भारतीय जनता पार्टी अपना वैचारिक आग्रह काफी पहले छोड़ चुकी है। एक समय था, जब भाजपा में आगे बढ़ने के लिए राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ा होना जरूरी होता था। जो लोग संघ से प्रशिक्षित होते थे और उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से निकले होते थे वे ही आगे बढ़ते थे। बाहर से आए नेताओँ का भाजपा में स्वागत नहीं होता था। लेकिन अब समय बदल गया है और भाजपा की सोच भी बदल गई। इसलिए किसी भी पार्टी से आए नेता को भाजपा में उच्च स्थान मिल रहा है, शर्त सिर्फ इतनी है कि वह चुनावी जीत दिलाने में सक्षम हो या गठबंधन वगैरह बनाने में कारगर हो। हिमंता बिस्वा सरमा से लेकर बसवराज बोम्मई तक कई उदाहरण हैं। भाजपा ने राज्यों में बदलाव का जो पहला फैसला किया है और चार नए अध्यक्ष बनाए हैं उनमें से दो दूसरी पार्टियों के हैं।
भाजपा ने पंजाब में अश्विनी शर्मा को हटा कर सुनील जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। जाखड़ पिछले ही साल भाजपा में शामिल हुए हैं। उससे पहले वे कांग्रेस के मुख्य नेताओं में से एक थे। वे कैप्टेन अमरिंदर सिंह के करीबी थे और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे थे। अब भाजपा में शामिल होने के एक साल के अंदर वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बन गए। पार्टी को उम्मीद है कि वे जाट सिख और हिंदू दोनों के वोट दिला सकेंगे। उनके पिता बलराम जाखड़ जीवन भर कांग्रेस में रहे थे। इसी तरह आंध्र प्रदेश में पार्टी ने डी पुरंदेश्वरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। वे तेलुगू देशम पार्टी के संस्थापक एनटी रामाराव की बेटी हैं। पहले वे टीडीपी में गईं। फिर कांग्रेस मे गईं, जहां मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रहीं और बाद में भाजपा में शामिल हुईं। पहले भाजपा ने उनको पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया और अब प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। इससे पहले भाजपा ने दो और प्रदेश अध्यक्ष बनाए थे, जिनमें से एक बिहार के अध्यक्ष सम्राट चौधरी हैं, जो राजद और हम से होकर भाजपा में गए हैं।