अरविंद केजरीवाल के लिए संविधान या सरकार के किसी नियम या किसी परंपरा का कोई मतलब नहीं होता है। वे अपने नियम खुद बनाते हैं। उनको जो मन होता है वह करते हैं और उनकी पार्टी उसको न्यायसंगत ठहराने के लिए तरह तरह के तर्क गढ़ती है। जैसे यह स्थापित परंपरा था कि अगर कोई मंत्री या मुख्यमंत्री गिरफ्तार होता है तो वह इस्तीफा दे देता है। लेकिन केजरीवाल ने नई परंपरा बनाई। वे छह महीने जेल में रहे लेकिन इस्तीफा नहीं दिया। भले दिल्ली में सारे कामकाज ठप्प रहे। अब जेल से निकलने के बाद वे सभी गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सलाह दे रहे हैं कि गिरफ्तार हों तो इस्तीफा नहीं देना है।
इसी तरह से एक नई परंपरा की शुरुआत उन्होंने की है। उन्होंने तय किया है कि छुट्टी के दिन मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देना चाहिए। तभी रविवार को जब उन्होंने अपनी पार्टी के मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात और इस्तीफे का ऐलान किया तो कहा कि दो दिन बाद मंगलवार को वे इस्तीफा देंगे। बाद में पत्रकारों ने उनकी सरकार की नंबर दो मंत्री आतिशी से पूछा कि केजरीवाल दो दिन बाद इस्तीफा क्यों देंगे तो उन्होंने कहा कि रविवार को छुट्टी है और सोमवार को ईद मिलाद उन नबी की छुट्टी है। उसके बाद पहला वर्किंग डे मंगलवार है तो उस दिन केजरीवाल इस्तीफा देंगे। सोचें, छुट्टी और वर्किंग डे का इस्तीफे से क्या मतलब है? उनके कामकाज करने पर तो वैसे भी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। तो वे कभी भी इस्तीफा दे सकते थे।