बिहार में भारतीय जनता पार्टी लाइन पर आ गई है। लेकिन इसके लिए नीतीश कुमार को तेवर दिखाने पड़े। बताया जा रहा है कि नीतीश केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक मीडिया समूह के कार्यक्रम में दिए बयान को लेकर नाराज हैं। असल में अमित शाह ने एक मीडिया समूह के कार्यक्रम में कह दिया था कि बिहार में मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा। उन्होंने कहा था कि भाजपा के संसदीय बोर्ड और विधायक दल की राय का हवाला दिया था। इससे पहले लोकसभा चुनाव के दौरान और उसके बाद भी खुद प्रधानमंत्री भाजपा के नेताओं से कह चुके थे कि अगला चुनाव नीतीश के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा। तभी भाजपा के सारे नेता यह राग गा रहे थे कि अगले चुनाव में एनडीए जीता तो मुख्यमंत्री नीतीश ही होंगे। लेकिन अमित शाह ने अचानक दूसरी बात कह दी थी। Bihar politics
उन्होंने महाराष्ट्र का हवाला देते हुए कहा कि वहां भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी तो उसका मुख्यमंत्री बना। इस बात को जदयू ने और खुद नीतीश कुमार ने अच्छा नहीं माना है। कारण यह है कि भाजपा के साथ बराबर सीटों पर लड़ कर जदयू कभी भी बड़ी पार्टी नहीं बन सकती है।
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नीतीश की पार्टी चाहे भाजपा के साथ लड़े या राजद के साथ हमेशा जदयू से बेहतर स्ट्राइक रेट सहयोगी पार्टी का होता है। नीतीश इस बात को जानते हैं इसलिए उनकी पार्टी पहले से यह वादा चाहती है कि चुनाव नीतीश के नाम पर लड़ा जाएगा और बिहार में बिहार फॉर्मूला ही लागू होगा, महाराष्ट्र का फॉर्मूला नहीं लागू होगा। इसके लिए नीतीश ने तेवर दिखाए।
वे बिहार बिजनेस कनेक्ट कार्यक्रम में नहीं गए। निवेश के इतने बड़े सम्मेलन से गैरहाजिर रहने के बाद नीतीश की पार्टी ने लालू प्रसाद की पार्टी राजद की ओर संदेश भेजना भी शुरू कर दिया। इससे भाजपा अलर्ट हुई और दिल्ली से सटे फरीदाबाद में बिहार भाजपा की कोर कमेटी की बैठक के बाद यह सार्वजनिक मैसेज दिया गया कि, ‘पहले भी नीतीश थे, आज भी नीतीश हैं और कल भी नीतीश रहेंगे’। ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी अभी कोई दुस्साहसी फैसला नहीं करना चाहती है। उसको पता है कि इसका फायदा राजद को हो जाएगा।