महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में लोकसभा चुनाव के बाद बारी बारी से चुनाव होता है। सोचें, एक साथ पूरे देश में चुनाव कराने की बातों के बीच न तो भाजपा चाहती है कि तीन अलग अलग महीने में होने वाले इन तीनों राज्यों के चुनाव एक साथ हों और न चुनाव आयोग को यह बात समझ में आती है कि ये तीनों चुनाव एक साथ हो सकते हैं। मई में लोकसभा चुनाव होते हैं। उसके बाद अक्टूबर में महाराष्ट्र का चुनाव होता है। फिर नवंबर में हरियाणा का और दिसंबर में झारखंड का। ये तीनों चुनाव एक साथ अक्टूबर में हो सकते हैं और अगर चुनाव आयोग चाहे तो लोकसभा के साथ भी इनका चुनाव हो सकता है।
इस बार इन तीनों राज्यों के चुनाव को लेकर सस्पेंस इसलिए बना है क्योंकि तीनों राज्यों के भारतीय जनता पार्टी के नेता चाहते हैं कि उनका चुनाव लोकसभा के साथ हो। भाजपा के प्रदेश नेता चाहते हैं कि लोकसभा के साथ चुनाव होगा तो मोदी की हवा में प्रदेश की नाव भी पार लग जाएगी। ध्यान रहे लोकसभा के साथ ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के चुनाव होते हैं। आयोग चाहे तो साल के अंत में होने वाले तीनों चुनाव भी साथ में करा सकता है। लेकिन क्या भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इसके लिए तैयार होगा? प्रदेश के नेता भले सोच रहे हों कि लोकसभा के साथ मोदी के नाम पर विधानसभा लड़ेंगे तो जीत जाएंगे लेकिन केंद्रीय नेतृत्व को यह भी चिंता होगी कि कहीं राज्यों की एंटी इन्कम्बैंसी, अंदरूनी खींचतान और जनता की नाराजगी लोकसभा पर भी भारी न पड़ जाए। सो, लोकसभा के साथ चुनाव की संभावना कम दिख रही है। हां, यह संभावना जरूर दिख रही है कि इस साल के अंत में ही महाराष्ट्र का चुनाव हो जाए।