देश में तेजी से गिरते तापमान के बीच संसद में और राजनीति में जबरदस्त उबाल आया है। भाजपा विरोधी सभी पार्टियां गुस्से से उबल रही हैं। उनका कहना है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का अपमान कर दिया है। विपक्षी पार्टियां अमित शाह का इस्तीफा मांग रही हैं और इस्तीफा नहीं देने पर उनको बरखास्त करने की अपील कर रही हैं। संसद ठप्प कर दी गई है और शीतकालीन सत्र के पहले तीन हफ्ते में अडानी के जिस मसले पर हंगामा चल रहा था उसे हाशिए में डाल दिया गया है। विपक्ष को नया मुद्दा मिल गया है।
पहली बार ऐसा हो रहा है कि पूरी केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी रक्षात्मक हुई है। अमित शाह की एक बात का असर इतना व्यापक था कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके बचाव में उतरना पड़ा और उन्होंने सोशल मीडिया में एक के बाद एक छह पोस्ट लिख कर न सिर्फ उनका बचाव किया, बल्कि कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया।
अब सवाल है कि अमित शाह ने राज्यसभा में संविधान पर चर्चा के समापन में मंगलवार की शाम को जो कुछ कहा अगर वह सही है यानी उनके बयान से छेड़छाड़ नहीं हुई है तब भी उसमें डॉक्टर अंबेडकर के बारे में क्या अपमानजनक है? अगर कांग्रेस व अन्य विपक्षी नेताओं और सोशल मीडिया में उनके इकोसिस्टम यानी अपने व्यूज, लाइक्स, कमेंट्स आदि बढ़ाने के लिए यूट्यूब, एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि पर 24 घंटे अंध भाजपा विरोध लगे लोगों को छोड़ दें तो शायद ही किसी को इस बात में कुछ अपमानजनक लगेगा। अमित शाह ने राज्यसभा में मंगलवार को अपने भाषण के दौरान कहा था- था- अभी एक फैशन हो गया है।
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अंबेडकर, अंबेडकर. इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। सोचें, इसमें क्या अपमानजनक है? यह तो फिगर ऑफ स्पीच यानी बात कहने का एक तरीका है। जब भी भाजपा की ओर से देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर हमला होता है तो कांग्रेस के लोग कहते हैं कि भाजपा वाले जितना नाम नेहरू का लेते हैं उतना अपने काम पर ध्यान दिया होता तो अब तक देश का भला हो जाता। तो क्या यह नेहरू का अपमान करना है? यह बात कहने का एक तरीका है।
अमित शाह ने डॉक्टर अंबेडकर के बारे में कुछ भी अपमानजनक नहीं कहा। सिर्फ इतना मामला है कि उन्होंने जो कहा वह राजनीतिक रूप से सही नहीं है। यानी पोलिटिकली इनकरेक्ट है। शाह के बयान में अंबेडकर के प्रति कोई अपशब्द नहीं है और न उनके योगदान पर कोई सवाल है फिर भी विपक्ष ने इसे मुद्दा बना दिया। विपक्ष में कांग्रेस के साथ साथ समाजवादी पार्टी भी शामिल है, जिनके लोग किसी जमाने में उत्तर प्रदेश के गांव गांव में मायावती द्वारा लगवाई अंबेडकर की मूर्तियां तोड़ते थे।
हालांकि तब भी लोगों की भावनाएं इतनी आहत नहीं होती थी, जितनी संसद में अमित शाह के नाम लेने से हुई है। अमित शाह ने जो कहा उसको दूसरी तरह से देखें तो कहा जा सकता है कि विपक्ष भगवान का अपमान कर रहा है। अमित शाह ने भगवान का नाम लेने को कहा तो विपक्ष उनके खिलाफ आंदोलन कर रहा है। लेकिन भाजपा ऐसे बैकफुट पर आई है कि वह अंबेडकर बनाम भगवान का मुद्दा भी नहीं बना रही है। उसको लग रहा है कि इन दिनों अंबेडकर का मुद्दा ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है।