दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार और उप राज्यपाल के खिलाफ मोर्चा खोला है। वे हर बात पर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। केंद्र सरकार के अध्यादेश के मसले पर उन्होंने लड़ाई को अखिल भारतीय बनाने का प्रयास किया है। अधिकारियों की नियुक्ति व तबादले के लिए अध्यादेश के जरिए बने प्राधिकरण की पहली बैठक भी केजरीवाल ने बुलाई लेकिन उसमें कोई फैसला नहीं हुआ और उसके बाद आलोचना तेज हो गई। इस बीच दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के चेयरमैन की नियुक्ति उप राज्यपाल ने कर दी, जिसके खिलाफ केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जाने का ऐलान कर दिया।
सवाल है कि इस सारी लड़ाई का क्या मकसद है? केजरीवाल आरोप लगाते हैं कि अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं होने की वजह से वे काम नहीं कर पा रहे हैं और दूसरी ओर यह दावा करते हैं कि उन्होंने दिल्ली में ऐसा काम कर दिया, जो पूरे देश में नहीं हुआ। उन्होंने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति करने का दावा किया है और यह भी दावा किया है कि पूरे देश से लोग उनका मॉडल देखने आ रहे हैं। तभी यह सवाल है कि वे असल में किस चीज के लिए लड़ रहे हैं? जब मौजूदा सिस्टम में वे इतना अच्छा काम कर रहे हैं तो उनको दूसरे किसी सिस्टम की जरूरत क्यों है? उनको पता है कि संविधान से बनी व्यवस्था को वे नहीं बदल सकते हैं और न दिल्ली की विशेष स्थित को बदल सकते हैं। फिर भी वे लड़ते रहेंगे क्योंकि इससे उनको राजनीतिक फायदा होता है। वे यह दिखाते हैं कि नरेंद्र मोदी से सिर्फ उनकी ही लड़ाई है।