन चंद लोगों से पूछताछ हुई है उसमें से किसी ने यह भी कहा है कि मनीष की बातचीत के समय अपने नेताजी भी थे। भला इन नेताजी को लपेटने के लिए कोई नया खेल होगा या फिर पुराने दस्तावेज़ों में ही जोड़- घंटा कर लिया जाना है यह तो अपन का पहुंच से बाहर की बात है। बेहतर होता कि चुनाव की दस्तक अभी नहीं तो कम से कम कई नेता जेल से बाहर तो दिखते रहते।