यह लाख टके का सवाल है कि मुख्यमंत्री बदलने का अरविंद केजरीवाल का प्रयोग कितना सफल होगा? दिल्ली में सिर्फ भाजपा ने यह प्रयोग किया था और वह विफल रही थी। हालांकि कई राज्यों में भाजपा का यह प्रयोग सफल रहा लेकिन दिल्ली में सफल नहीं हुआ। तभी उसके बाद सत्ता में आई कांग्रेस ने ऐसा कोई प्रयोग नहीं किया। लगातार 15 साल तक शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री बनाए रखा और अंत में ऐसे हार कर सत्ता से बाहर हुई कि दो चुनावों में उसका खाता ही नहीं खुला। बहरहाल, दिल्ली में विधानसभा चुनाव शुरू होने के बाद 1993 में पहले चुनाव में भाजपा सत्ता में आई थी और उसने मदनलाल खुराना को मुख्यमंत्री बनाया था। बाद में खुराना का नाम हवाला डायरी में आ गया तो उनको हटा कर साहिब सिंह वर्मा को सीएम बनाया गया और 1998 के विधानसभा चुनाव से तीन चार महीने पहले वर्मा को हटा कर सुषमा स्वराज को सीएम बनाया गया।
भाजपा ने जब सुषमा स्वराज को सीएम बनाया तो उसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक कहा गया। उन्होंने भी काफी सक्रियता दिखाई और ऐसा लगा कि भाजपा का यह दांव कामयाब हो जाएगा। लेकिन वह चुनाव हार गई। और उसके बाद से आज तक भाजपा पिछले 26 साल में विधानसभा का चुनाव नहीं जीत पाई है। तभी केजरीवाल का चुनाव से चार महीने पहले मुख्यमंत्री बदलने का दांव कितना कारगर होगा, इस पर सवाल उठ रहे हैं। यह भी संयोग हो सकता है कि वे महिला मुख्यमंत्री बनाएं जैसे भाजपा ने 1998 में बनाया था।
सो, सवाल है कि क्या दिल्ली का इतिहास अपने को दोहराएगा या केजरीवाल इसे बदल देंगे? हालांकि वे नए मुख्यमंत्री को ज्यादा समय गद्दी पर रहने नहीं देना चाहते हैं। तभी समय से पहले चुनाव की मांग कर रहे हैं। लेकिन इसमें मुश्किल यह है कि अगर नए मुख्यमंत्री की कमान में कैबिनेट विधानसभा भंग करने का फैसला करती है तब भी यह सस्पेंस रहेगा कि उप राज्यपाल इसे स्वीकार करते हैं। यह भी सवाल है कि जब चुनाव फरवरी में होने हैं और जनवरी तक मतदाता सूची का पुनरीक्षण होना है तो चुनाव आयोग क्यों दो महीने पहले चुनाव कराएगा?