एक बहुत दिलचस्प घटनाक्रम पिछले कुछ दिनों में हुआ है। तीन महीने पहले तक आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल कहते रहे थे कि विपक्षी एकता जैसी कोई चीज नहीं होती है। उन्होंने कई बार कहा कि वे इसमें यकीन नहीं करते हैं कि भाजपा को हराने के लिए विपक्ष को साथ आना चाहिए। लेकिन तीन महीने बाद आज विपक्षी एकता की सबसे ज्यादा चिंता केजरीवाल करते हुए हैं। वे अब कह रहे हैं कि विपक्षी पार्टियों को साथ मिल कर भाजपा से लड़ना चाहिए। उन्होंने यहां तक डर दिखाया कि अगर सभी विपक्षी पार्टियां एक साथ नहीं आती हैं और अगले चुनाव में भाजपा जीत जाती है तो उसके बाद देश में फिर कोई चुनाव नहीं होगा।
वे यह डर दिखा रहे हैं कि अगली बार भाजपा जीती तो एक पार्टी का शासन देश में लागू हो जाएगा और बाकी पार्टियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। कोई चुनाव नहीं होगा। सोचें, तीन महीने में अचानक ऐसा बदलाव कैसे आ गया? ये बदलाव कर्नाटक के चुनाव नतीजों के बाद आया है। चुनाव से पहले आप के नेता मान रहे थे कि वहां भाजपा जीतेगी और कांग्रेस कमजोर होगी। इसके बाद उनको कांग्रेस के खिलाफ राजनीति करके कांग्रेस को और कमजोर करना था। इसलिए वे विपक्षी एकता को बकवास कांसेप्ट बताते थे। लेकिन जैसे ही कर्नाटक में कांग्रेस को भारी भरकम जीत मिली वैसे ही केजरीवाल की चिंता बढ़ गई कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने आप भाजपा से लड़ने वाली मुख्य विपक्षी पार्टी हो जाएगी। ऐसा होने पर हर राज्य में आम आदमी पार्टी की संभावना खत्म होगी या कमजोर होगी। इसलिए वे अब बेचैन हो गए हैं और चाह रहे हैं कि किसी तरह विपक्षी एकता बने और उसमें उनकी जगह रहे। लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस उनके लिए दिल्ली और पंजाब का मैदान खाली नहीं छोड़ने वाली है। वह आप के साथ तालमेल के लिए तैयार नहीं है।