बिहार में राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़ी पार्टी है। उसके 80 विधायक हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के सिर्फ 45 विधायक हैं। लालू प्रसाद की पार्टी राजद के पास सबसे बड़ा वोट आधार भी है इसके बावजूद ऐसा लग रहा है कि बिहार में चाहे राजद हो या कांग्रेस या कम्युनिस्ट पार्टियां सब पूरी तरह से नीतीश कुमार के आगे सरेंडर हैं। सारे फैसले नीतीश कुमार के हिसाब से हो रहे हैं। राजनीतिक और प्रशासनिक कमान पूरी तरह से उनके हाथ में है। अधिकारियों की तैनाती हो या बड़े फैसले हों सब नीतीश कर रहे हैं। हालांकि राजद के जानकार नेताओं का मानना है कि लालू प्रसाद ने रणनीति के तहत सब कुछ नीतीश के हाथ में छोड़ा है। उनको किसी तरह से लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करना है। उनको पता है कि अगर नीतीश अलग होकर अकेले लड़ें तब भी सबसे बड़ा नुकसान राजद को होगा और अगर भाजपा के साथ चले गए तो राजद भी साफ हो जाएगी। ध्यान रहे पिछले लोकसभा चुनाव में राजद का एक भी सांसद नहीं जीता था।
तभी राजद की ओर से नीतीश के किसी फैसले पर सवाल नहीं उठाया जा रहा है। उलटे राजद के अंदर के फैसले भी नीतीश के हिसाब से हो रहे हैं। मिसाल के तौर पर राजद के कोषाध्यक्ष सुनील सिंह को पूरी तरह से चुप करा दिया गया है। उन पर नीतीश ने सवाल उठा दिया था कि क्या वे भाजपा के संपर्क में हैं। इसके बाद से वे चुप हैं। इसी तरह ‘रामचरितमानस’ पर सवाल उठाने वाले शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को चुप करा दिया गया है। नीतीश ने उनके मंत्रालय में केके पाठक को सचिव बना दिया है, जो शिक्षा मंत्रालय चला रहे हैं। पिछले दिनों खबर आई थी कि दो मंत्री- चंद्रशेखर और आलोक मेहता अपने कार्यालय नहीं जा रहे थे। इससे पहले सजा होने की वजह से राजद कोटे के मंत्री कार्तिक मास्टर का इस्तीफा हुआ था। नीतीश पर आरोप लगाने वाले मंत्री सुधाकर सिंह का भी इस्तीफा हुआ। ध्यान रहे वे राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे हैं। राजद की ओर से जितने नेता तेजस्वी यादव को जल्दी से जल्दी मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहे थे, सब चुप हो गए हैं। बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद ने अपनी पार्टी के सभी नेताओं को चुप कराया हुआ है। लोकसभा चुनाव के बाद फिर से राजद के नेता तेजस्वी को सीएम बनाने की मांग तेज करेंगे।