बिहार लोक सेवा आयोग यानी बीपीएससी की 70वीं परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा रद्द करने और दोबारा परीक्षा कराने की मांग लेकर छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं। छात्रों के प्रदर्शन में नेता बन कर उभरे हैं प्रशांत किशोर। बिहार सरकार ने भी गांधी मैदान में प्रशांत किशोर का आमरण अनशन खत्म कराने के लिए उनको जिस तरह से गिरफ्तार किया और जेल भेजने का प्रयास किया उससे उनकी नेतागिरी और चमकी है। वे अभी तक चुनाव रणनीतिकार ही माने जाते थे लेकिन अब जन नेता की छवि बन गई है। वे भले जेल में ज्यादा समय नहीं रहे लेकिन 10 घंटे से ज्यादा समय तक पुलिस हिरासत में रख कर ही बिहार सरकार ने उनको नेता बना दिया।
यह मौका राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राजद के लिए था। राजद, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के गठबंधन के पास अब भी एक सौ से ज्यादा विधाय़क हैं। अगर तेजस्वी यादव छात्रों के समर्थन में अपने विधायकों और सांसदों को लेकर सड़क पर उतरे रहते तो प्रशांत किशोर के लिए मौका नहीं बनता। राजद पीछे रह गई, जिसका फायदा प्रशांत किशोर ने उठाया। अब ऐसा लग रहा है कि बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन भी चाहता है कि एक तीसरी ताकत के तौर पर प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी मजबूत हो ताकि सत्ता विरोधी वोट काट सके। पिछले दिनों विधानसभा की चार सीटों पर उपचुनाव हुए थे, जिन पर एनडीए की जीत हुई। एनडीए की जीत सुनिश्चित करने में प्रशांत किशोर की पार्टी की उम्मीदवार भी काम आए। अगर प्रशांत सत्ता विरोधी वोट काटते हैं तो उसका नुकसान भी राजद को होगा।