चुनाव आयोग ने बिहार में जो काम किया है वह अद्भुत है। चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण का जो अभियान शुरू किया है वह थिएटर ऑफ एब्सर्ड में तब्दील हो गया है। वहां कोई लॉजिक या कोई फैक्ट काम नहीं कर रहा है। सोचें, चुनाव आयोग ने कहा है कि आधार, मनरेगा कार्ड और राशन कार्ड के दम पर कोई भी व्यक्ति मतदाता सूची में नाम नहीं दर्ज करा सकता है। इन तीन के अलावा चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिनके आधार पर मतदाता सूची में नाम दर्ज होगा। इन 11 में से कोई एक दस्तावेज मतगणना प्रपत्र के साथ जमा कराना है। इनमें सरकारी नौकरी या संपत्ति आदि के दस्तावेजों को छोड़ दें तो कई दस्तावेज ऐसे हैं, जो बनवाने के लिए आधार देना होगा। यानी आधार के दम पर आप जो दस्तावेज बनवाएंगे उनसे मतदाता बन सकते हैं लेकिन सीधे आधार के मतदाता नहीं बन सकते हैं।
कितने कमाल की बात है कि बिहार में आवास प्रमाणपत्र बनवाने के लिए आधार एकमात्र दस्तावेज है। यानी कोई आधार लेकर जाएगा तो उसका आवास प्रमाणपत्र बन जाएगा और वह आवास प्रमाणपत्र चुनाव आयोग की ओर से वांछित 11 दस्तावेजों में से एक है। यानी उसे जमा करा कर कोई भी व्यक्ति मतदाता बन सकता है। पिछले 10 दिन में लाखों लोगों ने आधार के दम पर अपना आवास प्रमाणपत्र बनवाने का आवेदन किया है। इनमें से 10 फीसदी के भी प्रमाणपत्र 25 जून तक नहीं बन पाएंगे। इससे जाहिर है कि चुनाव आयोग ने लोगों को उलझाने और परेशान करने के लिए यह कवायद शुरू की है। अगर आधार के दम पर आवास प्रमाणपत्र बनता है और उससे मतदाता सूची में नाम दर्ज हो सकता है तो फिर सीधे आधार के दम पर मतदाता बनने में क्या समस्या है? मतदाता पहचान पत्र नहीं होने पर जिन 12 दस्तावेजों के आधार पर वोटिंग करने की इजाजत है उनमें आधार और मनरेगा कार्ड दोनों हैं। लेकिन बिहार में इन दोनों के आधार पर मतदाता सूची में नाम नहीं दर्ज किया जा रहा है। हालांकि इन दोनों के आधार पर देश के दूसरे हिस्सों में मतदाता पहचान पत्र बनाया जा सकता है।