भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए लोकसभा चुनाव से पहले राज्यों में गुटबाजी मैनेज करना सबसे बड़ी मुश्किल का काम है। दोनों पार्टियां इससे परेशान हैं। जिन राज्यों में अभी चुनाव हैं वहां भी दोनों पार्टियों के अंदर कई कई गुट हैं और पार्टी आलाकमान सभी गुटों को संतुष्ट करने में लगा है। मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस एकजुट हो गई है लेकिन भाजपा में अमित शाह किसी तरह से कई गुटों में एकता बनवाने में लगे हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने टीएस सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बना दिया है फिर भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सार्वजनिक रूप से उनके पैर छूकर उनको मना रहे हैं। भाजपा भी पांच साल तक किनारे रखने के बाद रमन सिंह को आगे ला रही है। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट में ऊपरी एकता दिख रही है तो दूसरी ओर भाजपा के अंदर वसुंधरा राजे के साथ शह-मात का खेल चल रहा है।
जिन राज्यों में चुनाव नहीं है वहां भी गुटबाजी मैनेज करना मुश्किल हो रहा है। बिहार में कांग्रेस अभी तक कमेटी का गठन नहीं कर पाई है क्योंकि प्रदेश के प्रभारी भक्तचरण दास और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह में तालमेल नहीं बन रहा है। भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी जोर लगा रहे हैं लेकि सुशील मोदी, नित्यानंद राय आदि की राजनीति अलग चल रही है। कर्नाटक में अभी तक भाजपा न प्रदेश अध्यक्ष तय कर पाई है और न विधानसभा चुनाव के नतीजों के तीन महीने बाद तक विधायक दल का नेता तय कर पाई है। ऐसे ही महाराष्ट्र में उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल अलग अलग अपनी राजनीति कर रहे हैं।
कांग्रेस में भी प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले के साथ किसी की नहीं बन रही है और अशोक चव्हाण को कार्य समिति में रख कर कांग्रेस ने उनका कद बढ़ाया है। पश्चिम बंगाल में भाजपा के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार के समानांतर विधायक दल के नेता शुभेंदु अधिकारी और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष की राजनीति चल रही है। झारखंड में भी भाजपा के तीन गुट हैं तो कांग्रेस में तीन से ज्यादा गुट हैं। यह स्थिति कमोबेश लगभग सभी राज्यों में है। इसलिए चुनाव से पहले दोनों पार्टियों के आलाकमान का मुख्य काम गुटबाजी मैनेज करना है।