नीतीश कुमार की सेहत ठीक नहीं है और उनकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी बिहार में तत्काल सत्ता हासिल करने की बेचैनी में है। नीतीश कुमार के बिहार बिजनेस कनेक्ट, 2024 के कार्यक्रम में नहीं जाने के बाद से अटकलें तेज हो गई हैं। उनकी प्रगति यात्रा पर संदेह के बादल मंडरा रहे हैं। अगर सचमुच नीतीश की सेहत ठीक नहीं है तो यह तय मानना चाहिए कि बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव होगा।
भाजपा इसे मौका मान रही है और उसने अपना दांव चलना शुरू कर दिया है। भाजपा चाहती है कि नीतीश कुमार की सेहत के हवाले उनको हटा कर भाजपा का मुख्यमंत्री बना दिया जाए। उसके बाद भाजपा अपने मुख्यमंत्री के साथ एक साल तक राजनीति करे और उसके चेहरे पर चुनाव में जाए। लेकिन इस योजना पर अमल आसान नहीं होगा। बताया जा रहा है कि इस पर अमल के दो फॉर्मूले बने हैं।
पहला फॉर्मूला तो यह है कि जदयू के किसी दूसरे नेता को पार्टी की कमान दिलाई जाए। यानी नीतीश कुमार की जगह किसी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया जाए और उससे फैसला कराया जाए कि जदयू के 45 विधायक भाजपा के मुख्यमंत्री का समर्थन करेंगे।
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इसमें मुश्किल यह है कि जदयू के सभी 12 सांसद और पांच राज्यसभा सांसद तो भाजपा के साथ हैं लेकिन विधायकों में करीब 20 ऐसे हैं, जो भाजपा के साथ जाने में सहज नहीं है। उनको लग रहा है कि नीतीश का चेहरा हटने के बाद राजद के साथ जाना उनक लिए ठीक होगा। ऐसे विधायकों की वजह से दूसरा फॉर्मूला यह बनाया गया है कि जदयू के विधायकों को लालच देकर या भय दिखा कर साथ रखा जाए।
इस फॉर्मूले से राजद के साथ जाने की सोच वाले विधायकों की संख्या 10 की जा सकती है। तब जदयू में टूट होने की स्थिति में भी भाजपा बहुमत हासिल कर लेगी। ध्यान रहे विधानसभा में स्पीकर भाजपा के पुराने नेता नंदकिशोर यादव हैं। अगर टूट फूट ज्यादा होती है तो राष्ट्रपति शासन लगाने का विकल्प भी है। हालांकि भाजपा में जो समझदार नेता हैं वे इतनी जल्दबाजी करने के पक्ष में नहीं हैं। उनको लग रहा है कि अगर जोर जबरदस्ती भाजपा ने सत्ता हासिल की तो चुनाव में उसका फायदा तेजस्वी यादव को हो जाएगा। भाजपा के अंदरूनी झगड़े और मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार होने की वजह से भी समस्या है।