पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिन राज्यों में छप्पर फाड़ जीत मिली थी उनमें एक राज्य पश्चिम बंगाल है। कर्नाटक और ओडिशा के बाद बंगाल ही वह राज्य था, जहां से भाजपा को अप्रत्याशित रूप से बड़ी सफलता मिली। लेकिन उसके बाद से ही भाजपा वहां ढलान पर है। उसके बाद जितने चुनाव हुए हैं हर चुनाव में भाजपा का वोट कम हुआ है। माना जा रहा है कि भाजपा ने प्रदेश में अपना नेतृत्व नहीं खड़ा किया, जिसकी वजह से उसे नुकसान हुआ है। वह कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के सहारे राजनीति करती रही। कभी मुकुल राय पर भरोसा किया तो कभी शुभेंदु अधिकारी पर।
बहरहाल, लोकसभा चुनाव में भाजपा को 40.6 फीसदी वोट मिले थे। उसके बाद विधानसभा चुनाव में बहुत स्थानीय और बांग्ला अस्मिता पर चुनाव होने की वजह से भाजपा का वोट दो फीसदी कम होकर 38 फीसदी पर आया। यह भी फिर भी ठीक था। लेकिन उसके बाद जितने उपचुनाव हुए और जितने स्थानीय निकायों के चुनाव हुए उनमें भाजपा को बहुत नुकसान हुआ। हाल का पंचायत चुनाव मिसाल है, जिसमें भाजपा को सिर्फ 22 फीसदी वोट मिले। वह दूसरे नंबर की पार्टी रही लेकिन विधानसभा के मुकाबले उसे 16 फीसदी कम वोट मिले। कांग्रेस और लेफ्ट का साझा वोट 20 फीसदी पहुंच गया, जो विधानसभा चुनाव में 12 फीसदी था। ममता बनर्जी की पार्टी को विधानसभा के 48 फीसदी के मुकाबले 51 फीसदी वोट मिले।
जाहिर तौर पर कांग्रेस और लेफ्ट को आठ फीसदी और तृणमूल कांग्रेस को तीन फीसदी वोट का जो फायदा हुआ वह भाजपा का नुकसान था। इससे पहले भबानीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा का वोट 35 से घट कर 22 फीसदी हो गया और सागरदिघी विधानसभा उपचुनाव में उसका वोट 24 से घट कर 14 फीसदी रह गया। आसनसोल की अपनी जीती हुई सीट पर वह बुरी तरह से हारी। 2019 के चुनाव में भाजपा इस सीट पर 51 फीसदी वोट लेकर जीती थी लेकिन उप चुनाव में उसे सिर्फ 30 फीसदी वोट मिला। अगले लोकसभा चुनाव से पहले वोट का यह रूझान भाजपा के लिए चिंता की बात है।