एक तरफ नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने ‘इंडिया’ ब्लॉक की राजनीति में अपना दांव चला दूसरी ओर राजद से भी नाराजगी और दूरी दिखाई है। बताया जा रहा है कि विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनने का जब प्रस्ताव आया तो नीतीश कुमार ने कहा कि कांग्रेस का कोई नेता संयोजक बने। इसके बाद उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद को ही संयोजक बना दीजिए। यह बात लालू प्रसाद के लिए हैरान करने वाली थी क्योंकि उनको लेकर कोई चर्चा नहीं हुई थी और सबको पता है कि चारा घोटाले के तीन मामलों में लालू प्रसाद को सजा हो चुकी है और किसी सजायाफ्ता व्यक्ति को संयोजक बनाना घातक हो जाएगा। तभी लालू सहित सभी नेता हैरान थे। यही कारण रहा कि लालू प्रसाद ने बैठक में कोई दबाव नहीं डाला या नीतीश से आग्रह नहीं किया कि वे संयोजक बन जाएं। हालांकि इससे पहले नीतीश को विपक्षी गठबंधन के साथ रखने के लिए लालू प्रसाद ने उनको संयोजक बनाने की लॉबिंग की थी।
दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं होने का दूसरा संकेत भी शनिवार को ही मिला, जब पटना के गांधी मैदान में नवनियुक्त शिक्षकों को नियुक्ति पत्र बांटने के मौके पर चारों तरफ नीतीश कुमार की फोटो लगी थी। बाद में राजद ने इस पर नाराजगी जताई। गौरतलब है कि राजद नेता तेजस्वी यादव ने ही चुनाव प्रचार में वादा किया था कि उनकी सरकार बनी तो 10 लाख नौकरियां दी जाएंगी। इसलिए राजद नेता चाहते हैं कि नौकरियों का श्रेय तेजस्वी को मिले। लेकिन समूचा श्रेय नीतीश को मिल रहा है। नीतीश ने अपने भाषण में भी बार बार कहा कि हमने 10 लाख नौकरी देने की बात कही थी तो नौकरी दे रहे हैं। उन्होंने संबोधन की शुरुआत में एक बार तेजस्वी का नाम लिया उसके बाद उनका कोई जिक्र नहीं किया। वे सिर्फ अपनी बात कहते रहे। अपने भाषण में नीतीश ने यह संकेत भी दिया कि वे अगले चुनाव तक मुख्यमंत्री रहेंगे और बचे हुए वादे पूरे करेंगे। लोकसभा चुनाव के बाद तेजस्वी के सीएम बनने की उम्मीद लगाए राजद नेताओं को इससे निराशा हुई है।