बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्या विधानसभा भंग करने का दांव चल सकते हैं? पटना में इस बात की बहुत चर्चा है। बताया जा रहा है कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने अपने सभी विधायकों और सांसदों से एक एक करके बुलाया था और सबसे अकेले मिले थे। मुख्यमंत्री ने उनका मन टटोला कि वे कहीं पाला बदलने की तो नहीं सोच रहे हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि उन्होंने कुछ विधायकों से कहा कि अगर पार्टी टूटने की नौबत आती है तो वे विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं। बताया जा रहा है कि विधायकों को डराने के लिए उन्होंने यह बात कही, असल में उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है। ध्यान रहे बिहार विधानसभा का कार्यकाल अभी करीब ढाई साल बचा है। 2025 के दिसंबर में राज्य में चुनाव होना है इसलिए कोई भी विधायक इतना पहले चुनाव में नहीं जाना चाहता है।
असल में पिछले कुछ समय से कांग्रेस के साथ साथ मुख्यमंत्री की पार्टी जनता दल यू पर भी खतरा मंडार रहा है। राजद के साथ तालमेल करने के बाद से ही जदयू के कई विधायक चिंता में हैं। उनको लग रहा है कि उनकी सीट अगले चुनाव में राजद के खाते में चली जाएगी क्योंकि ज्यादातर जदयू विधायक राजद या कांग्रेस को ही हरा कर ही जीते हैं। दूसरी ओर भाजपा में उनकी सीट खाली है। यानी अगर वे भाजपा के साथ जाते हैं तो आसानी से टिकट मिल जाएगी। इस चिंता में बताया जा रहा है कि कुछ विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। इसी तरह भाजपा के पास इस बार लोकसभा की 13 टिकटें अतिरिक्त हैं, जो पिछली बार उसने जदयू के लिए छोड़ी थी। इन पर भी जदयू के कुछ नेताओं की नजर है। इस वजह से नीतीश कुमार आशंकित हैं।
हालांकि यह भी बताया जा रहा है कि उनकी सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल भी विधानसभा भंग करने के पक्ष में नहीं है। तभी नीतीश कुमार ऐसा कोई कदम तभी उठाएंगे, जब पूरी तरह से भगदड़ मच जाए और तब राज्यपाल उनकी सिफारिश स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसी भगदड़ की स्थिति में राजद और भाजपा दोनों सरकार बनाने का दावा कर सकते हैं। जदयू और कांग्रेस छोड़ कर भी राजद और लेफ्ट व निर्दलीय की संख्या एक सौ हो जाती है। उसे 22 विधायकों की जरूरत पड़ेगी।