विपक्षी एकता की पहली बैठक बिहार में हुई थी और उसके बाद भाजपा ने विपक्ष को कमजोर करने और एकता की संभावना को पंक्चर करने का अभियान तेज कर दिया। महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी एनसीपी टूट गई है और उनके भतीजे अजित पवार भाजपा-शिव सेना की सरकार में उप मुख्यमंत्री बन गए हैं। अब राज्य में भाजपा-शिव सेना-एनसीपी की सरकार बन गई है। शरद पवार जैसे बड़े नेता की पार्टी का टूटना बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम है, जिससे निश्चित रूप से विपक्षी पार्टियों के मनोबल पर असर हुआ होगा। अब कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र के बाद बिहार की बारी है।
बिहार की बारी दो कारणों से बताई जा रही है। पहला कारण तो यह है कि एक साल पहले 30 जून को जब शिव सेना को तोड़ कर भाजपा ने एकनाथ शिंदे के साथ मिल कर सरकार बनाई थी उसके दो एक महीने बाद ही बिहार में नीतीश कुमार ने भाजपा से तालमेल तोड़ कर राजद के साथ सरकार बना ली थी। यानी भाजपा के महाराष्ट्र के जश्न को नीतीश ने बिहार में गम मे बदल दिया था। सो, अब उसका बदला लेना है। दूसरा कारण यह है कि शरद पवार की पार्टी की ही तरह नीतीश की पार्टी में कई कमजोर कड़ियां हैं, जिनका फायदा भाजपा उठा सकती है।
महाराष्ट्र में अजित पवार एनसीपी की कमजोर कड़ी थी। वे काफी समय से भाजपा के संपर्क में थे। उसी तरह एक समय नीतीश की पार्टी में नंबर दो की पोजिशन में रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह अब भाजपा के साथ चले गए हैं। उनके जरिए बताया जा रहा है कि जदयू के कई नेताओं से भाजपा का संपर्क है। इसके अलावा जदयू के कई नेताओं को अगले चुनाव में अपने भविष्य की चिंता है। उनको लग रहा है कि राजद के साथ जाने की वजह से वे अपने चुनाव क्षेत्र में कमजोर हुए हैं। उनका समीकरण बिगड़ा है। ऐसे नेता भाजपा के साथ जा सकते हैं।
जदयू के कई नेताओं की महत्वाकांक्षा बड़ी है। उनको लग रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा उनको टिकट दे सकती है। ध्यान रहे भाजपा पिछली बार 17 सीटों पर लड़ी थी और सभी सीटों पर जीती थी। इस बार वह 30 सीटों पर लड़ेगी। इसलिए उसे 13 नए उम्मीदवार चाहिए। जदयू के कुछ नेता इस उम्मीद में भी भाजपा से बात कर रहे हैं कि उनको लोकसभा की टिकट मिल जाए।