भारतीय जनता पार्टी बिहार में 2014 के फॉर्मूले पर गठबंधन बनाने और चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। पिछले ढाई दशक से ज्यादा समय में यह दूसरी बार है, जब भाजपा बिना नीतीश कुमार के बिना चुनाव लड़ेगी। पहले 2014 में लड़ी थी। तब उसने रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के साथ तालमेल किया था। भाजपा 30 सीटों पर लड़ी थी और पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी सात व कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी तीन सीटों पर लड़ी थी। यह गठबंधन 32 सीटों पर जीता था, भाजपा अकेले 23 सीट जीती थी। लेकिन अगले चुनाव में भाजपा और जदयू का तालमेल हो गया और दोनों पार्टियां 17-17 सीटों पर लड़ी। छह सीट पासवान के खाते में गई थी। सातवीं सीट के बदले उनको राज्यसभा भेजा गया था।
पिछले दिनों दिल्ली में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के आवास पर बिहार प्रदेश भाजपा की कोर कमेटी की बैठक हुई, जिसमें लोकसभा चुनाव की रणनीति पर चर्चा हुई। जानकार सूत्रों के मुताबिक भाजपा ने लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे की रूपरेखा तैयार कर ली है। भाजपा खुद 30 सीट लड़ेगी। दो हिस्सों में बंट गई रामविलास पासवान की पार्टी को छह सीटें दी जाएंगी। चार सीट चिराग पासवान को और दो सीट पशुपति पारस को। पारस खेमे के कुछ सांसद भाजपा के चुनाव चिन्ह पर लड़ेंगे। जदयू से अलग होकर राष्ट्रीय लोक जनता दल बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा को दो सीट मिलेगी। महागठबंधन सरकार से अलग हुए जीतन राम मांझी के दल को एक सीट मिलेगी। महागठबंधन के एक दूसरे सहयोगी मुकेश सहनी आने वाले दिनों में अलग हो सकते हैं। उनकी विकासशील इंसान पार्टी को भी एक सीट मिलेगी। पिछली बार पासवान और कुशवाहा के साथ भाजपा का समीकरण कामयाब हो गया था क्योंकि नीतीश कुमार की पार्टी अलग लड़ी थी। इस बार राजद, जदयू और कांग्रेस साथ हैं इसलिए भाजपा का काम सिर्फ समीकरण बनाने से नहीं सधने वाला है।