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सिंघवी के लिए बड़ा राजनीतिक ड्रामा

abhishek manu singhvi

राजनीति में किसी को राज्यसभा भेजने के लिए जितनी तरह की नाटकीयता हो सकती है वह सब सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी के लिए हुई है। वे एक नया रिकॉर्ड अलग बना रहे हैं। सिंघवी राजस्थान के रहने वाले हैं, दिल्ली में प्रैक्टिस करते हैं, पश्चिम बंगाल से राज्यसभा गए, हिमाचल प्रदेश से फिर राज्यसभा का चुनाव लड़े व हारे और अब तेलंगाना से राज्यसभा जाएंगे। वे राज्यसभा के लिए जिस तरह से छटपटा रहे थे उसके लिए जल बिन मछली का मुहावरा भी छोटा है। तभी हो सकता है कि अगली बार वे किसी और राज्य से राज्यसभा जाएं। उनको किसी हाल में संसद में पहुंचना था। सो, कांग्रेस ने उनके लिए तेलंगाना से उपाय किया।

सोचें, उनको राज्यसभा पहुंचाने के लिए कितना ड्रामा हुआ। उन्हें कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश की सबसे सुरक्षित सीट दी, जहां अचानक भाजपा ने उम्मीदवार उतार दिया और कांग्रेस के छह विधायक व तीन निर्दलीय बागी हो गए। इसका नतीजा यह हुआ कि सिंघवी और भाजपा के हर्ष महाजन को 34-34 वोट मिले। इसके बाद अगला ड्रामा यह हुआ कि लॉटरी के जरिए नतीजा निकाला गया, जिसमें सिंघवी हार गए। अब सिंघवी ने लॉटरी की प्रक्रिया को अदालत में चुनौती दी है। लॉटरी निकालने की प्रक्रिया अलग दिलचस्प है। लॉटरी में जिसका नाम निकलेगा वह नहीं जीतेगा, बल्कि जिसका नाम नहीं निकलेगा वह जीता हुआ माना जाएगा।

बहरहाल, इसके बाद ड्रामे का अगला पार्ट यह था कि अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया दोनों का मुकदमा लड़ रहे सिंघवी ने हारने के बाद आम आदमी पार्टी पर दबाव बनाया। कहा जा रहा है कि उस दबाव में ही केजरीवाल ने स्वाति मालीवाल को राज्यसभा सीट से इस्तीफा देने को कहा। लेकिन उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया उलटे केजरीवाल के पीए बिभव कुमार पर सीएम हाउस में मारपीट का मुकदमा कर दिया। बिभव जेल में हैं और सिंघवी उनका मुकदमा लड़ रहे हैं। फिर ड्रामे का तीसरा पार्ट शुरू हुआ। आप से निराश होने के बाद सिंघवी ने कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाया। तब कांग्रेस ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी से कहा कि वे हाल ही में राज्यसभा भेजे गए अनिल यादव का इस्तीफा कराएं। अनिल यादव मुख्यमंत्री के करीबी हैं इसलिए उन्होंने उनका इस्तीफा नहीं कराया।

लेकिन उन्होंने इस ड्रामे का पटाक्षेप किया भारत राष्ट्र समिति के नेता के केशव राव को कांग्रेस में शामिल करा कर। केशव राव कांग्रेस में शामिल हुए और कैबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ सरकार के सलाहकार बने। उन्होंने फिर राज्यसभा से इस्तीफा दिया, जिस पर उपचुनाव में कांग्रेस ने सिंघवी को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट का कार्यकाल दो साल का बचा हुआ है। सो, सिंघवी के लिए 2026 में कहीं से नई व्यवस्था करनी होगी।

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