प्रशांत किशोर देश के सबसे बड़े चुनाव रणनीतिकार और प्रबंधक रहे हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। उन्होंने बिहार में पदयात्रा की और उसके बाद अपने जनसुराज अभियान को जन सुराज पार्टी में बदल दिया। इसमें भी कोई परेशानी नहीं है। लेकिन उन्होंने उपचुनाव के लिए जिस तरह से उम्मीदवार चुने हैं उससे उनके प्रबंधन पर सवाल उठे हैं। चार सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं और चार सीटों के उपचुनाव में ही चुनने के बाद उनको दो उम्मीदवार बदलने पड़े हैं। उनका कहना है कि वे जनता की राय लेकर और जनता के बीच से ही उम्मीदवार चुनेंगे फिर भी उनको दो उम्मीदवार बदलने पड़े हैं। इनमें से एक उम्मीदवार तो ऐसी गलती की वजह से बदलना पड़ा, जिसके बारे में सोचा ही नहीं जा सकता है कि ऐसी गलती प्रशांत किशोर कर सकते हैं।
असल में उन्होंने भारतीय सेना के उप प्रमुख रहे लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिंह को तरारी सीट से उम्मीदवार बनाया। इसकी बड़ी चर्चा हुई क्योंकि आजतक बिहार से सिर्फ दो ही लोग उप सेना प्रमुख बने हैं, जिनमें से एक जनरल एसके सिंह हैं। उनकी उम्मीदवार की घोषणा के बाद पता चला कि वे बिहार में मतदाता ही नहीं हैं। सोचें, यह पता किए बगैर कि नोएडा में रहने वाले जनरल सिंह बिहार में मतदाता हैं या नहीं, पीके ने उनको उम्मीदवार बना दिया। बाद में उनकी जगह किरण सिंह को टिकट दिया गया।
इसी तरह बेलागंज सीट पर प्रशांत किशोर ने पहले गणित के चर्चित शिक्षक खिलाफत हुसैन को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन नाम की घोषणा के थोड़े दिन बाद ही उन्होंने खिलाफत हुसैन को बदल कर मोहम्मद अमजद को उम्मीदवार बनाया। बताया जा रहा है कि अमजद उनकी पहली पसंद थे लेकिन उन्होंने पैसे की कमी के कारण चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। लेकिन बाद में पीके उनको समझा कर चुनाव लड़ने के लिए तैयार कराया। बहरहाल, कारण कोई भी हो लेकिन इससे उनकी महान रणनीतिकार होने की छवि पर सवाल उठा है।