बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सावधान हैं। उन्होंने महाराष्ट्र में एनसीपी में टूट होने से पहले ही अपने यहां संभावित खतरे को भांप लिया था। तभी उन्होंने पिछले हफ्ते अपनी पार्टी के सभी विधायकों को पटना बुलाया और सबसे एक एक करके मुलाकात की। उन्होंने विधान परिषद के सदस्यों से भी मुलाकात की। उनसे मिलने के बाद विधायकों ने कहा कि मुख्यमंत्री ने क्षेत्र का हाल जानने के लिए बुलाया था। लेकिन यह सच नहीं है। मुख्यमंत्री अपने विधायकों का मन टटोल रहे थे। यह जानना चाह रहे थे कि कहीं वे भाजपा के संपर्क में तो नहीं हैं या पार्टी तो नहीं छोड़ने वाले हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि पार्टी टूटती नहीं है तब भी नीतीश कुछ विधायकों के इस्तीफा देने और भाजपा के साथ जाने की संभावना से आशंकित हैं।
तभी यह भी कहा जा रहा है कि वे एनडीए में वापसी की राह भी तलाश रहे हैं। हालांकि इस बात की पुष्टि कोई नहीं कर रहा है। लेकिन प्रशांत किशोर काफी पहले से कहते रहे हैं कि राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश के जरिए नीतीश भाजपा के संपर्क में हैं। पिछले दिनों जब नीतीश अपने विधायकों से मिले उससे पहले बिहार भाजपा के नेता सुशील मोदी अचानक राज्यपाल से मिलने गए थे। उसके बाद फिर से गठबंधन बदल की चर्चा तेज हो गई है। इस बीच एक घटनाक्रम यह हुआ कि राजद नेता और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव विदेश गए तो उनके स्वास्थ्य मंत्रालय में अचानक नौ संवर्ग के पांच सौ कर्मचारियों का तबादला कर दिया गया। लेकिन 24 घंटे के अंदर सारे तबादले रद्द करने पड़े। कहा जा रहा है कि तेजस्वी के दबाव में तबादले रद्द हुए।
पटना की चर्चाओं पर यकीन करें तो कहा जा रहा है कि राजद की ओर से लगातार दबाव बनाए जाने से नीतीश परेशान हैं। पिछली बार भी उनकी परेशान का कारण राजद का दबाव और अधिकारियों का तबादला ही था। इस बार एक और दबाव है। पार्टी के दो बड़े नेताओं के दो करीबी कारोबारियों के यहां आयकर का छापा पड़ा है। लालू प्रसाद ने राहुल गांधी को विपक्षी गठबंधन का दूल्हा बता कर अलग दबाव बनाया है। सो, नीतीश चौतरफा दबाव में हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि इस बार अगर उनकी वापसी होती है तो भाजपा उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। उनको भाजपा का मुख्यमंत्री बनवाना होगा। तभी नीतीश किसी तरह से पार्टी और सरकार बचाने के उपाय कर रहे हैं ताकि अगले लोकसभा चुनाव तक फेस सेविंग हो सके।